|| राजा मुचुकुन्द की कथा ||
त्रेता युग में महाराजा मान्धाता के तीन पुत्र हुए: अमरीष, पुरू और मुचुकुन्द। युद्ध नीति में निपुण होने के कारण देवासुर संग्राम में इंद्र ने महाराज मुचुकुन्द को अपना सेनापति बनाया। युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद महाराज मुचुकुन्द ने विश्राम की इच्छा प्रकट की। देवताओं ने उन्हें वरदान दिया कि जो उनके विश्राम में अवरोध डालेगा, वह उनकी नेत्र ज्योति से वहीं भस्म हो जाएगा।
देवताओं से वरदान लेकर महाराज मुचुकुन्द श्यामाष्चल पर्वत (जहाँ अब मौनी सिद्ध बाबा की गुफा है) की एक गुफा में जाकर सो गए। इधर, जब जरासंध ने कृष्ण से बदला लेने के लिए मथुरा पर 18वीं बार चढ़ाई की, तो कालयवन भी युद्ध में जरासंध का सहयोगी बनकर आया। कालयवन महर्षि गार्ग्य का पुत्र और म्लेक्ष्छ देश का राजा था। वह कंस का भी परम मित्र था और भगवान शंकर से उसे युद्ध में अजय का वरदान मिला था।
भगवान शंकर के वरदान को पूरा करने के लिए भगवान कृष्ण रणक्षेत्र छोड़कर भागे। इसी कारण से कृष्ण को रणछोड़ भी कहा जाता है। कृष्ण को भागता देख कालयवन ने उनका पीछा किया। मथुरा से करीब सवासौ किमी दूर तक आकर श्यामाश्चल पर्वत की गुफा में पहुँच गए जहाँ मुचुकुन्द महाराज जी सो रहे थे।
कृष्ण ने अपनी पीताम्बरी मुचुकुन्द जी के ऊपर डाल दी और खुद एक चट्टान के पीछे छिप गए। कालयवन भी पीछा करते-करते उसी गुफा में आ गया। दंभ में भरे कालयवन ने सो रहे मुचुकुन्द जी को कृष्ण समझकर ललकारा। मुचुकुन्द जी जागे और उनकी नेत्र की ज्वाला से कालयवन वहीं भस्म हो गया।
भगवान कृष्ण ने मुचुकुन्द जी को विष्णुरूप के दर्शन दिए। मुचुकुन्द जी दर्शनों से अभिभूत होकर बोले, “हे भगवान! तापत्रय से अभिभूत होकर इस संसार चक्र में भ्रमण करते हुए मुझे कभी शांति नहीं मिली। देवलोक का बुलावा आया तो वहाँ भी देवताओं को मेरी सहायता की आवश्यकता हुई। स्वर्ग लोक में भी शांति प्राप्त नहीं हुई। अब मैं आपका ही अभिलाषी हूँ।” श्रीकृष्ण के आदेश से महाराज मुचुकुन्द जी ने पाँच कुण्डीय यज्ञ किया।
यज्ञ की पूर्णाहुति ऋषि पंचमी के दिन हुई। यज्ञ में सभी देवी-देवताओं और तीर्थों को बुलाया गया। इसी दिन भगवान कृष्ण से आज्ञा लेकर महाराज मुचुकुन्द गंधमादन पर्वत पर तपस्या के लिए प्रस्थान कर गए। वह यज्ञ स्थल आज पवित्र सरोवर के रूप में हमें इस पौराणिक कथा का बखान कर रहा है।
सभी तीर्थों का नेह जुड़ जाने के कारण धौलपुर में स्थित तीर्थराज मुचुकुन्द तीर्थों का भांजा भी कहा जाता है। हर वर्ष ऋषि पंचमी और बलदेव छठ को वहाँ लक्खी मेला लगता है। मेले में लाखों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं। शादियों की मौरछड़ी और कलंगी का विसर्जन भी वहीं किया जाता है। माना जाता है कि वहाँ स्नान करने से चर्म रोग संबंधी समस्त पीड़ाओं से छुटकारा मिलता है।
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