|| दर्श अमावस्या व्रत कथा ||
हिन्दू कैलेंडर में नए चंद्रमा के दिन को अमावस्या कहा जाता है। यह दिन धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि कई धार्मिक अनुष्ठान और कर्मकांड केवल अमावस्या तिथि पर ही संपन्न किए जाते हैं। जब अमावस्या सोमवार को आती है, तो उसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है, और जब यह शनिवार को होती है, तो इसे शनि अमावस्या कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि अमावस्या के दिन पूर्वजों की आत्माओं की तृप्ति के लिए श्राद्ध करना अत्यंत शुभ होता है। इसके अलावा, कालसर्प दोष निवारण के लिए भी अमावस्या का दिन उपयुक्त माना गया है। अमावस्या को कई स्थानों पर अमावस या अमावसी के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय की बात है कि स्वर्ग लोक की बारह आत्माएं सोमरस का सेवन करती थीं। उनमें से एक आत्मा ने गर्भ धारण करके एक सुंदर कन्या को जन्म दिया, जिसका नाम अछोदा रखा गया। अछोदा अपनी माता के संरक्षण में पली-बढ़ी, लेकिन उसे अपने पिता की कमी हमेशा खलती थी। यह देखकर स्वर्ग लोक की आत्माओं ने उसे धरती पर जन्म लेने का सुझाव दिया। अछोदा ने राजा अमावसु के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया।
राजा अमावसु ने अछोदा का पालन-पोषण बहुत प्रेम और देखभाल के साथ किया। पिता का स्नेह पाकर अछोदा अत्यंत प्रसन्न रहने लगी। अपनी खुशी के बदले, उसने पितृ लोक की आत्माओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का निश्चय किया। इसके लिए उसने श्राद्ध का मार्ग चुना और वह दिन चुना जब आकाश में चंद्रमा नहीं दिखाई देता था। उस दिन अछोदा ने विधि-विधान से पितृ पूजन किया।
अछोदा की पितृ भक्ति से प्रसन्न होकर, उसे वह सभी सुख प्राप्त हुए, जो उसे स्वर्ग में भी नहीं मिल सके थे। तभी से, बिना चंद्रमा की रात को राजा अमावसु के नाम पर अमावस्या कहा जाने लगा।
ऐसा माना जाता है कि अमावस्या के दिन पितृ लोक से पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने परिजनों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। हिन्दू धर्म में यह प्रथा है कि पितरों का श्राद्ध उस दिन करना चाहिए, जब चंद्रमा आकाश में दिखाई न दे। यही कारण है कि दर्श अमावस्या पर पितरों का श्राद्ध करना शुभ और अनिवार्य माना गया है।
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