हिंदू धर्म में सीता माता को आदर्श भारतीय नारी और पत्नी के रूप में सम्मान दिया जाता है। उनका जीवन त्याग, धैर्य, पतिव्रता धर्म और अदम्य साहस का प्रतीक है। आइए जानें उनके जीवन के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में:
जन्म और विवाह:
सीता माता मिथिला के राजा जनक की पुत्री थीं। उन्हें ‘जानकी’ के नाम से भी जाना जाता है।
उनका विवाह भगवान राम के साथ हुआ, जिन्होंने शिव धनुष को उठाकर जीत हासिल की थी।
वनवास और अपहरण:
जब भगवान राम को चौदह साल का वनवास मिला, तब सीता माता उनके साथ वन में गईं।
रावण द्वारा सीता माता का अपहरण कर लिया गया, लेकिन उन्होंने लंका में भी अपने पति के प्रति अटूट निष्ठा बनाए रखी।
अग्निपरीक्षा और वापसी:
रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद, सीता माता ने अग्नि परीक्षा देकर अपनी पवित्रता सिद्ध की।
इसके बाद, वे भगवान राम के साथ अयोध्या लौटीं और सुखपूर्वक जीवन व्यतीत किया।
गुण और आदर्श:
सीता माता को आदर्श पत्नी के रूप में माना जाता है। उनका जीवन त्याग, धैर्य, पतिव्रता धर्म और अदम्य साहस का प्रतीक है। इसीकारण आज के समय माता सीता की आरती हर मंदिर में होती है
वह कठिनाइयों का सामना करने में दृढ़ता और संयम की मूर्ति हैं।
उनका जीवन हमें सिखाता है कि परिस्थितियां कितनी भी कठिन हों, हमें कभी भी अपने सिद्धांतों और मूल्यों से समझौता नहीं करना चाहिए।
सीता माता का महत्व:
सीता माता भारतीय संस्कृति में आदर्श नारी का प्रतीक हैं। उनकी कहानी पीढ़ियों से सुनाई जाती है और उनका जीवन लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
उनका चरित्र हमें सिखाता है कि कैसे धैर्य, निष्ठा और दृढ़ता के साथ जीवन की चुनौतियों का सामना किया जा सकता है।
क्या धरती से प्रकट हुईं माता सीता?
माता सीता का जन्म धरती पर हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता सीता को भगवान जनक के खेत में जमीन के नीचे से प्रकट किया गया था। महर्षि वाल्मीकि की रामायण में यह कथा है कि एक बार मिथिला राज्य में अकाल पड़ा था। ऋषियों ने राजा जनक से यज्ञ का आयोजन करने को कहा ताकि वर्षा हो और उनकी कष्ट दूर हो।
जब यज्ञ समाप्त हुआ, तो राजा जनक अपने हाथों से हल लेकर खेत जोत रहे थे। तभी उनके हल का नुकीला भाग, जिसे सीत कहा गया, किसी कठोर चीज से टकराया और हल वहीं अटक गया।
जब उस स्थान की खुदाई हुई, तो एक कलश मिला जिसमें एक सुंदर कन्या थी। राजा जनक ने उस कन्या को कलश से बाहर निकाला और उसे अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया। जनक की पत्नी उस समय निःसंतान थीं, इसलिए बेटी को पाकर वह अत्यंत प्रसन्न हुईं।
क्योंकि हल के उस हिस्से से टकराकर माता सीता को प्राप्त किया गया था, जिसे सीत कहा जाता है, इसलिए उनका नाम सीता रखा गया। उन्हें जनकी के रूप में भी जाना जाता है।
क्या माता सीता रावण की पुत्री थीं?
माता सीता के जन्म के बारे में एक और प्रसिद्ध कथा है, जिस पर शायद ही किसी को यकीन हो। रामायण में कहा गया है कि रावण ने अगर अपनी पुत्री से विवाह की इच्छा अनुभव की तो वही उसकी मृत्यु का कारण बनेगी।
इस सत्यापन के लिए, एक बार ऋषि गृत्समद नामक देवी लक्ष्मी को पुत्री रूप में प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन मंत्रोच्चार के साथ कुश के अग्र भाग से एक कलश में दूध की बूंदें डालते थे।
एक दिन जब ऋषियों के आश्रम में कोई नहीं था, तो रावण वहां पहुंचा और ऋषियों को मारकर उनका रक्त कलश में भर लिया। इस कलश को रावण ने अपने महल में छिपा दिया।
उस समय रावण की पत्नी मंदोदरी को उस कलश के प्रति बहुत उत्सुकता थी। एक दिन जब रावण महल में नहीं था, तो मंदोदरी ने कलश को खोलकर देखा। मंदोदरी कलश को उठाकर उसमें रखा हुआ रक्त पी गईं, जिससे वह गर्भवती हो गई।
इस बात का कोई भी ज्ञाता नहीं होने दिया गया, इसलिए वह अपनी पुत्री को लंका से बहुत दूर ले जा कर मिथिला भूमि में छोड़ आईं। इस प्रकार सीता का जन्म हुआ और उनकी मृत्यु का कारण भी बना।
सीता जी के जन्म की दूसरी कथा
देवी सीता के जन्म की तीसरी कथा वेदवती नाम की एक ब्राह्मण कन्या से संबंधित है, जिसका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। इस कथा के अनुसार एक समय वेदवती भगवान विष्णु को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थीं।
हिमालय पर भ्रमण करते हुए रावण की नजर वेदवती पर पड़ी और उसके मन में वेदवती से विवाह का विचार आया। वेदवती रावण से बचने के लिए उंचाई से कूद गईं और मृत्यु के समय वो रावण को श्राप दे गईं कि आगे के समय में वो पुनर्जन्म लेकर रावण की पुत्री बनेंगी और उसकी मृत्यु का कारण बनेंगी। माता सीता का जब जन्म हुआ तब अपनी मृत्यु के भय से रावण ने उसे धरती पर एक कलश में रखकर गाड़ दिया।
माता सीता का जन्म वास्तव में एक रहस्य ही है और उनके जन्म की सही कथा जो कुछ भी हो, लेकिन उन्हें श्री राम के साथ पूजा जाता है।
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