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आषाढ़ी एकादशी व्रत कथा एवं पूजा विधि

Ashadhi Ekadashi Vrat Katha and Pooja Vidhi Hindi

Shri VishnuVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
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|| पूजा विधि ||

  • देवशयनी एकादशी व्रत रखने आले श्रद्धालुओं को प्रात:काल उठकर स्नान करना चाहिए।
  • पूजा स्थल को साफ करके भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर विराजमान करके भगवान का षोडशोपचार पूजन करें।
  • भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला चंदन चढ़ाएं।
  • उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित करें।
  • भगवान विष्णु को पान और सुपारी अर्पित करने के बाद धूप, दीप और पुष्प चढ़ाकर आरती उतारें।
  • और इस मंत्र द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति करें।
  • मंत्र: ‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम्। विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।।’
  • अर्थात हे जगन्नाथ जी! आपके निद्रित हो जाने पर संपूर्ण विश्व निद्रित हो जाता है और आपके जाग जाने पर संपूर्ण विश्व तथा चराचर भी जाग्रत हो जाते हैं।
  • इस प्रकार भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद पारण तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन या फलाहार ग्रहण करें।

|| व्रत कथा ||

धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा- हे केशव! आषाढ़ शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? इस व्रत के करने की विधि क्या है और किस देवता का पूजन किया जाता है? श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! जिस कथा को ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था वही मैं तुमसे कहता हूँ। एक समय नारजी ने ब्रह्माजी से यही प्रश्न किया था।

तब ब्रह्माजी ने उत्तर दिया कि हे नारद तुमने कलियुगी जीवों के उद्धार के लिए बहुत उत्तम प्रश्न किया है। क्योंकि एकादशी का व्रत सब व्रतों में उत्तम है। इस व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और जो मनुष्य इस व्रत को नहीं करते वे नरकगामी होते हैं।

इस व्रत के करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। इस एकादशी का नाम पद्मा है। अब मैं तुमसे एक पौराणिक कथा कहता हूँ। तुम मन लगाकर सुनो।सूर्यवंश में मांधाता नाम का एक चक्रवर्ती राजा हुआ है, जो सत्यवादी और महान प्रतापी था। वह अपनी प्रजा का पुत्र की भाँति पालन किया करता था। उसकी सारी प्रजा धनधान्य से भरपूर और सुखी थी। उसके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ता था।

एक समय उस राजा के राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई और अकाल पड़ गया। प्रजा अन्न की कमी के कारण अत्यंत दु:खी हो गई। अन्न के न होने से राज्य में यज्ञादि भी बंद हो गए। एक दिन प्रजा राजा के पास जाकर कहने लगी कि हे राजा! सारी प्रजा त्राहि-त्राहि पुकार रही है। क्योंकि समस्त विश्व की सृष्टि का कारण वर्षा है।

वर्षा के अभाव से अकाल पड़ गया है और अकाल से प्रजा मर रही है। इसलिए हे राजन! कोई ऐसा उपाय बताअओ जिससे प्रजा का कष्ट दूर हो। राजा मांधाता कहने लगे कि आप लोग ठीक कह रहे हैं, वर्षा से ही अन्न उत्पन्न होता है और आप लोग वर्षा न होने से अत्यंत दु:खी हो गए हैं। मैं आप लोगों के दु:खों को समझता हूँ। ऐसा कहकर राजा कुछ सेना साथ लेकर वन की तरफ चल दिया। वह अनेक ऋषियों के आश्रम में भ्रमण करता हुआ अंत में ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुँचा। वहाँ राजा ने घोड़े से उतरकर अंगिरा ऋषि को प्रणाम किया।

मुनि ने राजा को आशीर्वाद देकर कुशलक्षेम के पश्चात उनसे आश्रम में आने का कारण पूछा। राजना ने हाथ जोड़कर विनीत भाव से कहा कि हे भगवन! सब प्रकार से धर्म पालन करने पर भी मेरे राज्य में अकाल पड़ गया है। इससे प्रजा अत्यंत दु:खी है। राजा के पापों के प्रभाव से ही प्रजा को कष्ट होता है, ऐसा शास्त्रों में कहा है। जब मैं धर्मानुसार राज्य करता हूँ तो मेरे राज्य में अकाल कैसे पड़ गया? इसके कारण का पता मुझको अभी तक नहीं चल सका।

अब मैं आपके पास इसी संदेह को निवृत्त कराने के लिए आया हूँ। कृपा करके मेरे इस संदेह को दूर कीजिए। साथ ही प्रजा के कष्ट को दूर करने का कोई उपाय बताइए। इतनी बात सुनकर ऋषि कहने लगे कि हे राजन! यह सतयुग सब युगों में उत्तम है। इसमें धर्म को चारों चरण सम्मिलित हैं अर्थात इस युग में धर्म की सबसे अधिक उन्नति है। लोग ब्रह्म की उपासना करते हैं और केवल ब्राह्मणों को ही वेद पढ़ने का अधिकार है। ब्राह्मण ही तपस्या करने का अधिकार रख सकते हैं, परंतु आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है। इसी दोष के कारण आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है।

इसलिए यदि आप प्रजा का भला चाहते हो तो उस शूद्र का वध कर दो। इस पर राजा कहने लगा कि महाराज मैं उस निरपराध तपस्या करने वाले शूद्र को किस तरह मार सकता हूँ। आप इस दोष से छूटने का कोई दूसरा उपाय बताइए। तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन! यदि तुम अन्य उपाय जानना चाहते हो तो सुनो।

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पद्मा नाम की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो। व्रत के प्रभाव से तुम्हारे राज्य में वर्षा होगी और प्रजा सुख प्राप्त करेगी क्योंकि इस एकादशी का व्रत सब सिद्धियों को देने वाला है और समस्त उपद्रवों को नाश करने वाला है। इस एकादशी का व्रत तुम प्रजा, सेवक तथा मंत्रियों सहित करो।

मुनि के इस वचन को सुनकर राजा अपने नगर को वापस आया और उसने विधिपूर्वक पद्मा एकादशी का व्रत किया। उस व्रत के प्रभाव से वर्षा हुई और प्रजा को सुख पहुँचा। अत: इस मास की एकादशी का व्रत सब मनुष्यों को करना चाहिए। यह व्रत इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति को देने वाला है। इस कथा को पढ़ने और सुनने से मनुष्य के समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं।

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