दुर्गा चालीसा एक अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली स्तुति है जो देवी दुर्गा को समर्पित होती है। इसमें 40 चौपाइयों के माध्यम से माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों, शक्तियों और उनकी लीलाओं का वर्णन किया गया है। इसे नियमित रूप से पढ़ने से साधक को माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं।
यह चालीसा गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखी गई मानी जाती है, और नवरात्रि, अष्टमी, दुर्गाष्टमी जैसे पर्वों पर इसका विशेष महत्व होता है। इसका पाठ देवी दुर्गा की कृपा, शक्ति और सुरक्षा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। माँ दुर्गा को शक्ति और साहस की प्रतीक माना जाता है, और उनकी आराधना भक्तों को भयमुक्त और सशक्त बनाती है।
|| श्री दुर्गा चालीसा (Durga Chalisa PDF Hindi) ||
॥ चौपाई ॥
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुंलोक में डंका बाजत॥
शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ संतन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥
अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें।
रिपू मुरख मौही डरपावे॥
शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै॥
देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥
|| दुर्गा चालीसा के लाभ (Benefits of Durga Chalisa) ||
दुर्गा चालीसा का नियमित और श्रद्धापूर्वक पाठ करने से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:
- यह माना जाता है कि दुर्गा चालीसा के पाठ से जीवन के सभी प्रकार के संकट, बाधाएं और परेशानियां दूर हो जाती हैं।
- देवी दुर्गा शक्ति की अधिष्ठात्री हैं, इसलिए इस चालीसा का पाठ शत्रुओं पर विजय और नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है।
- नियमित पाठ से शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है और स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- माँ दुर्गा भय और चिंताओं को दूर करने वाली हैं, इसलिए इस चालीसा का पाठ मन को शांति और निर्भयता प्रदान करता है।
- भक्तों का मानना है कि दुर्गा चालीसा का पाठ करने से उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- देवी दुर्गा की कृपा से घर में सुख-समृद्धि, धन और धान्य की वृद्धि होती है।
- इस चालीसा का पाठ परिवार में एकता, प्रेम और शांति बनाए रखने में सहायक होता है।
- यह पाठ आध्यात्मिक विकास और देवी के प्रति भक्ति को बढ़ाता है।
- माँ दुर्गा अपने भक्तों की सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा और बुरी नजर से रक्षा करती हैं।
- इस चालीसा का पाठ आत्मविश्वास और आत्मबल को बढ़ाता है, जिससे जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलती है।
|| दुर्गा चालीसा पाठ के नियम (Rules for Reciting Durga Chalisa) ||
दुर्गा चालीसा का पाठ करते समय कुछ नियमों का पालन करना महत्वपूर्ण है ताकि इसका पूर्ण लाभ प्राप्त हो सके:
- पाठ करने से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मन और शरीर दोनों की पवित्रता आवश्यक है।
- प्रातःकाल या संध्याकाल का समय पाठ के लिए उत्तम माना जाता है। नवरात्रि के दिनों में इसका विशेष महत्व है। यदि संभव हो तो प्रतिदिन पाठ करें।
- पाठ करते समय पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- साफ आसन का प्रयोग करें। लाल रंग का आसन माँ दुर्गा को प्रिय माना जाता है।
- माँ दुर्गा की प्रतिमा या चित्र के सामने घी या तेल का दीपक जलाएं। लाल फूल, रोली, कुमकुम, अक्षत और धूप अर्पित करें।
- एक कलश में जल भरकर रखें। माँ दुर्गा को फल, मिठाई या मेवे का भोग लगाएं।
- चालीसा का पाठ एक बार या विषम संख्या में जैसे 3, 5, 7 या 11 बार करना शुभ माना जाता है।
- पाठ करते समय मन को एकाग्र रखें और माँ दुर्गा का ध्यान करें। किसी भी प्रकार के नकारात्मक विचारों से बचें।
- यदि किसी विशेष उद्देश्य के लिए पाठ शुरू कर रहे हैं तो उसे एक निश्चित अवधि तक नियमित रूप से करें।
- पाठ शुरू करने से पहले माँ दुर्गा का ध्यान करें और ‘ॐ दुर्गे नमः’ या ‘जय माता दी’ का जाप करें। पाठ समाप्त होने के बाद भी उनका धन्यवाद करें और अपनी प्रार्थना अर्पित करें।
- पाठ में यदि कोई भूल हो जाए तो माँ दुर्गा से क्षमा याचना करें।
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