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Kartik Chaumasi Chaudas 2025 – कब है चौमासी चौदस? जानें जैनियों के वर्षावास की समाप्ति और इस दिन के 5 नियम

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जैन धर्म (Jainism) में त्योहारों और पर्वों का अपना एक विशेष महत्व होता है, जो आत्म-शुद्धि और अहिंसा (Non-violence) के सिद्धांतों पर आधारित होते हैं। इन्हीं महत्वपूर्ण दिनों में से एक है ‘कार्तिक चौमासी चौदस’। यह केवल एक तिथि नहीं, बल्कि चार माह के त्याग, तपस्या और साधना (Penance and spiritual practice) के बाद आत्म-चिंतन और क्षमा याचना का महापर्व है। यह दिन जैन मुनियों और श्रावकों के लिए वर्षावास की समाप्ति का प्रतीक है, जिसके बाद वे एक बार फिर विहार (Travelling) के लिए प्रस्थान करते हैं।

आइए, विस्तार से जानते हैं कि 2025 में यह पावन चौदस कब मनाई जाएगी, इसका महत्व क्या है और इस दिन कौन से 5 अनिवार्य नियम (Essential rules) हर जैन धर्मावलंबी को पालन करने चाहिए।

कब है कार्तिक चौमासी चौदस 2025? (Kartik Chaumasi Chaudas 2025 Date)

‘चौमासी चौदस’ साल में तीन बार आती है – फाल्गुन (Phalguna), आषाढ़ (Ashadh) और कार्तिक (Kartik) मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी (14वें दिन) तिथि को। इनमें कार्तिक चौमासी चौदस का महत्व सर्वाधिक माना जाता है, क्योंकि यह चार माह के ‘वर्षावास’ या ‘चातुर्मास’ की औपचारिक समाप्ति का संकेत देती है। वर्ष 2025 में, कार्तिक चौमासी चौदस की तिथि 4 नवंबर 2025, मंगलवार (Tuesday, November 4, 2025) कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्दशी है।

चौमासी चौदस का अर्थ और जैन धर्म में महत्व (Significance in Jainism)

‘चौमासी’ का अर्थ है ‘चार महीने’ और ‘चौदस’ का अर्थ है ‘चतुर्दशी’ (14वां दिन)। यह दिन चातुर्मास की अवधि के दौरान अनजाने में हुए सभी पापों, दोषों और भूलों के लिए आत्म-आलोचना (Self-criticism) और क्षमा मांगने का दिन है।

  • वर्षावास की समाप्ति – जैन साधु और साध्वियां वर्षा ऋतु के दौरान, आषाढ़ पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक, एक ही स्थान पर ठहरते हैं। इसे ‘वर्षावास’ या ‘चातुर्मास’ कहते हैं। इसका मुख्य कारण वर्षाकाल में छोटे जीवों की उत्पत्ति और वृद्धि है, ताकि विहार (Travelling) के दौरान उनकी हिंसा (Hinsa – injury) न हो। कार्तिक चौमासी चौदस, कार्तिक पूर्णिमा से ठीक एक दिन पहले आती है, जो इस चातुर्मास की तपस्या की पूर्णता का संकेत देती है।
  • प्रतिक्रमण (Pratikraman) – यह इस दिन का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान (Ritual) है। यह जैनियों द्वारा किया जाने वाला एक विशेष धार्मिक कृत्य है जिसमें वे पिछले चार महीनों में मन, वचन और काया से की गई सभी गलतियों के लिए प्रायश्चित (Atonement) करते हैं और ‘मिच्छामि दुक्कड़ं’ (क्षमा) मांगते हैं।
  • आत्मा की शुद्धि – यह पर्व आत्मा को शुद्ध करने, कर्मों की निर्जरा करने और सम्यक दर्शन, ज्ञान और चारित्र (Right faith, knowledge, and conduct) के मार्ग पर दृढ़ होने का अवसर देता है।

चातुर्मास (वर्षावास) की समाप्ति का उत्साह

चातुर्मास के चार महीने जैनियों के लिए गहन धार्मिक अध्ययन, तप और आराधना के होते हैं। इन महीनों में साधु-साध्वियों के सान्निध्य (Proximity) में धर्म लाभ मिलता है। कार्तिक चौमासी चौदस, इस लंबे संयम और तपस्या के काल का मंगलमय अंत करती है।

  • विहार का पुनरारंभ – इस दिन के बाद जैन मुनि-आर्यिकाएं अपनी धार्मिक यात्राओं (Religious journeys) यानी विहार को पुन: शुरू करते हैं, जिससे श्रावकों को देश के कोने-कोने में धर्म का लाभ मिल सके।
  • ज्ञान और दान – इस दौरान धार्मिक कथाओं, उपदेशों (Sermons) और स्वाध्याय (Self-study of scriptures) का आयोजन किया जाता है। श्रावक अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान-पुण्य करते हैं और जरूरतमंदों की सेवा करते हैं।

कार्तिक चौमासी चौदस के 5 अनिवार्य नियम (5 Essential Rules)

चौमासी चौदस के दिन प्रत्येक जैन श्रावक को आत्म-कल्याण (Self-welfare) के लिए इन 5 विशेष नियमों का पालन करना चाहिए:

चौमासी प्रतिक्रमण (The Grand Pratikraman)

  • यह इस दिन का सबसे महत्वपूर्ण नियम है। श्रावक सामूहिक रूप से या व्यक्तिगत रूप से चौमासी प्रतिक्रमण करते हैं।
  • इसमें पिछले चार माह के दौरान हुए ज्ञात-अज्ञात दोषों, जीव हिंसा और मर्यादा के उल्लंघन के लिए क्षमा मांगी जाती है। यह एक प्रकार का आत्म-निरीक्षण (Self-introspection) है।

त्याग और तपस्या (Austerity and Vows)

  • बहुत से जैन धर्मावलंबी इस दिन उपवास (Fasting) या आयंबिल (विशेष प्रकार का उपवास जिसमें केवल उबला हुआ भोजन बिना नमक, शक्कर या तेल के लिया जाता है) का नियम लेते हैं।
  • कई लोग एकासन (दिन में केवल एक बार भोजन) या ब्रह्मचर्य (Celibacy) के नियम का पालन करते हैं।

शाकाहार और हरी सब्जियों का त्याग (Avoidance of Specific Foods)

  • यद्यपि यह चातुर्मास की समाप्ति है, फिर भी जैन धर्म के सिद्धांत के अनुसार, चौमासी चौदस पर कंद-मूल (Root vegetables) और हरी सब्जियों (Green vegetables) के त्याग का नियम कड़ाई से पालन किया जाता है।
  • कंद-मूल जैसे आलू, प्याज, लहसुन आदि में अनंत काय (Anantkaya – countless living beings) होने के कारण हिंसा से बचने के लिए इनका त्याग किया जाता है।

देव-शास्त्र-गुरु वंदन (Worship and Reverence)

  • इस दिन जिनालयों (Jain Temples) में जाकर भगवान महावीर और अन्य तीर्थंकरों की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
  • साधु-साध्वियों (गुरुओं) की वंदना और धर्म शास्त्रों (शास्त्राध्ययन) का पाठ करना परम आवश्यक माना जाता है।

धर्म प्रचार और सेवा (Spreading Dharma and Service)

  • चौदस के दिन प्राप्त किए गए ज्ञान और तप को केवल स्वयं तक सीमित न रखकर, धर्म के सिद्धांतों (Principles) का प्रचार-प्रसार करना चाहिए।
  • अस्पताल, पाठशाला या गौशाला में दान करके सेवा कार्य में भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए।

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