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रामेश्वरम मंदिर के अनसुने रहस्य – श्री रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कथा और प्रमुख तीर्थ स्थल

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रामेश्वर ज्योतिर्लिंग, भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक महत्वपूर्ण ज्योतिर्लिंग है, जो तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। इसे केवल एक तीर्थस्थान के रूप में नहीं, बल्कि चार पवित्र धामों में से एक के रूप में भी अत्यधिक पूजनीय माना गया है। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना की कथा पौराणिक है, जो भगवान श्रीराम के रामायण काल से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि जब भगवान राम ने रावण का वध करने का निश्चय किया, तो उन्होंने भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इसी स्थल पर पार्थिव शिवलिंग की स्थापना की थी।

रामेश्वरम मंदिर के अतिरिक्त यहाँ कई पवित्र स्थल हैं जो भगवान राम और माता सीता के जीवन से जुड़े हैं। यहाँ स्थित रामसेतु पौराणिक सेतु के अवशेष माने जाते हैं, जिसे श्रीराम की सेना ने लंका तक पहुँचने के लिए बनाया था। सीता कुण्ड और कोदण्ड राम मंदिर भी प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। रामेश्वरम के पवित्र जलकुंड और यहाँ की रीतियाँ भक्तों को शांति और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रदान करती हैं।

श्री रामेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग की उत्पत्ति कथा

भगवान विष्णु, जगत के कल्याण के लिए विभिन्न अवतारों में प्रकट होते हैं। उन्हीं में से एक हैं मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, जिनका अवतार मानवीय जीवन में धर्म और आदर्श की स्थापना हेतु हुआ। श्री राम ने अपने पिता के वचन का पालन करते हुए स्वेच्छा से चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार किया। वनवास काल में लंकापति रावण ने छलपूर्वक माता सीता का हरण किया, जिसके बाद भगवान श्री राम उन्हें खोजने के लिए निकले। इस यात्रा के दौरान श्री राम की मुलाकात हनुमान और सुग्रीव से हुई, जिन्होंने लंका में माता सीता के होने की सूचना दी।

इसके बाद, भगवान श्री राम सुग्रीव की विशाल सेना सहित समुद्र तट पर पहुंचे और समुद्र पार करने की योजना पर विचार करने लगे। उसी समय, जब भगवान श्री राम को प्यास लगी और वानरों ने उन्हें पानी दिया, तो उन्हें अपने आराध्य भगवान शिव की पूजा किए बिना जल ग्रहण करने का विचार त्यागना पड़ा। उन्होंने उसी स्थान पर एक पार्थिव शिवलिङ्ग की स्थापना की और पूर्ण विधि से भगवान शिव का पूजन किया। इसके बाद, भगवान शिव से प्रार्थना करते हुए बोले, “हे प्रभु, इस धर्मयुद्ध में मेरी सहायता करें। रावण, जो आपकी कृपा से शक्तिशाली हुआ है, अधर्म का मार्ग अपना रहा है।”

श्री राम की भक्ति देख भगवान शिव ने अपनी कृपा दृष्टि की, और स्वयं माता पार्वती सहित प्रकट होकर कहा, “तुम्हारी निश्छल भक्ति से मैं प्रसन्न हूँ। बताओ, तुम्हारी क्या इच्छा है?” श्री राम ने भगवान शिव से रावण के साथ युद्ध में विजय का आशीर्वाद माँगा, जिसे शिवजी ने “अस्तु” कहते हुए स्वीकार कर लिया। इसके बाद, श्री राम ने भगवान शिव से आग्रह किया कि वे इसी स्थान पर सदा के लिए विराजें ताकि समस्त लोकों का कल्याण हो सके। भगवान शिव ने यह अनुरोध स्वीकार कर लिया और वहां ज्योतिर्लिङ्ग के रूप में प्रतिष्ठित हो गए, जो रामेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

श्री राम को भगवान शिव से विजय का आशीर्वाद मिला और उन्होंने समुद्र पर सेतु का निर्माण किया, जिससे सेना सहित लंका पर आक्रमण कर सके। इस प्रकार, भगवान राम ने रावण और उसके संपूर्ण राक्षस वंश का संहार कर धर्म की पुनः स्थापना की और माता सीता को पुनः प्राप्त किया।

भगवान रामेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग की आराधना से सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। रामेश्वर का गंगाजल से अभिषेक करने से अद्वितीय ऐश्वर्य और परम ज्ञान की प्राप्ति होती है। इस ज्योतिर्लिङ्ग की महिमा का श्रवण करने मात्र से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं, और उसे परम मोक्ष का लाभ प्राप्त होता है।

रामेश्वरम् मंदिर ज्योतिर्लिङ्ग की सम्पूर्ण जानकारी

भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिङ्गों में श्री रामेश्वरम् का ज्योतिर्लिङ्ग ग्यारहवें स्थान पर आता है। यह ज्योतिर्लिङ्ग तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। रामेश्वरम् धाम न केवल भगवान शिव के इस पवित्र ज्योतिर्लिङ्ग के कारण विशेष है, बल्कि इसे हिन्दू धर्म के चार पवित्र धामों में से भी एक माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस ज्योतिर्लिङ्ग की स्थापना स्वयं भगवान श्री राम ने अपने पवित्र हाथों से की थी। यह स्थान हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी के बीच स्थित एक शंखाकार द्वीप के रूप में बसता है।

यहाँ भगवान श्री रामेश्वर नाथ का एक विशाल मंदिर है, जिसे द्रविड़ शैली की अद्भुत वास्तुकला में निर्मित किया गया है। इस मंदिर का मुख्य गलियारा (वीथिका) विश्व में सबसे लंबा है और यहाँ अद्वितीय आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव होता है। जिस प्रकार उत्तर भारत में काशी का विशेष महत्व है, उसी प्रकार दक्षिण भारत में रामेश्वरम का महत्त्व है। मंदिर के भीतर एक विशेष शिवलिङ्ग भी स्थापित है, जिसे काशी से लाया गया था और इसे रामनाथ स्वामी के रूप में पूजा जाता है। यहाँ माता पार्वती की दो विशेष प्रतिमाएँ भी हैं – देवी पर्वतवर्द्धिनी और देवी विशालाक्षी के रूप में पूजी जाती हैं। रामेश्वरम तीर्थ के आस-पास भगवान श्री राम से जुड़े कई पवित्र स्थल हैं, जिनके दर्शन के लिए देश-विदेश से भक्तजन यहाँ आते हैं।

रामेश्वरम् ज्योतिर्लिङ्ग को “रामेश्वरम् ज्योतिर्लिङ्ग” के नाम से भी जाना जाता है।

श्री रामेश्वरम् तीर्थ के प्रमुख स्थल

  • रामसेतु: पौराणिक सेतु जो रामायण से जुड़ा है।
  • सेतु माधव मंदिर: भगवान विष्णु का मंदिर।
  • एकांत राम मंदिर: भगवान राम को समर्पित स्थान।
  • सीता कुण्ड: माता सीता से संबंधित पवित्र जलाशय।
  • कोदण्ड राम मंदिर: भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण को समर्पित एक और प्राचीन मंदिर।

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