पोलाला अमावस्या, जिसे कुशग्रहणी अमावस्या, पिठोरी अमावस्या, या भाद्रपद अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत श्रावण मास की अमावस्या तिथि को रखा जाता है।
भारतीय संस्कृति में व्रतों का महत्व अत्यधिक है। ये व्रत धार्मिक और सामाजिक महत्व के साथ-साथ व्यक्ति के आत्मिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन व्रतों में से एक है पोलाला अमावस्या व्रत। इस व्रत का महत्व और पूजा विधान हम यहाँ जानेंगे।
पोलाला अमावस्या व्रत एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसका पालन करने से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। यदि आप पितरों को प्रसन्न करना चाहते हैं और अपने जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त करना चाहते हैं, तो आपको इस व्रत को अवश्य रखना चाहिए।
पोलाला अमावस्या व्रत पौराणिक कथा
इस व्रत से जुड़ी एक पौराणिक कथा है। एक बार, ऋषि लोमेश नामक एक ऋषि थे, जिनके सात पुत्र थे। श्रावण मास की अमावस्या तिथि को, ऋषि लोमेश ने अपने सातों पुत्रों को गंगा नदी में स्नान करने और पितरों का तर्पण करने का आदेश दिया। ऋषि के पुत्रों ने ऐसा ही किया।
तर्पण के बाद, ऋषि पुत्रों ने गायों को खिलाया और ब्राह्मणों को भोजन दान किया। इस पुण्य कार्य से ऋषि लोमेश के पितर प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन देने आए। ऋषि पितरों ने अपने पुत्रों को आशीर्वाद दिया और उनसे कहा कि जो भी व्यक्ति श्रावण मास की अमावस्या को व्रत रखकर पितरों का तर्पण करेगा, उसे पितृ दोष से मुक्ति मिलेगी और उसे सुख-समृद्धि प्राप्त होगी।
पिठोरी अमावस्या व्रत कथा
इस अमावस्या की व्रत कथा के अनुसार बहुत समय पहले की बात है। एक परिवार में सात भाई थे। सभी का विवाह हो चुका था। सबके छोटे-छोटे बच्चे भी थे। परिवार की सलामती के लिए सातों भाइयों की पत्नी पिठोरी अमावस्या का व्रत रखना चाहती थीं। लेकिन जब पहले साल बड़े भाई की पत्नी ने व्रत रखा तो उनके बेटे की मृत्यु हो गई। दूसरे साल फिर एक और बेटे की मृत्यु हो गई। सातवें साल भी ऐसा ही हुआ।
तब बड़े भाई की पत्नी ने इस बार अपने मृत पुत्र का शव कहीं छिपा दिया। गांव की कुल देवी मां पोलेरम्मा उस समय गांव के लोगों की रक्षा के लिए पहरा दे रही थीं। उन्होंने जब इस दु:खी मां को देखा तो वजह जाननी चाही। तब बड़े भाई की पत्नी ने सारा किस्सा देवी पोलेरम्मा को सुनाया, तो देवी को उस पर दया आ गई।
देवी पोलेरम्मा ने उस दु:खी मां से कहा कि, वह उन सभी स्थानों पर हल्दी छिड़क दें, जहां-जहां उनके बेटों का अंतिम संस्कार हुआ है। तब बड़े भाई की पत्नी ने ऐसा ही किया। जब वह घर लौटी तो सातों पुत्र को जीवित देख, उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। तभी से उस गांव की हर माता अपने संतान की लंबी उम्र की कामना से पिठोरी अमावस्या का व्रत रखने लगीं। आज के दिन यह कथा सुनीं और पढ़ी जाती है।
उत्तर भारत में यह पर्व पिठोरी अमावस्या के नाम से माता दुर्गा की आराधना करके मनाया जाता है, वही दक्षिण भारत में यह त्योहार पोलाला अमावस्या के रूप में मां पोलेरम्मा जिन्हें मां दुर्गा का ही एक रूप माना जाता है, कि पूजा-अर्चना के साथ मनाने की परंपरा है।
पोलाला अमावस्या व्रत का महत्व
- पोलाला अमावस्या व्रत पितरों को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का उत्तम अवसर है।
- इस व्रत को रखने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
- यह व्रत पुण्य प्राप्ति और मोक्ष प्राप्ति का द्वार भी माना जाता है।
- इस व्रत को रखने से ग्रहों की शांति होती है और कुंडली में मौजूद दोष दूर होते हैं।
- यह व्रत निसंतान दंपतियों के लिए भी लाभकारी माना जाता है।
पोलाला अमावस्या व्रत पूजा विधान
- पोलाला अमावस्या व्रत को नियमित रूप से करने के लिए कुछ विशेष पूजा विधान होते हैं। इस व्रत को अमावस्या के दिन शुरू किया जाता है।
- लोग इस दिन भगवान विष्णु की मूर्ति की पूजा करते हैं और उन्हें पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, और प्रसाद समर्पित करते हैं।
- इसके अलावा, भक्तों को पोलाला का व्रत रखने के दौरान उपवास भी करना पड़ता है। उन्हें त्याग, दान, और ध्यान का भी ध्यान रखना चाहिए।
- पोलाला अमावस्या के दिन प्रातःकाल उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- अपने घर में पितरों के लिए एक वेदी बनाएं।
- वेदी पर जल, दूध, घी, फल, फूल, और मिठाई रखें।
- पितरों का ध्यान करें और उन्हें तर्पण दें।
- गायों को खिलाएं और ब्राह्मणों को भोजन दान करें।
- दिन भर व्रत रखें और शाम को सूर्यास्त के बाद व्रत का पारण करें।
पोलाला अमावस्या व्रत के नियम
- इस व्रत के दिन लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा, और नॉन-वेज का सेवन नहीं करना चाहिए।
- ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
- दिन भर सत्य बोलना चाहिए और किसी से भी झगड़ा नहीं करना चाहिए।
- दान-पुण्य करना चाहिए।
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