|| नर्मदा जयंती पूजन विधि ||
- हिंदू धर्म में नदियों में स्नान करना बहुत ही पुण्य का काम माना जाता है।
- नर्मदा जयंती पर सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के मध्य नर्मदा किसी भी समय स्नान किया जा सकता है।
- इस पावन अवसर पर प्रातः जल्दी उठकर नर्मदा में स्नान करने के बाद सुबह फूल, धूप, अक्षत, कुमकुम, आदि से नर्मदा मां के तट पर पूजन करना चाहिए।
- इसके साथ ही इस पावन पर्व पर नर्मदा नदी पर दीप जलाकर दीपदान करना शुभ रहता है।
|| नर्मदा नदी का महत्व ||
धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव के द्वारा मां नर्मदा का अवतरण हुआ था। नर्मदा नदी की महिमा का चारो वेदों में वर्णन है। इसके अलावा रामायण और महाभारत में भी इस नदी उल्लेख है। इसी दिव्य नदी के नर्मदेश्वर शिवलिंग विराजमान हैं, जो हिन्दू आस्था का बड़ा केन्द्र माना जाता है। मान्यता है कि इसी नदी के तट पर साधना करते हुए देवताओं और ऋषि-मुनियों ने सिद्धियां प्राप्त की थी।
|| श्री नर्मदा व्रत कथा ||
बहुत समय हुआ नर्मदापुरम नगर में एक निर्धन शर्मा परिवार रहा करता था शर्मा जी कुसंगति में पढ़कर कुमार्ग पर चल रहे थे उनकी धर्मपत्नी ईश्वर के प्रति आस्थावान परम आस्तिक नियमित नर्मदा स्नान एवं ईश्वर स्मरण किया करती थी ।
नित्य प्रति रात्रि में पड़ोस के अग्रवाल परिवार में नर्मदा जी का पूजन और आरती होते रहने से उसकी उत्सुकता भी बढ़ी एक दिन श्रीमती अग्रवाल से चर्चा के दौरान श्रीमती शर्मा ने श्री नर्मदा व्रत की महिमा तथा पूजन के प्रभाव से उसके पति के व्यापार में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि होने की बात सुनी ।
श्रीमती शर्मा के पूछने पर श्रीमती अग्रवाल ने भी नर्मदा व्रत की विधि बताई और कहा कि यह श्री नर्मदा का व्रत किसी भी माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी से किया जाता है ।
हर माह की दोनों सप्तमी में नर्मदा जी का पूजन करते हुए 7 सप्तमी तक करके पूर्ण किया जाता है तथा 7 सप्तमी के बाद पड़ने वाली शुक्ल पक्ष की सप्तमी को इसका उद्यापन करना चाहिए ।
उद्यापन के समय नर्मदा भक्तों / परिक्रमा वासियों या 7 कन्याओं को भोजन कराएं एवं नर्मदा व्रत कथा की एक-एक प्रति भेंट में अवश्य दें इस प्रकार नर्मदा व्रत की पूरी जानकारी प्राप्त कर श्रीमती शर्मा ने शुक्ल पक्ष की सप्तमी से सात सप्तमी तक व्रत किया ।
नर्मदा मैया से सच्चे दिल से पतिदेव के सदमार्ग पर आने की प्रार्थना की तथा उनके कुछ काम में लगने की भी मनोकामना करती रही ।
कुछ दिनों में शर्मा जी भी एक कंपनी में काम करने लगे तथा दिनचर्या में सुधार आने से मां नर्मदा की कृपा से अभाव दूर होने लगे ।
एक दिन श्रीमती शर्मा समीप के शिव मंदिर में गई वहां उसकी बचपन की सहेली रमा चौहान से अचानक भेंट हुई दोनों सहेलियां बड़ी देर तक अपने सुख-दुख की चर्चा करती रही ।
इसी बीच रमा चौहान की उदासी जानकारी श्रीमति शर्मा ने पूछा बहन क्या कारण है कि तुम्हारा चेहरा उतरा हुआ है श्रीमती शर्मा के यह कहने पर श्रीमती रमा चौहान ने बताया बहन शादी को हुए पांच वर्ष हो गए हैं पर अभी तक मैं संतान के सुख से वंचित हूं ।
तब श्रीमती शर्मा ने विश्वास फलदायकम कहते हुए कहा बहन कलयुग में श्री हनुमान जी और श्री नर्मदा जी प्रत्यक्ष देवता है तू नर्मदा मैया का सात सप्तमी वाला व्रत का संकल्प लेकर व्रत कर मैया की कृपा से तुझे अवश्य संतान प्राप्त होगी ।
श्रीमती चौहान ने भी यह व्रत किया जिसके फलस्वरूप उसे संतान का सुख मिला अब तो वह भी नियमित पूजन आराधना करने लगी ।
एक बार वह मध्यान्ह में नर्मदा जी का पूजन कर नर्मदा चालीसा एवं नर्मदाष्टक के पाठ के उपरांत आरती कर रही थी उसी समय उसकी मौसी की लड़की पदमा अपने पतिदेव के साथ मिलने आई उस समय नर्मदा जी की आरती हो रही थी ।
अतः पदमा भी अपने पति के साथ आरती में सम्मिलित हुई भोजन के उपरांत पद्मा ने व्रत के बारे में जिज्ञासा प्रकट की तब श्रीमती रमा ने समझाया बहन शिव की पुत्री मां नर्मदा सभी मनोकामना पूर्ण करने वाली शीघ्र प्रसन्न होने वाली देवी है इनका व्रत करने से भगवान शिव की एवं नर्मदा की परम कृपा प्राप्त होती है ।
घर में सभी प्रकार की सुख समृद्धि एवं सफलता प्राप्त आती है पद्मा ने भी अपने घर जाकर श्रद्धा भक्ति से नियम पूर्वक सात सप्तमी को मां नर्मदा जी का व्रत पूजन किया जिसके प्रभाव से उसकी पुत्री का भी अच्छे परिवार में संबंध हुआ ।
अपनी मां से प्रभावित होकर पुत्री ने भी ससुराल में जाकर नर्मदा का व्रत कर सुखी जीवन का लाभ लिया ।
इसी तरह जो भी नर्मदा भक्त श्रद्धा भक्ति एवं विश्वास के साथ श्री नर्मदा स्नान एवं व्रत करेंगे श्री नर्मदा मैया की असीम कृपा से उन्हें किसी कठिनाई का मुंह नहीं देखना पड़ेगा ।
|| ॐ हर हर नर्मदे हर ||
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