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कब है बसोड़ा 2024, जानिए मां शीतला की पूजा अनुष्ठान, शुभ मुहूर्त और व्रत कथा

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हर वर्ष चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर शीतला माता की पूजा की जाती है। इसे बसोड़ा पर्व भी कहा जाता है। इस बार शीतला अष्टमी 2 अप्रैल को होगी। देश के अधिकांश क्षेत्रों में, यह त्योहार शीतला अष्टमी के नाम से मनाया जाता है।

इस दिन, भक्त शीतला माता की पूजा करते हैं और अच्छे स्वास्थ्य और महामारी रोगों से सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं। मान्यता के अनुसार, वह चेचक की देवी हैं और इस दिन उनकी पूजा करने से भक्तों को ऐसे दुःखों से मुक्ति मिलती है।

बसोड़ा की तिथि और मुहूर्त

  • शीतला अष्टमी 2024 मंगलवार, 2 अप्रैल 2024
  • शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त प्रातः 06:19 बजे से सायं 06:32 बजे तक (अवधि 12 घंटे 13 मिनट)
  • अष्टमी तिथि प्रारम्भ 01 अप्रैल 2024 को रात्रि 09:09 बजे

बासोड़ा पूजा के अनुष्ठान क्या हैं?

शाब्दिक अर्थ में बासोड़ा शब्द का अर्थ है ‘बासी’। हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार, शीतला अष्टमी के दिन रसोई में आग जलाना सख्त वर्जित होता है। लोग इस दिन से एक दिन पहले पूरा भोजन तैयार करते हैं और अगले दिन यानी बासोड़ा पर भी उसी भोजन का सेवन करते हैं।

उस दिन के सभी भोजन में बासी खाना ही शामिल होता है और ताजा पकाया या बनाया हुआ किसी भी रूप में नहीं खाया जा सकता है। बासोड़ा को मनाने के लिए कुछ विशेष सेवइयां तैयार की जाती हैं जैसे कि मीठा चीला, गुलगुले आदि।

बसोड़ा के दिन माता शीतला की पूजा-विधि

  • माता शीतला की आराधना करने वाले, अर्थात शीतला अष्टमी के दिन उपासक को ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए और नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्नान करना चाहिए।
  • जहाँ तक संभव हो, पानी में गंगा जल मिलाकर ही स्नान करें। अगर गंगाजल उपलब्ध नहीं हो पा रहा है, तो शुद्ध जल से स्नान करें।
    इसके बाद साफ-सुथरे नारंगी रंग के वस्त्र धारण करना चाहिए।
  • इसके बाद पूजा करने के लिए दो थालियाँ सजाएं। एक थाली में दही, रोटी, नमक पारे, पुआ, मठरी, बाजरा और सतमी के दिन बने मीठे चावल रखें।
  • वहीं दूसरी थाली में आटे से बना दीपक रखें। रोली, वस्त्र, अक्षत, सिक्का, मेहंदी रखें और ठंडे पानी से भरा लोटा रखें।
  • घर के मंदिर में शीतला माता की आरती पूजा करके बिना दीपक जलाकर रखें और थाली में रखा भोग चढ़ाएं। इसके अलावा नीम के पेड़ पर जल चढ़ाएं।

बासोड़ा व्रत कथा

एक बार शीतला माता ने विचार किया कि चलो, आज देखें कि धरती पर मेरी पूजा कौन करता है, कौन मुझे मानता है। इसी सोच में शीतला माता धरती पर राजस्थान के डुंगरी गाँव में आईं और देखा कि इस गाँव में मेरा मंदिर नहीं है, और ना ही मेरी पूजा होती है।

माता शीतला गाँव की गलियों में घूम रही थीं, तभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी (मांड) नीचे फेंका। वह उबलता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा, जिससे उनके शरीर में फफोले/छाले पड़ गए।

शीतला माता के पूरे शरीर में जलन होने लगी। शीतला माता गाँव में इधर-उधर भाग-भाग के चिल्लाने लगी, “अरे, मैं जल गई हूँ, मेरा शरीर तप रहा है, जल रहा है। कोई मेरी सहायता करो।” लेकिन उस गाँव में किसी ने उनकी सहायता नहीं की।

वहीं, अपने घर के बाहर एक कुम्हारन महिला बैठी थी। उसने देखा कि उन्होंने शीतला माता को कितना जलते हुए देखा। उसने उसे कहा, “हे माँ! तू यहाँ आकर बैठ जा, मैं तेरे शरीर के ऊपर ठंडा पानी डालती हूँ।”

कुम्हारन ने उसे ठंडा पानी डाला और कहा, “मेरे घर में रात की बनी हुई राबड़ी है, थोड़ा दही भी है। तू दही-राबड़ी खा ले।” जब बूढ़ी माई ने ठंडी ज्वार के आटे की राबड़ी और दही खाया, तो उसके शरीर को ठंडक मिली।

तब कुम्हारन ने कहा, “आ माँ, बैठ जा, तेरे सिर के बाल बहुत बिखरे हैं, ला मैं तेरी चोटी गूँथ देती हूँ।” और उसने माई की चोटी गूँथी। अचानक उसने देखा कि बूढ़ी माई के सिर के पीछे एक आँख बालों के अंदर छुपी है।

उसने डर के मारे घबराकर भागने लगी, तभी बूढ़ी माई ने कहा, “रुको बेटी, तू डर मत। मैं कोई भूत-प्रेत नहीं हूँ। मैं शीतला देवी हूँ। बसौड़ा (शीतला अष्टमी) व्रत कथा यहा पढ़े।

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