।। महानंदा नवमी व्रत पूजा विधि ।।
- ब्रह्म मुहूर्त में उठें (सूर्योदय से पहले का समय)।
- घर का कूड़ा-कचरा इकट्ठा करके सूप में डालें और उसे घर से बाहर कर दें। यह क्रिया अलक्ष्मी (दरिद्रता) का विसर्जन मानी जाती है।
- नित्यकर्मों (शौच आदि) से निवृत्त होकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल को साफ़ करें और वहाँ महालक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- मूर्ति/चित्र को अक्षत (चावल), पुष्प (फूल), धूप, गंध (इत्र/अबीर) आदि अर्पित करें।
- पूजा स्थल के मध्य में एक अखंड दीपक जलाएँ जो पूरी रात जलता रहे।
- विधि-विधान से माँ लक्ष्मी की पूजा करें।
- महालक्ष्मी के मंत्र “ॐ ह्रीं महालक्ष्म्यै नमः” का जाप करें। यह मंत्र लक्ष्मी जी का मूल मंत्र है और अत्यंत फलदायी माना जाता है।
- माँ लक्ष्मी को बताशे और मखाने का भोग लगाएँ। ये दोनों ही वस्तुएँ लक्ष्मी जी को प्रिय मानी जाती हैं।
- यदि आपके पास श्री यंत्र है तो उसकी भी पूजा करें। श्री यंत्र लक्ष्मी जी का प्रतीक है और इसकी पूजा से धन, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
- महानंदा नवमी के दिन पूरी रात जागरण करना चाहिए। माना जाता है कि इससे माँ लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। आप भजन-कीर्तन, मंत्र जाप या लक्ष्मी जी की कथाएँ पढ़कर जागरण कर सकते हैं।
- रात में पूजा करने के बाद ही व्रत का पारण करें। पारण का अर्थ है व्रत तोड़ना।
।। महानंदा नवमी व्रत कथा ।।
पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है कि एक साहूकार की बेटी पीपल की पूजा करती थी। उस पीपल में लक्ष्मीजी का वास था। लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से मित्रता कर ली। एक दिन लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी को अपने घर ले जाकर खूब खिलाया-पिलाया और ढेर सारे उपहार दिए।
जब वो लौटने लगी तो लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से पूछा कि तुम मुझे कब बुला रही हो? अनमने भाव से उसने लक्ष्मीजी को अपने घर आने का निमंत्रण तो दे दिया किंतु वह उदास हो गई। साहूकार ने जब पूछा तो बेटी ने कहा कि लक्ष्मीजी की तुलना में हमारे यहां तो कुछ भी नहीं है। मैं उनकी खातिरदारी कैसे करूंगी?
साहूकार ने कहा कि हमारे पास जो है, हम उसी से उनकी सेवा करेंगे। फिर बेटी ने चौका लगाया और चौमुख दीपक जलाकर लक्ष्मीजी का नाम लेती हुई बैठ गई। तभी एक चील नौलखा हार लेकर वहां डाल गया। उसे बेचकर बेटी ने सोने का थाल, साल दुशाला और अनेक प्रकार के व्यंजनों की तैयारी की और लक्ष्मीजी के लिए सोने की चौकी भी लेकर आई।
थोड़ी देर के बाद लक्ष्मीजी गणेशजी के साथ पधारीं और उसकी सेवा से प्रसन्न होकर सब प्रकार की समृद्धि प्रदान की। अत: जो मनुष्य महानंदा नवमी के दिन यह व्रत रखकर श्री लक्ष्मी देवी का पूजन-अर्चन करता है उनके घर स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है तथा दरिद्रता से मुक्ति मिलती है तथा दुर्भाग्य दूर होता है।
श्री महानंदा नवमी पर पूजा के स्थान पर एक दीपक जलाकर ओम हीं महालक्ष्मैय नमः मंत्र का जाप करने से जीवन में सुखों का आगमन एवं कष्टों की कमी होती है। घर का कूड़ा करकट एकत्रित कर उसे किसी घर से बाहर करना चाहिए। इसे लक्ष्मी का विसर्जन कहा जाता है। विधि-विधान से स्नान ध्यान कर पूजा कर महालक्ष्मी का हाथ जोड़कर आहवान करने से वे जरूर ही घर में आती हैं और अपने आशीर्वाद से आपको धन-धान्य से समृद्ध कर देती हैं।
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