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नरक चतुर्दशी कथा

Narak Chaturdashi Katha Hindi

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|| नरक चतुर्दशी कथा ||

कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रूप चौदस, नरक चतुर्दशी कहते हैं। बंगाल में इस दिन को मां काली के जन्मदिन के रूप में काली चौदस के तौर पर मनाया जाता है। इसे छोटी दीपावली भी कहते हैं। इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर यमराज का तर्पण कर तीन अंजलि जल अर्पित किया जाता है। संध्या के समय दीपक जलाए जाते हैं। चौदस के दिन दीपक जलाने से यम यातना से मुक्ति मिलती है और लक्ष्मी जी का साथ बना रहता है।

प्राचीन समय की बात है, रन्तिदेव नामक एक राजा था। वह अपने पिछले जन्म में बहुत धर्मात्मा और दानी था। उसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। अपने पूर्व जन्म के कर्मों के कारण इस जन्म में भी उसने अपार दान देकर अनेक सत्कार्य किए।

वह हमेशा जरुरतमंदों की सहायता करता था और उन्हें कभी निराश नहीं करता था। कुछ समय पश्चात राजा बूढ़ा हो गया और अंत समय में यमराज के दूत उसे लेने आए। दूतों ने राजा को देखकर डराते हुए कहा, “राजन, तुम्हारा समय समाप्त हो गया है, अब तुम्हें नरक में चलना पड़ेगा।”

राजा ने सोचा भी नहीं था कि उसे नरक जाना पड़ेगा। घबराकर उसने यमदूतों से नरक ले जाने का कारण पूछा और कहा, “मैंने तो आजीवन दान और सत्कर्म किए हैं, फिर मुझे नरक क्यों?” यमदूतों ने कहा, “राजा, तुम्हारे दान धर्म की चर्चा तो दुनिया जानती है, किंतु तुम्हारे पाप कर्म केवल भगवान और धर्मराज ही जानते हैं।”

राजा ने विनती की, “कृपया मुझे मेरे पाप कर्म बताने की कृपा करें।” तब यमदूत बोले, “एक बार तुम्हारे द्वार से एक भूखा ब्राह्मण बिना कुछ पाए वापस लौट गया था। वह बहुत आशा के साथ तुम्हारे पास आया था, इसलिए तुम्हें नरक जाना पड़ेगा।” राजा ने विनती की और कहा, “मुझे इस बात का ज्ञान नहीं था। मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई।

कृपा करके मेरी आयु एक वर्ष बढ़ा दीजिए ताकि मैं अपनी भूल सुधार सकूं।” यमदूतों ने बिना सोचे-समझे हां कर दी और राजा की आयु एक वर्ष बढ़ा दी। यमदूत चले गए। राजा ने ऋषि-मुनियों के पास जाकर पाप मुक्ति के उपाय पूछे।

ऋषियों ने बताया, “हे राजन, तुम कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत रखना, भगवान कृष्ण का पूजन करना, ब्राह्मण को भोजन कराना और दान देकर अपने सभी अपराध सुनाकर क्षमा मांगना। तब तुम पाप मुक्त हो जाओगे।”

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी आने पर राजा ने नियमपूर्वक व्रत रखा और श्रद्धापूर्वक ब्राह्मण को भोजन कराया। अंत में राजा को विष्णुलोक की प्राप्ति हुई।

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