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ललिता पंचमी व्रत कथा

Lalita Panchami Vrat Katha Hindi

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|| ललिता पंचमी व्रत कथा ||

शारदीय नवरात्रि के समय, आश्विन शुक्ल पंचमी को ललिता पंचमी का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व देवी ललिता को समर्पित है, जो माता सती पार्वती का ही एक रूप मानी जाती हैं। इस दिन भक्त ललिता पंचमी व्रत रखते हैं। देवी ललिता को ‘त्रिपुर सुंदरी’ भी कहा जाता है।

कहानी के अनुसार, देवी ललिता का ज़िक्र देवी पुराण में मिलता है। एक बार नैमिषारण्य में यज्ञ हो रहा था। वहां दक्ष प्रजापति आए, तो सभी देवता उनके स्वागत के लिए खड़े हो गए, लेकिन भगवान शिव नहीं उठे। इस अपमान से क्रोधित होकर दक्ष ने अपने यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया।

जब मां सती को इसका पता चला, तो वो बिना भगवान शिव की अनुमति लिए अपने पिता राजा दक्ष के घर पहुंच गईं। वहां भगवान शिव की निंदा सुनकर और खुद को अपमानित महसूस करके उन्होंने यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। जब भगवान शिव को यह बात पता चली, तो वो मां सती के वियोग में व्याकुल हो गए और उनके शव को कंधे पर लेकर इधर-उधर घूमने लगे।

इस घटना से दुनिया की व्यवस्था बिगड़ने लगी, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से मां सती के शरीर के टुकड़े कर दिए। जहां-जहां उनके अंग गिरे, वहां शक्ति पीठ बन गए। महादेव उन जगहों पर भैरव के रूप में विराजमान हो गए। नैमिषारण्य में मां सती का ह्रदय गिरा था, जिसे भगवान शिव ने अपने ह्रदय में धारण किया। इस वजह से वहां ललिता देवी का अवतरण हुआ और वहीं उनका मंदिर भी है।

एक दूसरी कहानी के अनुसार, जब ब्रह्मा जी द्वारा छोड़े गए चक्र से पाताल खत्म होने लगा, तब ऋषि-मुनि घबरा गए और पूरी पृथ्वी धीरे-धीरे जलमग्न होने लगी। तब सभी ने माता ललिता की पूजा की। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवी प्रकट हुईं और उस विनाशकारी चक्र को रोक लिया। इससे सृष्टि को नया जीवन मिला।

कहा जाता है कि राजा दक्ष ने एक बड़ा यज्ञ आयोजित किया था, जिसमें भगवान शिव को छोड़कर सभी देवताओं को बुलाया गया। जब देवी सती को यह बात पता चली, तो वह क्रोधित होकर यज्ञ में पहुंच गईं। भगवान शिव ने उन्हें रोका, लेकिन देवी ने किसी की बात नहीं मानी। यज्ञ में राजा दक्ष महादेव की निंदा कर रहे थे, जिससे देवी सती ने क्रोधित होकर यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। जब भगवान शिव को यह पता चला, तो उन्हें बहुत गुस्सा आया और वह सती के शव को लेकर इधर-उधर भटकने लगे। सृष्टि का संतुलन बिगड़ गया, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को टुकड़ों में बांट दिया, और जहां-जहां उनके अंग गिरे, वहां शक्ति पीठ बने।

इस तरह, नैमिष धाम में लिंगधारिणी शक्तिपीठ स्थित है, जहां देवी ललिता और भगवान शिव की पूजा होती है।

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