भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग दसवें स्थान पर स्थित है और यह गुजरात राज्य के द्वारका जिले के गोमती नदी के किनारे स्थित है। यह अत्यंत पवित्र और प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है, जहाँ भगवान शिव का दिव्य रूप ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित है।
इसे लेकर कुछ मत भिन्नताएँ हैं, जहाँ कुछ विद्वानों के अनुसार यह महाराष्ट्र के परभनी और हिंगोली के बीच स्थित है, जबकि शिवपुराण में इसका वर्णन दारुकावन (गुजरात) में किया गया है। इसी कारण यह स्थान विशेष धार्मिक महत्व रखता है और यहाँ दर्शन करने से भक्तों को पुण्य की प्राप्ति होती है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन और पूजा से पापों का नाश होता है, मन की शांति मिलती है और आध्यात्मिक उन्नति होती है। जो भक्त पूर्ण श्रद्धा से यहाँ पूजा करता है, उसकी सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं और उसे भगवान शिव के आशीर्वाद से जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह स्थान न केवल भक्तों को मानसिक शांति देता है, बल्कि उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
प्राचीन समय में दारुका नामक राक्षसी थी, जो देवी पार्वती से वरदान प्राप्त करके अत्यधिक शक्तिशाली और अहंकारी बन गई थी। उसका पति दारुक भी एक शक्तिशाली राक्षस था। वह अपनी शक्ति का प्रयोग ऋषि-मुनियों को प्रताड़ित करने, धर्म के प्रति विरोध करने और अधर्म फैलाने में करता था।
उसकी और उसकी पत्नी की सत्ता के कारण समुद्र तट पर स्थित एक विशाल वन में राक्षसों का शासन था। यह वन किसी भी स्थान पर अपने इच्छानुसार स्थानांतरित हो सकता था। यह वन दारुका ने समुद्र के भीतर स्थापित कर दिया और वहां के प्राणियों को दुखी कर दिया।
एक दिन, सुप्रिय नामक एक वैश्य और उसके साथियों को राक्षसों ने बंदी बना लिया। सुप्रिय, जो भगवान शिव के परम भक्त थे, नौका में रहते हुए ‘नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करते रहे। राक्षसों ने उनकी भक्ति से नाराज होकर उन्हें दंड देने का प्रयास किया, लेकिन सुप्रिय ने भगवान शिव से प्रार्थना की।
भगवान शिव उनके आह्वान पर स्वयं प्रकट हुए और अपनी दिव्य शक्ति से सभी राक्षसों का नाश कर दिया। इसके बाद, भगवान शिव ने उस वन में राक्षसों के वास पर रोक लगा दी और इसे एक पवित्र क्षेत्र बना दिया। यहाँ भगवान शिव ने स्वयं ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हो कर भक्तों की रक्षा की और इस स्थान को भव्य मन्दिर का रूप दिया।
नागेश्वर तीर्थ क्षेत्र के प्रमुख स्थान
- द्वारकाधीश मंदिर – यह भगवान श्री कृष्ण को समर्पित एक प्रमुख और ऐतिहासिक मंदिर है, जो द्वारका में स्थित है। यहाँ भगवान कृष्ण की उपस्थिति और उनके अद्भुत कार्यों का वर्णन किया गया है।
- रुक्मणी देवी मंदिर – रुक्मणी देवी का यह मंदिर द्वारका में स्थित है और यह रुक्मणी देवी की पूजा अर्चना के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ आने से भक्तों को विशेष आशीर्वाद मिलता है।
- भड़केश्वर महादेव मंदिर – यह मंदिर भगवान शिव के एक अन्य रूप को समर्पित है और भक्त यहाँ विशेष रूप से शिव की पूजा करते हैं।
- गोपी तालाब – यह तालाब द्वारका के पास स्थित है और इसे गोपियाँ तथा भगवान कृष्ण से जुड़ी कथाओं के कारण अत्यंत पवित्र माना जाता है।
- गोमती घाट – गोमती नदी के किनारे स्थित यह घाट भक्तों के लिए स्नान और पूजा करने का एक पवित्र स्थान है।
- सुदामा सेतु – यह सेतु द्वारका और सुदामा के बीच एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, जो भगवान कृष्ण और सुदामा की मित्रता को याद करता है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास और पौराणिक महत्व
युगों के परिवर्तन के साथ, द्वापर युग में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। इसी युग में कौरवों ने द्यूत (जुए) के खेल में पांडवों को हराया और उन्हें 12 वर्षों के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास की सजा मिली। वनवास के दौरान, पांडव विभिन्न स्थलों पर भ्रमण करते हुए इस दारुकावन पहुंचे।
कहानी के अनुसार, उनके साथ एक गाय थी, जो प्रतिदिन एक तालाब में जाकर दूध छोड़ती थी। भीम ने यह देखा और उसे समझने के लिए गाय का पीछा किया। सरोवर में जाकर, भीम ने देखा कि गाय, प्रतिदिन एक शिवलिंग पर दूध चढ़ा रही थी। इसे देखकर पांडवों ने उस स्थान की महत्ता को समझा और शिवलिंग का पूजन करने का निश्चय किया। भीम ने अपनी गदा से तालाब के चारों ओर प्रहार किया, जिससे सरोवर नष्ट हुआ और शिवलिंग प्रत्यक्ष हुआ।
श्रीकृष्ण ने पांडवों को इस शिवलिंग के बारे में जानकारी दी और बताया कि यह नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है। तब पांडवों ने यहाँ एक भव्य पत्थर का मंदिर बनवाया, जिससे इस पवित्र स्थल की महत्ता और भी बढ़ गई।
यादव काल का योगदान
समय के साथ, यह मंदिर हेमाडपंथी शैली में सेउना (यादव) वंश द्वारा 13वीं शताब्दी में पुनर्निर्मित किया गया। यादवों द्वारा बनाए गए इस सात मंजिला मंदिर का स्थापत्य अद्भुत था और उसने इस क्षेत्र की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत किया।
1600 ईस्वी के बाद का इतिहास
छत्रपति संभाजी महाराज के शासनकाल में औरंगजेब ने इस मंदिर को नष्ट कर दिया। इसके बाद, मराठा साम्राज्य की प्रसिद्ध रानी अहिल्याबाई होल्कर ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया और वर्तमान में दिखने वाले इस मंदिर का शिखर उन्होंने ही स्थापित किया।
आधुनिक काल में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
आज यह मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। हर साल महाशिवरात्रि पर यहाँ एक विशाल मेला लगता है और रथोत्सव का आयोजन किया जाता है। महाशिवरात्रि के पाँच दिन बाद होने वाले इस रथोत्सव में भक्तों का अपार सैलाब उमड़ता है, जो नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की दिव्यता को अनुभव करने आता है।
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