क्या आप शनि की साढ़ेसाती, ढैया, या शनि दोष से परेशान हैं? इस लेख में जानिए कैसे ‘शनि चालीसा’ पढ़कर आप शनिदेव की कृपा पा सकते हैं और जीवन की बाधाओं से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।
ज्योतिष शास्त्र में शनिदेव को न्याय का देवता और कर्मफल दाता कहा गया है। शनिदेव हर व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। शनि की चाल धीमी होती है, और जब वे किसी राशि में प्रवेश करते हैं, तो उसका प्रभाव लंबे समय तक रहता है। शनि की दो प्रमुख स्थितियां हैं, जिनसे लोग सर्वाधिक भयभीत रहते हैं – शनि की साढ़ेसाती और शनि की ढैया। इन दोनों ही अवधियों में व्यक्ति को अनेक प्रकार की चुनौतियों और परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में, शनि चालीसा का पाठ इन मुश्किलों से राहत पाने का एक अत्यंत प्रभावी और रामबाण उपाय माना जाता है।
शनि की साढ़ेसाती क्या है?
साढ़ेसाती का अर्थ है ‘साढ़े सात वर्ष’। जब शनि गोचरवश किसी व्यक्ति की जन्म राशि से बारहवीं, पहली और दूसरी राशि में भ्रमण करते हैं, तो यह अवधि साढ़ेसाती कहलाती है। शनि एक राशि में लगभग ढाई वर्ष तक रहते हैं, इस प्रकार इन तीनों राशियों में कुल साढ़े सात वर्ष का समय लगता है। साढ़ेसाती के दौरान व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। कार्यक्षेत्र में बाधाएं, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, पारिवारिक कलह और अनावश्यक व्यय जैसी स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं।
शनि की ढैया क्या है?
ढैया का अर्थ है ‘ढाई वर्ष’। जब शनि गोचरवश किसी व्यक्ति की जन्म राशि से चौथी या आठवीं राशि में भ्रमण करते हैं, तो यह अवधि ढैया कहलाती है। ढैया भी साढ़ेसाती की तरह ही कष्टकारी हो सकती है, हालांकि इसका प्रभाव साढ़ेसाती से थोड़ा कम होता है। ढैया के दौरान भी व्यक्ति को मानसिक तनाव, धन हानि, दुर्घटना और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
साढ़ेसाती और ढैया का प्रभाव क्यों होता है?
यह समझना महत्वपूर्ण है कि शनि का प्रभाव केवल नकारात्मक नहीं होता। शनिदेव हमें अनुशासन, धैर्य और कड़ी मेहनत का महत्व सिखाते हैं। वे हमारे अहंकार को कम करते हैं और हमें अपनी गलतियों से सीखने का अवसर देते हैं। साढ़ेसाती और ढैया की अवधि में व्यक्ति को अपने कर्मों का फल मिलता है। यदि व्यक्ति ने अच्छे कर्म किए हैं, तो उसे कम परेशानियां झेलनी पड़ती हैं और अंततः शुभ फल भी प्राप्त होते हैं। वहीं, यदि कर्म बुरे हैं, तो कष्ट अधिक हो सकते हैं। यह अवधि आत्मचिंतन और सुधार का समय होता है।
शनि चालीसा के पाठ के लाभ
- शनि चालीसा का नियमित पाठ साढ़ेसाती और ढैया के दौरान होने वाले कष्टों को कम करने में मदद करता है। यह शनि के अशुभ प्रभावों को शांत करता है और व्यक्ति को मानसिक शांति प्रदान करता है।
- शनि की दशा में अक्सर व्यक्ति मानसिक तनाव और भय से ग्रस्त रहता है। शनि चालीसा का पाठ मन को शांत करता है, आत्मविश्वास बढ़ाता है और नकारात्मक विचारों को दूर करता है।
- कई बार शनि के अशुभ प्रभाव से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। शनि चालीसा का पाठ इन समस्याओं को कम करने और आरोग्य प्रदान करने में सहायक होता है।
- कार्यक्षेत्र में आने वाली बाधाएं, नौकरी या व्यवसाय में अड़चनें और आर्थिक परेशानियां शनि की दशा के सामान्य लक्षण हैं। शनि चालीसा का पाठ इन बाधाओं को दूर करने और सफलता प्राप्त करने में मदद करता है।
- शनि के कारण होने वाली धन हानि और अनावश्यक व्यय से राहत मिलती है। शनि चालीसा का पाठ आर्थिक स्थिति को मजबूत करने और धन आगमन के मार्ग खोलने में सहायक होता है।
- शनिदेव धैर्य और सहनशीलता के प्रतीक हैं। उनके चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति में विपरीत परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति आती है।
- यदि शनिदेव की कृपा हो जाए, तो व्यक्ति को अकल्पनीय सफलता और उन्नति प्राप्त होती है। शनि चालीसा का नियमित पाठ शनिदेव को प्रसन्न करता है और उनके शुभ फल की प्राप्ति में सहायक होता है।
शनि चालीसा का पाठ कैसे करें?
शनि चालीसा का पाठ करने के कुछ विशेष नियम हैं, जिनका पालन करने से अधिक लाभ मिलता है:
- शनिदेव को शनिवार का दिन समर्पित है। अतः, शनिवार के दिन शनि चालीसा का पाठ विशेष रूप से फलदायी होता है।
- पाठ करने से पूर्व स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पश्चिम दिशा की ओर मुख करके बैठें, क्योंकि शनिदेव का वास पश्चिम दिशा में माना जाता है।
- यदि संभव हो, तो एक काले वस्त्र पर शनिदेव की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें। सरसों के तेल का दीपक जलाएं, नीले फूल, काले तिल और काले उड़द अर्पित करें।
- शनि चालीसा का पाठ प्रतिदिन या कम से कम प्रत्येक शनिवार को नियमित रूप से करना चाहिए।
- सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पाठ पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ किया जाए।
- शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार को सात्विक भोजन करना चाहिए और मांसाहार व शराब से परहेज करना चाहिए।
शनि चालीसा – रामबाण उपाय
शनि चालीसा भगवान शनिदेव को समर्पित एक भक्तिमय स्तोत्र है, जिसमें चालीस छंद हैं। शनि चालीसा का नियमित पाठ शनि के नकारात्मक प्रभावों को कम करने और उनके शुभ आशीर्वाद प्राप्त करने का एक अत्यंत शक्तिशाली माध्यम माना जाता है। इसका पाठ करने से व्यक्ति के मन में सकारात्मकता आती है, भय दूर होता है और आंतरिक शक्ति बढ़ती है।
दोहा
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल ।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल ॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज ।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज ॥
चौपाई
जयति जयति शनिदेव दयाला ।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै ।
माथे रतन मुकुट छबि छाजै ॥
परम विशाल मनोहर भाला ।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके ।
हिय माल मुक्तन मणि दमके ॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा ।
पल बिच करैं अरिहिं संहारा ॥
पिंगल, कृष्णों, छाया नन्दन ।
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन ॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा ।
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं ।
रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं ॥
पर्वतहू तृण होई निहारत ।
तृणहू को पर्वत करि डारत ॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो ।
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो ॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई ।
मातु जानकी गई चुराई ॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा ।
मचिगा दल में हाहाकारा ॥
रावण की गतिमति बौराई ।
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ॥
दियो कीट करि कंचन लंका ।
बजि बजरंग बीर की डंका ॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा ।
चित्र मयूर निगलि गै हारा ॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी ।
हाथ पैर डरवाय तोरी ॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो ।
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो ॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों ।
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों ॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी ।
आपहुं भरे डोम घर पानी ॥
तैसे नल पर दशा सिरानी ।
भूंजीमीन कूद गई पानी ॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई ।
पारवती को सती कराई ॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा ।
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा ॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी ।
बची द्रौपदी होति उघारी ॥
कौरव के भी गति मति मारयो ।
युद्ध महाभारत करि डारयो ॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला ।
लेकर कूदि परयो पाताला ॥
शेष देवलखि विनती लाई ।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई ॥
वाहन प्रभु के सात सजाना ।
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी ।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं ।
हय ते सुख सम्पति उपजावैं ॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा ।
सिंह सिद्धकर राज समाजा ॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै ।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै ॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी ।
चोरी आदि होय डर भारी ॥
तैसहि चारि चरण यह नामा ।
स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा ॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं ।
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं ॥
समता ताम्र रजत शुभकारी ।
स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी ॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै ।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला ।
करैं शत्रु के नशि बलि ढीला ॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई ।
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत ।
दीप दान दै बहु सुख पावत ॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा ।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ॥
दोहा
पाठ शनिश्चर देव को, की हों भक्त तैयार ।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ॥
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