हिन्दू धर्मग्रंथों (Hindu scriptures) में समय की अवधारणा (concept of time) अत्यंत विशाल और गूढ़ है। यह मात्र वर्षों, महीनों या दिनों तक सीमित नहीं है, बल्कि कल्पों और मन्वन्तरों के विशाल चक्र में बंधी है। वर्तमान में हम सातवें मन्वन्तर, वैवस्वत मन्वन्तर के अधीन जी रहे हैं, जिसके मनु वैवस्वत मनु हैं। लेकिन क्या आपने कभी भविष्य के मन्वन्तरों के बारे में सोचा है?
आज हम ऐसे ही एक भविष्य के कालखंड (time period) – दक्ष सावर्णि मन्वन्तर की गहराई में उतरेंगे। यह मन्वन्तर चौदह मन्वन्तरों की श्रृंखला में बारहवां है। यह जानना रोचक है कि कैसे सृष्टि की बागडोर एक मनु से दूसरे मनु के हाथ में जाती है, और कौन से देवता, ऋषि और इंद्र इस भविष्य के युग का संचालन करेंगे।
मन्वन्तर क्या है? (What is Manvantara?)
‘मन्वन्तर’ शब्द दो संस्कृत शब्दों से मिलकर बना है: मनु + अन्तर, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘मनु की अवधि’ (Age of Manu)।
- अवधि – विष्णु पुराण के अनुसार, एक मन्वन्तर 71 चतुर्युगों (चार युगों का एक चक्र – सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलि) के बराबर होता है। यह अवधि लगभग 30 करोड़ 67 लाख 20 हजार मानव वर्षों की होती है।
- संचालन – प्रत्येक मन्वन्तर का संचालन एक विशेष मनु (मानवता के जनक) करते हैं, जिनकी सहायता के लिए नए सप्तर्षि (सात महान ऋषि), नए इंद्र (देवताओं के राजा) और देवगण (विभिन्न देवताओं के समूह) नियुक्त होते हैं।
- कल्प – चौदह मन्वन्तर मिलकर ब्रह्मा जी का एक दिन यानी एक कल्प बनाते हैं।
भविष्य के मन्वन्तरों की श्रृंखला (The Succession of Future Manvantaras)
वर्तमान वैवस्वत मन्वन्तर के बाद, छह और मन्वन्तर आने वाले हैं। हम जिस बारहवें मन्वन्तर की बात कर रहे हैं, वह है दक्ष सावर्णि मन्वन्तर।
- 7 – वैवस्वत मन्वन्तर – वैवस्वत मनु – वर्तमान
- 8 – सावर्णि मन्वन्तर – सावर्णि मनु – भविष्य (अगला)
- 9 – दक्ष सावर्णि मन्वन्तर – दक्ष सावर्णि मनु – भविष्य (आगे)
- 10 – ब्रह्म सावर्णि मन्वन्तर – ब्रह्म सावर्णि मनु – भविष्य
- 11 – धर्म सावर्णि मन्वन्तर – धर्म सावर्णि मनु – भविष्य
- 12 – रुद्र सावर्णि मन्वन्तर – रुद्र सावर्णि मनु – भविष्य
- 13 – देव सावर्णि मन्वन्तर – देव सावर्णि मनु – भविष्य
- 14 – इन्द्र सावर्णि मन्वन्तर – इन्द्र सावर्णि मनु – भविष्य
ध्यान दें: विभिन्न पुराणों में 9वें, 10वें, 11वें और 12वें मन्वन्तरों के क्रम और नामों में मामूली भिन्नता पाई जाती है। कुछ ग्रन्थों में दक्ष सावर्णि नवें मनु हैं, जबकि कुछ में रुद्र सावर्णि का उल्लेख बारहवें के रूप में है। आपके शीर्षक में बारहवां मन्वन्तर का उल्लेख होने के कारण हम यहाँ उस नाम के अनुरूप विस्तृत जानकारी दे रहे हैं, जो पुराणों में बारहवें स्थान पर अधिक प्रचलित है: रुद्र सावर्णि मन्वन्तर। यह विवरण सर्वाधिक प्रामाणिक (most authentic) स्रोतों पर आधारित है।
क्या है रुद्र सावर्णि मन्वन्तर? (The Rudra Savarni Manvantara)
बारहवां मन्वन्तर, जिसे रुद्र सावर्णि मन्वन्तर के नाम से जाना जाता है, एक महान भविष्य का युग है। यह मनु भगवान शिव (Lord Shiva) के स्वरूप से सम्बंधित माने जाते हैं।
मनु (The Manu) रुद्र सावर्णि मनु
- उत्पत्ति – यह मनु स्वयं भगवान रुद्र (शिव) के अंशावतार (partial incarnation) माने जाते हैं।
- शासन – इस मन्वन्तर में सृष्टि की व्यवस्था (order of creation) का भार इन्हीं पर रहेगा, और ये मानव समाज को धर्म के पथ पर चलाने का कार्य करेंगे।
- वंश/पुत्र – इस मन्वन्तर में देवताओं और मनुष्यों के मध्य एक सामंजस्यपूर्ण (harmonious) संबंध होगा।
इंद्र (The Indra): ऋतुधाम (Ritudhama)
- पदभार – इस युग में देवताओं के राजा (King of Gods) का पद ‘ऋतुधाम’ नामक इन्द्र संभालेंगे।
- भूमिका – इन्द्र का मुख्य कार्य दैवीय शक्तियों (divine powers) को नियंत्रित करना, वर्षा को निर्देशित करना और धर्म की स्थापना में सहायता करना होता है।
सप्तर्षि (The Saptarishis)
प्रत्येक मन्वन्तर में ज्ञान और तपस्या का मार्गदर्शन करने के लिए सात महान ऋषियों का समूह होता है। रुद्र सावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षि होंगे:
- तपोद्युति
- तपस्वी
- सुतपा
- तपोमूर्ति
- तपोनिधि
- तपोरति
- तपोधृति
इन सप्तर्षियों का जीवन पूरी तरह से तप (penance) और ज्ञान (knowledge) को समर्पित होगा, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक बनेंगे।
देवगण (The Celestial Beings)
- देव समूह – इस मन्वन्तर में देवों के समूह को हरित (Harita) कहा जाता है।
- विशेषता – ये देवगण अत्यंत पवित्र, ऊर्जावान और तपस्या में लीन रहेंगे। वे इन्द्र ऋतुधाम के अधीन कार्य करते हुए सृष्टि के संतुलन (balance of creation) को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
भगवान का अवतार (Vishnu’s Incarnation)
- नाम – प्रत्येक मन्वन्तर में भगवान विष्णु किसी न किसी रूप में अवतार लेते हैं। इस मन्वन्तर में भगवान विष्णु, देव सावर्णि मनु के पुत्र शुचि (Shuchi) के रूप में अवतार लेंगे।
- उद्देश्य – इनका मुख्य उद्देश्य दैत्यों के विनाश (destruction of demons) और धर्म के नियमों (laws of Dharma) की पुनर्स्थापना करना होगा, जैसा कि प्रत्येक मन्वन्तर में होता है।
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