लिंग पुराण हिंदू धर्म के अठारह महापुराणों में से एक प्रमुख पुराण है। यह पुराण भगवान शिव और शिवलिंग की महिमा को समर्पित है। लिंग पुराण में शिवलिंग की उत्पत्ति, महत्व, पूजा विधियाँ, विभिन्न तीर्थ स्थलों का विवरण, और पौराणिक कथाओं का विस्तृत वर्णन है। इसे धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
लिंग पुराण की रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी। इसमें कुल 11,000 श्लोक हैं और यह दो खंडों में विभाजित है: पूर्वखंड और उत्तरखंड। पूर्वखंड में सृष्टि की उत्पत्ति, भगवान शिव की महिमा, और उनके विभिन्न अवतारों का वर्णन है, जबकि उत्तरखंड में शिव पूजा, तीर्थ यात्रा, और धार्मिक अनुष्ठानों का विवरण है।
लिंग पुराण के प्रमुख विषय
- लिंग पुराण में शिवलिंग की उत्पत्ति और उसके महत्व का विस्तार से वर्णन है। इसमें बताया गया है कि शिवलिंग की पूजा से व्यक्ति को किस प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं और उसकी आत्मा को शांति मिलती है।
- इस पुराण में भगवान शिव के विभिन्न रूपों, लीलाओं, और उनके भक्तों के साथ संबंधों का वर्णन है। इसमें शिव के अर्धनारीश्वर, भैरव, और नटराज रूपों का भी विवरण है।
- लिंग पुराण में शिव पूजा की विधियाँ, व्रतों, और अनुष्ठानों का विस्तृत वर्णन है। इसमें महाशिवरात्रि, सोमवार व्रत, और अन्य विशेष अनुष्ठानों का महत्व और उनके पालन की विधियाँ बताई गई हैं।
- इस पुराण में विभिन्न पवित्र तीर्थ स्थलों का विवरण है, जो भगवान शिव को समर्पित हैं। इसमें काशी, केदारनाथ, सोमनाथ, और अन्य प्रमुख शिवलिंग स्थलों का महत्व बताया गया है।
- लिंग पुराण में विभिन्न पौराणिक कथाएँ और धार्मिक उपाख्यान भी शामिल हैं। ये कथाएँ नैतिक और धार्मिक शिक्षा प्रदान करती हैं और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालती हैं।
- इस पुराण में योग, ध्यान, और साधना के महत्व और विधियों का भी वर्णन है। इसमें आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति के मार्ग बताए गए हैं।