भविष्य पुराण हिंदू धर्म के अठारह महापुराणों में से एक प्रमुख पुराण है। इस पुराण का नाम “भविष्य” (भविष्यकाल) पर आधारित है, जो इसके विषयवस्तु को दर्शाता है। भविष्य पुराण में आने वाले समय के घटनाओं, भविष्यवाणियों, और विभिन्न युगों का वर्णन मिलता है। यह पुराण विशेषकर धार्मिक और सामाजिक परंपराओं, विधियों, और रीति-रिवाजों का व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
भविष्य पुराण की रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी। यह पुराण चार प्रमुख भागों में विभाजित है: ब्राह्म पर्व, मध्यम पर्व, प्रतिसर्ग पर्व, और उत्तर पर्व। इसमें कुल 14,500 श्लोक हैं, जो विभिन्न विषयों पर विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं।
भविष्य पुराण के प्रमुख विषय
- भविष्य पुराण का मुख्य आकर्षण इसकी भविष्यवाणियाँ हैं। इसमें आने वाले समय की घटनाओं, विभिन्न युगों की विशेषताओं, और समाज में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन है। यह पुराण विभिन्न राजाओं, राज्यों, और धार्मिक गुरुओं के बारे में भी भविष्यवाणियाँ करता है।
- इसमें विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा विधियों, व्रतों, और त्योहारों का विस्तृत वर्णन है। इसके साथ ही सामाजिक रीति-रिवाजों और परंपराओं का भी उल्लेख है, जो हिंदू समाज के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
- भविष्य पुराण में विभिन्न पौराणिक कथाएँ और धार्मिक उपाख्यान भी शामिल हैं। ये कथाएँ नैतिक और धार्मिक शिक्षा प्रदान करती हैं और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालती हैं।
- भविष्य पुराण में वेदों और उपनिषदों का सार और उनके महत्वपूर्ण शिक्षाओं का वर्णन है। इसमें वेदांत, योग, और ध्यान के सिद्धांतों पर भी चर्चा की गई है।
- इसमें राजा-महाराजाओं की शासन प्रणाली, राजनीति के सिद्धांत, और न्याय के नियमों का भी उल्लेख है। यह पुराण धार्मिक और नैतिक शासन प्रणाली का आदर्श प्रस्तुत करता है।