नवरात्रि का पावन पर्व (Navratri Festival) एक ऐसा समय है जब प्रकृति और आध्यात्मिकता एक दिव्य ऊर्जा में समाहित हो जाते हैं। नौ दिनों तक चलने वाला यह उत्सव, आदि शक्ति माँ दुर्गा (Maa Durga) के नौ रूपों की उपासना का महापर्व है। इन नौ दिनों में से चौथा दिन विशेष रूप से मां कूष्मांडा (Maa Kushmanda) को समर्पित है।
क्या आप जानते हैं कि ब्रह्मांड की रचना (creation of the Universe) के पीछे भी इन्हीं देवी की एक मंद मुस्कान थी? जी हां, अपनी मंद, हल्की हंसी से अंड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण ही इन्हें ‘कूष्मांडा’ नाम से जाना जाता है। जब चारों ओर अंधकार और शून्य (void) था, तब माँ कूष्मांडा ने अपने दिव्य तेज से सृष्टि को आलोकित किया। इसीलिए इन्हें आदि शक्ति भी कहा जाता है।
आइए, इस चौथे दिन की दिव्य यात्रा में प्रवेश करें और जानते हैं, माँ कूष्मांडा का आह्वान मंत्र, उनकी सरल पूजा विधि और वह अनूठा रहस्य जिससे भक्तों को उनकी अद्भुत कृपा मिलती है।
माँ कूष्मांडा का स्वरूप – तेज और ओज का समन्वय
माँ कूष्मांडा का स्वरूप अत्यंत तेजोमय और अलौकिक है। ऐसा माना जाता है कि इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर है, जहाँ निवास करने की शक्ति किसी और में नहीं है। इसीलिए इनकी देह की कांति और तेज सूर्य के समान दैदीप्यमान (radiant) है।
- माँ कूष्मांडा आठ भुजाओं (Eight hands) वाली हैं, जिसके कारण इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है।
- उनके हाथों में कमंडल, धनुष-बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा सुशोभित हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों को देने वाली जपमाला (rosary) है।
- उनका वाहन सिंह (Lion) है, जो साहस और शौर्य (courage and valour) का प्रतीक है।
- ज्योतिष के अनुसार, माँ कूष्मांडा बुध ग्रह (Mercury) को नियंत्रित करती हैं, इसलिए इनकी पूजा से बुद्धि और विवेक में वृद्धि होती है।
माँ कूष्मांडा का आह्वान मंत्र
माँ कूष्मांडा की पूजा उनके मंत्रों के जाप बिना अधूरी है। ये मंत्र केवल शब्द नहीं, बल्कि देवी की शक्ति और ऊर्जा को आकर्षित करने का माध्यम हैं।
सरल आह्वान मंत्र (Beej Mantra) – नवरात्रि के चौथे दिन इस मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करना चाहिए।
ॐ देवी कूष्माण्डायै नम:॥
ध्यान/स्तुति मंत्र (Dhyana/Stuti Mantra) – यह मंत्र माँ के स्वरूप का वर्णन करता है और उनकी कृपा पाने के लिए सबसे शक्तिशाली माना जाता है:
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
अर्थ – अमृत से भरे कलश को दोनों हाथों में धारण करने वाली, रक्त से सना (या शुभ) और पद्म (कमल) के आसन पर विराजमान माँ कूष्मांडा हमें शुभता प्रदान करें।
सरल पूजा विधि – चरण-दर-चरण माँ का पूजन
माँ कूष्मांडा की पूजा अत्यंत सरल और भावपूर्ण होती है। इसे विधि-विधान से करने पर भक्तों को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है।
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इस दिन पूजा में हरे या नारंगी रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
- माँ कूष्मांडा की प्रतिमा या चित्र को चौकी पर स्थापित करें। कलश की पूजा करें और देवी को नमन करें।
- माँ को लाल पुष्प (Red Flowers), अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर और धूप-दीप अर्पित करें।
- माँ कूष्मांडा को मालपुआ (Malpua) का भोग अति प्रिय है। इसके अलावा, आप उन्हें सफेद कुम्हड़ा (White Gourd) या विविध प्रकार के फल भी अर्पित कर सकते हैं। मालपुए का भोग लगाने से बुद्धि का विकास होता है और निर्णय लेने की क्षमता (decision making power) बढ़ती है।
- रुद्राक्ष की माला से ऊपर दिए गए आह्वान मंत्र का कम से कम एक माला (108 बार) जाप करें।
- अंत में घी का दीपक जलाकर माँ कूष्मांडा की आरती करें और उनसे अपनी मनोकामनाएं (Wishes) कहें।
- भोग को प्रसाद के रूप में परिवार के सदस्यों और जरूरतमंदों में वितरित करें।
कृपा प्राप्ति का अनूठा रहस्य – सूर्यमंडल में वास
माँ कूष्मांडा की कृपा प्राप्ति का रहस्य उनके स्वरूप में ही छिपा है। वह सृष्टि की आदि शक्ति हैं, जिनमें सूर्य के मध्य (center of the sun) में निवास करने की क्षमता है। यह इस बात का प्रतीक है कि माँ अपने भक्तों को न केवल शारीरिक ऊर्जा (physical energy) बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक ऊर्जा भी प्रदान करती हैं।
कैसे पाएं माँ की विशेष कृपा?
- यदि घर में कोई लंबे समय से बीमार है, तो इस दिन माँ कूष्मांडा से उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए विशेष प्रार्थना करें। माँ की उपासना से रोगों (diseases) का नाश होता है और आयु में वृद्धि होती है।
- माँ कूष्मांडा को ब्रह्मांड की रक्षक भी कहा जाता है। इनकी पूजा से जीवन के सभी नकारात्मकता (negativity), भय और शोक दूर होते हैं। वे साधक के जीवन में सकारात्मकता और उत्साह का संचार करती हैं।
- विद्यार्थियों (students) को माँ कूष्मांडा की पूजा विशेष रूप से करनी चाहिए। इनकी कृपा से बुद्धि का विकास होता है, ज्ञान की प्राप्ति होती है और कौशल (skill) बढ़ता है।
- योग और आध्यात्म में, माँ कूष्मांडा अनाहत चक्र (Heart Chakra) की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। इनकी आराधना से यह चक्र जागृत होता है, जिससे साधक के मन में प्रेम, करुणा और निडरता (fearlessness) का भाव आता है।
मां कुष्मांडा की पावन कथा
सनातन शास्त्रों में वर्णित है कि त्रिदेवों ने चिरकाल में सृष्टि की रचना करने की कल्पना की। उस समय समस्त ब्रह्मांड में घोर अंधेरा छाया हुआ था। न राग, न ध्वनि, केवल सन्नाटा था। त्रिदेवों ने जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा से सहायता ली।
मां दुर्गा के चौथे स्वरूप, मां कुष्मांडा ने तत्क्षण अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की। उनके मुखमंडल से निकले प्रकाश ने समस्त ब्रह्मांड को प्रकाशमान कर दिया। इसी कारण उन्हें मां कुष्मांडा कहा जाता है।
मां का निवास सूर्य लोक में है। शास्त्रों में कहा जाता है कि मां कुष्मांडा के मुखमंडल से निकला तेज ही सूर्य को प्रकाशमान करता है। वे सूर्य लोक के अंदर और बाहर, सभी जगह निवास कर सकती हैं।
मां के मुख पर तेजोमय आभा प्रकट होती है, जो समस्त जगत का कल्याण करती है। उनका तेज सूर्य के समान कांतिमय है, और इसे धारण करने की क्षमता केवल जगत जननी आदिशक्ति मां कुष्मांडा में ही है।
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