पंचांग के अनुसार, चैत्र माह का पहला प्रदोष व्रत 27 मार्च 2025 (Pradosh Vrat 2025) को रखा जाएगा। हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और व्यक्ति के जीवन में सफलता के मार्ग खुलते हैं।
प्रदोष व्रत का पालन करने से जीवन में धन, समृद्धि, सफलता और शांति प्राप्त होती है। इस दिन भगवान शिव का पूजन एवं शिव मृत्युंजय स्तोत्र का पाठ अवश्य करें, जिससे न केवल मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, बल्कि सभी नकारात्मक शक्तियां भी दूर हो जाती हैं।
प्रदोष व्रत का लाभ और शिव मृत्युंजय स्तोत्र का पाठ
यदि आप अपने जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति चाहते हैं, तो प्रदोष व्रत के दिन शिव मृत्युंजय स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। यह पाठ करने से भगवान महादेव प्रसन्न होते हैं और अशुभ ग्रहों के दोष समाप्त होते हैं।
प्रदोष व्रत के दिन क्या करें?
- सूर्योदय से पहले स्नान कर संकल्प लें।
- भगवान शिव-पार्वती का पूजन करें और बेलपत्र, धतूरा, अक्षत, जल एवं गंगाजल अर्पित करें।
- ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप करें और शिव मृत्युंजय स्तोत्र का पाठ करें।
- रात्रि के समय दीपदान और शिव चालीसा का पाठ करें।
प्रदोष व्रत के दिन दान का महत्व
अगर आपकी कुंडली में चंद्र दोष है, तो इस दिन चावल, चीनी और दूध का दान मंदिर में या जरूरतमंदों को करें। ऐसा करने से चंद्र ग्रह मजबूत होता है, जिससे मानसिक शांति मिलती है और जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
शिव मृत्युंजय स्तोत्र (Chandra Shekhara Ashtakam)
रत्नसानुशरासनं रजताद्रिश्रृंगनिकेतनं
शिञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युतानलसायकम्।
क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदशालयैरभिवंदितं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥
पंचपादपपुष्पगन्धिपदाम्बुजद्वयशोभितं
भाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रहम्।
भस्मदिग्धकलेवरं भवनाशिनं भवमव्ययं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥
मत्तवारणमुख्यचर्मकृतोत्तरीयमनोहरं
पंकजासनपद्मलोचनपूजितांगघ्रिसरोरुहम्।
देवसिद्धतरंगिणी करसिक्तशीतजटाधरं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥
कुण्डलीकृतकुण्डलीश्वरकुण्डलं वृषवाहनं
नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं भुवनेश्वरम्।
अंधकान्तकमाश्रितामरपादपं शमनान्तकं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥
यक्षराजसखं भगाक्षिहरं भुजंगविभूषणं
शैलराजसुतापरिष्कृतचारुवामकलेवरम्।
क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥
भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं
दक्षयज्ञविनाशिनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम्।
भुक्तिमुक्तिफलप्रदं निखिलाघसंघनिबर्हणं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥
भक्तवत्सलमर्चतां निधिमक्षयं हरिदम्बरं
सर्वभूतपतिं परात्परमप्रमेयमनूपमम्।
भूमिवारिनभोहुताशनसोमपालितस्वाकृतिं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥
विश्वसृष्टिविधायिनं पुनरेव पालनतत्परं
संहरन्तमथ प्रपंचमशेषलोकनिवासिनम्।
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