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वीरभद्र गायत्री मंत्र विधि और लाभ

Veerbhadra Mantra Vidhi Labh Hindi

MiscMantra (मंत्र निधि)संस्कृत
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॥ वीरभद्र मंत्र का जाप विधि ॥

  • सुबह सूर्योदय के साथ या सूर्यास्त बाद करें।
  • बस्त्र रंग – लाल काधारण करे।
  • दक्षिण दिशा के और बैठे
  • सबसे पहले गणेश जी को अर्घ्य दें।
  • घी का दीपक जलाएं।
  • मन में वीरभद्र स्वामी का मानसिक चित्र बनाएं।
  • रुद्राक्ष माला के सहारे मंत्र का 108 बार जाप करें।
  • जाप करने के बाद कुछ समय ध्यान में अवश्य बैठें।
  • अगर संभव हो तो बकरी को चारा खिलाएं।

॥ बीरभद्र मंत्र पाठ के लाभ ॥

  • यदि पशुओं या हिंसक जीवों के प्राणहानि का भय हो, तो मंत्र के सात बार जप से निवारण हो सकता है।
  • मंत्र को एक हजार बार बिना रुके लगातार जप करने से स्मरण शक्ति में अद्भुत चमत्कार देखा जा सकता है।
  • मंत्र का बिना रुके लगातार दस हजार बार जप करने से त्रिकालदृष्टि, अर्थात् भूत, वर्त्तमान और भविष्य के संकेत पढ़ने की शक्ति विकसित होती है।
  • मंत्र का बिना रुके लगातार लक्षजप, यानी एक लाख जप रुद्राक्ष माला से करने पर खेचरत्व और भूचरत्व की प्राप्ति होती है।
  • इसके लिए लाल वस्त्र धारण करके, लाल आसन पर विराजमान होकर उत्तर दिशा की ओर मुख करना चाहिए।
  • इस साधना को हंसी-खेल नहीं समझना चाहिए। न ही इसे हंसी-ठहाके में प्रयास करना चाहिए। इसे आवश्यकता पड़ने पर और स्वयं या किसी अन्य के कल्याण के उद्देश्य से ही करना चाहिए। किसी को परेशान करने के उद्देश्य से करने पर उल्टा फल होगा।

॥ वीरभद्र मूल मंत्र ॥

ॐ ह्रौं हूं वं वीरभद्राय नमः॥

ॐ ह्रौं हुं वं वीरभद्राय नमः

वीरभद्र मंत्र (पहला ) वीरभद्र शाबर मंत्र

ॐ हं ठ: ठ: ठ: सैं चां ठं ठ: ठ: ठ: ह्र: ह्रौं ह्रौं ह्रैं क्षैं क्षों क्षैं क्षं ह्रौं ह्रौं क्षैं ह्रीं स्मां ध्मां स्त्रीं सर्वेश्वरी हुं फट् स्वाहा

वीरभद्र तीव्र मंत्र । वीरभद्र शाबर मंत्र

ॐ ड्रं ह्रौं बं जूं बं हूं बं स: बीर वीरभद्राय प्रस्फुर प्रज्वल आवेशय जाग्रय विध्वंसय क्रुद्धगणाय हुं

वीरभद्र गायत्री मंत्र

ॐ बिरनादाये विद्महे अघोर रूपाय धीमहि तन्नो बीरभद्रः प्रचोदयात्॥

श्री रक्ततारा तंत्रनाशक महामंत्र

रक्तवर्णकारिणी,मुण्ड मुकुटधारिणी, त्रिलोचने शिव प्रिये, भूतसंघ विहारिणी

भालचंद्रिके वामे, रक्त तारिणी परे, पर तंत्र-मंत्र नाशिनी, प्रेतोच्चाटन कारिणी

नमो कालाग्नि रूपिणी,ग्रह संताप हारिणि, अक्षोभ्य प्रिये तुरे, पञ्चकपाल धारिणी

नमो तारे नमो तारे, श्री रक्त तारे नमो।

ॐ स्त्रीं स्त्रीं स्त्रीं रं रं रं रं रं रं रं रं रक्तताराय हं हं हं हं हं घोरे-अघोरे

वामे खं खं खं खं खं खर्परे सं सं सं सं सं सकल

तन्त्राणि शोषय-शोषय सर सर सर सर सर भूतादि नाशय-नाशय स्त्रीं हुं फट।

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