।। 24 गायत्री मंत्र ।।
गणेश – गायत्री मन्त्र
ओइम् एक दंष्ट्राय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो बुद्धिः प्रचोदयात्।
नृसिंह – गायत्री मन्त्र
ओइम् उग्रनृसिंहाय विद्महे बज्रनखाय धीमहि तन्नो नृसिंह प्रचोदयात्।
विष्णु – गायत्री मन्त्र
ओइम् नारायण विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।
शिव – गायत्री मन्त्र
ओइम् पंचवक्त्राय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र प्रचोदयात्।
कृष्ण – गायत्री मन्त्र
ओइम् देवकी नन्दनाय विद्मये वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्णः प्रचोदयात्।
राधा – गायत्री मन्त्र
ओइम् वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि तन्नो राधा प्रचोदयात्।
लक्ष्मी – गायत्री मन्त्र
ओइम् महालक्ष्म्यै विद्महे विष्णुप्रियायै धीमहि तन्नो लक्ष्मीःप्रचोदयात्।
अग्नि – गायत्री मन्त्र
ओइम् महाज्वालाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि तन्नो अग्निः प्रचोदयात्।
इन्द्र – गायत्री मन्त्र
ओइम् सहस्रनेत्राय विद्महे ब्रघ्रहस्ताय धीमहि तन्नो इन्द्रः प्रचोदयात्।
सरस्वती – गायत्री मन्त्र
ओइम् सरस्वत्यै विद्महे ब्रह्मपुत्र्यै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्।
दुर्गा – गायत्री मन्त्र
ओइम् गिरिजायै विद्महे शिवप्रियायै धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्।
हनुमान – गायत्री मन्त्र
ओइम् अंजनी सुताय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि तन्नोमारुतिः प्रचोदयात्।
पृथ्वी – गायत्री मन्त्र
ओइम् पृथ्वी दैव्र्य विद्महे सहस्रमूत्यै धीमहि तन्नो पृथ्वी प्रचोदयात्।
सूर्य – गायत्री मन्त्र
ओइम् भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्यः प्रचोदयात्।
राम – गायत्री मन्त्र
ओइम् दाशरथये विद्महे सीताबल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात्।
सीता – गायत्री मन्त्र
ओइम् जनकनंदिन्यै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि तन्नो सीता प्रचोदयात्।
चन्द्र – गायत्री मन्त्र
ओइम् क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्तवाय धीमहि तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात्।
यम – गायत्री मन्त्र
ओइम् सूर्यपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि तन्नो यमः प्रचोदयात्।
ब्रह्म – गायत्री मन्त्र
ओइम् चतुर्मुखाय विद्महे हंसारूढ़ाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात्।
वरुण – गायत्री मन्त्र
ओइम् जलबिम्बाय विद्महे नील पुरुषाय धीमहि तन्नो वरुणः प्रचोदयात्।
नारायण – गायत्री मन्त्र
ओइम् नारायण विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो नारायणः प्रचोदयात्।
हयग्रीव – गायत्री मन्त्र
ओइम् वाणीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि तन्नो हयग्रीवः प्रचोदयात्।
हंस – गायत्री मन्त्र
ओइम् परमहंसाय विद्महे महाहंसाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात्।
तुलसी – गायत्री मन्त्र
ओइम् श्री तुलस्यै विद्महे विष्णुप्रियायै धीमहि तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।
।। गायत्री मंत्र जप के लाभ ।।
- गायत्री मंत्र में 24 अक्षर होते हैं, जो चौबीस शक्तियों और सिद्धियों के प्रतीक हैं। इसलिए ऋषियों ने गायत्री मंत्र को सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूरी करने वाला बताया है।
- इस 24 गायत्री मंत्र के कोई भी एक गायत्री मंत्र जो आपका उपास्य देव या देवता हे ,नियमित रूप से का सात बार जप करने से व्यक्ति के आसपास नकारात्मक शक्तियाँ कम होती हैं और उसकी मानसिक ताकत बढ़ती है।
- मन्त्र जप से मानसिक चिंताएं कम होती हैं और मन की शांति प्राप्त होती है।
- इसके अलावा जप से बौद्धिक क्षमता और मेधा शक्ति बढ़ती है, जिससे स्मरण शक्ति में सुधार होती है।
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