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षटतिला एकादशी कैसे करें? जानिए व्रत के नियम, कथा और पूजा विधि

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षटतिला एकादशी का व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस एकादशी का अत्यधिक धार्मिक महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से समस्त पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। “षटतिला” का अर्थ है छह प्रकार के तिलों का उपयोग, जो इस व्रत का प्रमुख भाग है। तिलों का उपयोग स्नान, उबटन, हवन, भोजन, दान और तर्पण में किया जाता है।

षटतिला एकादशी व्रत का पालन करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और पुण्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत में तिल का विशेष महत्व है, जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि प्रदान करता है। विधिपूर्वक व्रत और पूजा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन होता है।

षटतिला एकादशी व्रत 2025

  • षटतिला एकादशी शनिवार, जनवरी 25, 2025 को
  • एकादशी तिथि प्रारम्भ – जनवरी 24, 2025 को 09:55 पी एम बजे
  • एकादशी तिथि समाप्त – जनवरी 25, 2025 को 11:01 पी एम बजे
  • पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 26 जनवरी को 07:27 ए एम से 09:51 ए एम

षटतिला एकादशी व्रत के नियम

  • दशमी तिथि के दिन सूर्यास्त से पहले स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा करें। इस दिन लवंग, सुपारी, फल आदि का दान करें।
  • एकादशी तिथि के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और फिर व्रत का संकल्प लें। इस दिन अन्न, नमक, मसाले आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। आप केवल फल, फलाहार और साबुदाना आदि का सेवन कर सकते हैं।
  • द्वादशी तिथि के दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें। भगवान विष्णु की पूजा और एकादशी माता आरती करें फिर ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान दें।
  • व्रत के एक दिन पहले दशमी तिथि को संकल्प लें और सात्विक भोजन ग्रहण करें।
  • व्रत के दिन सूर्योदय से पूर्व उठें, स्नान करें और व्रत का संकल्प लें। इस दिन निर्जला व्रत रखें। यदि स्वास्थ्य कारणों से निर्जला व्रत न रख सकें तो फलाहार कर सकते हैं।
  • तिल मिले जल से स्नान करें। इससे शरीर शुद्ध होता है और पापों का नाश होता है।
  • तिल, गुड़, कपड़े, भोजन और दक्षिणा का दान करें। इस दिन तिल का दान विशेष फलदायी होता है।

षटतिला एकादशी व्रत पूजा विधि

षटतिला एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन तिल का प्रयोग 6 तरीकों से किया जाता है: तिल स्नान, तिल का उबटन, तिल का हवन, तिल का तर्पण, तिल का भोग और तिल का दान।

  • ब्रह्म मुहूर्त में जागकर तिल मिले जल से स्नान करें।
  • स्नान के बाद भगवान विष्णु की पूजा प्रारंभ करें। पूजा के लिए चंदन, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि सामग्री का उपयोग करें।
  • पूरे दिन निराहार व्रत रखें। फलाहार कर सकते हैं, परंतु अन्न का सेवन न करें।
  • पूजा में तिल का प्रयोग निम्नलिखित तरीके से करें:
    • तिल स्नान: तिल मिले जल से स्नान करें।
    • तिल का उबटन: पिसे हुए तिल का उबटन करें।
    • तिल का हवन: तिलों का हवन करें।
    • तिल का तर्पण: तिल का तर्पण करें।
    • तिल का भोग: भगवान विष्णु को तिल का भोग लगाएं।
    • तिल का दान: तिलों का दान करें।
  • संध्या समय भगवान विष्णु का पुनः पूजन करें और उन्हें तिल का भोग लगाएं।
  • षटतिला एकादशी की व्रत कथा का पाठ या श्रवण करें।
  • भगवान विष्णु की प्रिय तुलसी के समीप दीपक जलाएं।
  • अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें।

इस विधि से षटतिला एकादशी व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और समस्त पापों का नाश होता है।

षटतिला एकादशी पर तिल का महत्व

अपने नाम के अनुरूप, षटतिला एकादशी का व्रत तिल से जुड़ा हुआ है। तिल का महत्व हिन्दू धर्म में अत्यधिक पवित्र माना जाता है और विशेषकर पूजा में इनका विशेष स्थान है। इस दिन तिल का छह प्रकार से उपयोग किया जाता है:

  • तिल के जल से स्नान करें: इस दिन तिल के पानी से स्नान करने से शरीर की समस्त अशुद्धियां समाप्त होती हैं और पापों का नाश होता है।
  • पिसे हुए तिल का उबटन करें: तिल का उबटन करने से त्वचा के रोगों का नाश होता है और शरीर स्वस्थ रहता है।
  • तिलों का हवन करें: तिलों का हवन करने से वातावरण शुद्ध होता है और पवित्रता का आभास होता है।
  • तिल मिला हुआ जल पीयें: तिल मिला जल पीने से शारीरिक और मानसिक शुद्धि होती है, साथ ही सेहत में भी सुधार आता है।
  • तिलों का दान करें: तिलों का दान करने से पापों का नाश होता है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, जिससे स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।
  • तिलों की मिठाई और व्यंजन बनाएं: तिल की मिठाई और अन्य व्यंजन बनाने से घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।

मान्यता है कि इस दिन तिलों का दान करने से न केवल पापों का नाश होता है, बल्कि भगवान विष्णु की कृपा से स्वर्गलोक की प्राप्ति भी होती है। इसलिए, इस व्रत में तिलों का उपयोग विशेष रूप से पुण्य और लाभकारी माना गया है।

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