॥ श्री नारायण कवच अर्थ सहित ॥
ॐ श्री विष्णवे नमः ॥
ॐ श्री विष्णवे नमः ॥
ॐ श्री विष्णवे नमः ॥
ॐ नमो नारायणाय ॥
ॐ नमो नारायणाय ॥
ॐ नमो नारायणाय ॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
ॐ हरिर्विदध्यान्मम सर्वरक्षां
न्यस्ताड़् घ्रिपद्मः पतगेन्द्रपृष्ठे ।
दरारिचर्मासिगदेषुचापपाशान्
दधानोsष्टगुणोsष्टबाहुः ॥१॥
अर्थ: भगवान श्रीहरि गरुड़ जी के पीठ पर अपने चरणकमल रखे हुए हैं। अणिमा आदि आठों सिद्धियाँ उनकी सेवा में उपस्थित हैं, और उनके आठ हाथों में शंख, चक्र, ढाल, तलवार, गदा, बाण, धनुष, और पाश धारण किए हुए हैं। वे ही ओंकार स्वरूप भगवान मेरी हर ओर से, हर प्रकार से रक्षा करें। ॥१॥
जलेषु मां रक्षतु मत्स्यमूर्तिर्यादोगणेभ्यो
वरूणस्य पाशात् ।
स्थलेषु मायावटुवामनोsव्यात्
त्रिविक्रमः खेऽवतु विश्वरूपः ॥२॥
अर्थ: मत्स्यमूर्ति भगवान जल के भीतर जलजंतुओं और वरुण के पाश से मेरी रक्षा करें। मायावी ब्रह्मचारी रूप धारण करने वाले वामन भगवान स्थल पर और विश्वरूप त्रिविक्रम भगवान आकाश में मेरी रक्षा करें। ॥२॥
दुर्गेष्वटव्याजिमुखादिषु प्रभुः
पायान्नृसिंहोऽसुरुयूथपारिः ।
विमुञ्चतो यस्य महाट्टहासं
दिशो विनेदुर्न्यपतंश्च गर्भाः ॥३॥
अर्थ: जिनके भयंकर अट्टहास से सभी दिशाएँ गूंज उठी थीं, और जिनसे गर्भवती दैत्यपत्नियों के गर्भ गिर गए थे, वे दैत्य सेना के शत्रु भगवान नृसिंह, किलों, जंगलों, रणभूमि और अन्य विकट स्थानों में मेरी रक्षा करें। ॥३॥
रक्षत्वसौ माध्वनि यज्ञकल्पः
स्वदंष्ट्रयोन्नीतधरो वराहः ।
रामोऽद्रिकूटेष्वथ विप्रवासे
सलक्ष्मणोsव्याद् भरताग्रजोsस्मान् ॥४॥
अर्थ: अपनी दाढ़ों पर पृथ्वी को उठा लेने वाले यज्ञमूर्ति वराह भगवान मार्ग में, परशुराम जी पर्वतों के शिखरों पर, और लक्ष्मणजी सहित भरत के बड़े भाई भगवान रामचंद्र प्रवास के समय मेरी रक्षा करें। ॥४॥
मामुग्रधर्मादखिलात् प्रमादान्नारायणः
पातु नरश्च हासात् ।
दत्तस्त्वयोगादथ योगनाथः पायाद्
गुणेशः कपिलः कर्मबन्धात् ॥५॥
अर्थ: भगवान नारायण मुझे मारण, मोहन आदि भयानक अभिचारों और हर प्रकार के प्रमाद से बचाएं। ऋषिश्रेष्ठ नर गर्व से, योगेश्वर दत्तात्रेय योग के विघ्नों से, और त्रिगुणाधिपति भगवान कपिल मुझे कर्मबंधनों से मुक्त करें। ॥५॥
सनत्कुमारोऽवतु कामदेवाद्धयशीर्षा
मां पथि देवहेलनात् ।
देवर्षिवर्यः पुरूषार्चनान्तरात्
कूर्मो हरिर्मां निरयादशेषात् ॥६॥
अर्थ: परमर्षि सनत्कुमार कामदेव से, हयग्रीव भगवान मार्ग में चलते समय देवताओं को नमस्कार आदि न करने के अपराध से, देवर्षि नारद सेवापराधों से और भगवान कच्छप सभी प्रकार के नरकों से मेरी रक्षा करें। ॥६॥
धन्वन्तरिर्भगवान् पात्वपथ्याद्
द्वन्द्वाद् भयादृषभो निर्जितात्मा ।
यज्ञश्च लोकादवताज्जनान्ताद्
बलो गणात् क्रोधवशादहीन्द्रः ॥७॥
अर्थ: भगवान धन्वन्तरि गलत खान-पान से, जितेन्द्र भगवान ऋषभदेव सुख-दुख आदि भय उत्पन्न करने वाले द्वंद्वों से, यज्ञ भगवान लोकापवाद से, बलरामजी मानव-जनित कष्टों से और श्रीशेषजी क्रोधवश नागों के समूह से मेरी रक्षा करें। ॥७॥
द्वैपायनो भगवानप्रबोधाद् बुद्धस्तु
पाखण्डगणात् प्रमादात् ।
कल्किः कलेः कालमलात् प्रपातु
धर्मावनायोरूकृतावतारः ॥८॥
अर्थ: भगवान श्रीकृष्णद्वैपायन व्यास अज्ञान से तथा भगवान बुद्ध पाखण्डियों और प्रमाद से मेरी रक्षा करें। धर्म की रक्षा करने वाले महान अवतार भगवान कल्कि पाप-बहुल कलियुग के दोषों से मेरी रक्षा करें। ॥८॥
मां केशवो गदया प्रातरव्याद्
गोविन्द आसंगवमात्तवेणुः ।
नारायण प्राह्ण उदात्तशक्तिर्मध्यन्दिने
विष्णुररीन्द्रपाणिः ॥९॥
अर्थ: प्रातःकाल भगवान केशव अपनी गदा लेकर, दिन चढ़ने पर भगवान गोविन्द अपनी बांसुरी लेकर, दोपहर से पहले भगवान नारायण अपनी तीक्ष्ण शक्ति लेकर और दोपहर में भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र लेकर मेरी रक्षा करें। ॥९॥
देवोsपराह्णे मधुहोग्रधन्वा सायं
त्रिधामावतु माधवो माम् ।
दोषे हृषीकेश उतार्धरात्रे निशीथ
एकोsवतु पद्मनाभः ॥१०॥
अर्थ: तीसरे पहर भगवान मधुसूदन अपना प्रचंड धनुष लेकर मेरी रक्षा करें, सांयकाल में ब्रह्मा आदि त्रिमूर्तिधारी माधव, सूर्यास्त के बाद हृषिकेश, अर्धरात्रि से पहले और अर्धरात्रि में भगवान पद्मनाभ अकेले मेरी रक्षा करें। ॥१०॥
श्रीवत्सधामापररात्र ईशः प्रत्यूष
ईशोऽसिधरो जनार्दनः ।
दामोदरोऽव्यादनुसन्ध्यं प्रभाते
विश्वेश्वरो भगवान् कालमूर्तिः ॥११॥
अर्थ: रात्रि के अंतिम प्रहर में श्रीवत्सलांछन श्रीहरि, उषाकाल में खड्गधारी भगवान जनार्दन, सूर्योदय से पहले श्रीदामोदर और सभी संध्याओं में कालमूर्ति भगवान विश्वेश्वर मेरी रक्षा करें। ॥११॥
चक्रं युगान्तानलतिग्मनेमि भ्रमत्
समन्ताद् भगवत्प्रयुक्तम् ।
दन्दग्धि दन्दग्ध्यरिसैन्यमाशु कक्षं
यथा वातसखो हुताशः ॥१२॥
अर्थ: सुदर्शन चक्र! आपका रूप रथ के पहिए की तरह है और आपके किनारे प्रलयकालीन अग्नि के समान प्रचंड हैं। आप भगवान की प्रेरणा से चारों ओर घूमते रहते हैं। जैसे अग्नि वायु की सहायता से सूखे घास को जला देती है, वैसे ही आप हमारी शत्रुसेना को शीघ्र भस्म कर दीजिए। ॥१२॥
गदेऽशनिस्पर्शनविस्फुलिङ्गे निष्पिण्ढि
निष्पिण्ढ्यजितप्रियासि ।
कूष्माण्डवैनायकयक्षरक्षोभूतग्रहांश्चूर्णय
चूर्णयारीन् ॥१३॥
अर्थ: कौमुद की गदा! आपसे छूटने वाली चिनगारियों का स्पर्श वज्र के समान असह्य है। आप भगवान अजित की प्रिय हैं और मैं उनका सेवक हूँ, इसलिए आप कूष्मांड, विनायक, यक्ष, राक्षस, भूत-प्रेत आदि को कुचल डालिए तथा मेरे शत्रुओं का नाश कर दीजिए। ॥१३॥
त्वं यातुधानप्रमथप्रेतमातृपिशाच
विप्रग्रहघोरदृष्टीन् ।
दरेन्द्र विद्रावय कृष्णपूरितो
भीमस्वनोऽरेर्हृदयानि कम्पयन् ॥१४॥
अर्थ: शंखश्रेष्ठ! भगवान श्रीकृष्ण के फूंकने से भयंकर गर्जना कर मेरे शत्रुओं का हृदय कंपा दीजिए और यातुधान, प्रमथ, प्रेत, मातृका, पिशाच, और ब्रह्मराक्षस जैसे भयावने प्राणियों को तुरंत यहाँ से भगा दीजिए। ॥१४॥
त्वं तिग्मधारासिवरारिसैन्यमीशप्रयुक्तो
मम छिन्धि छिन्धि ।
चक्षूंषि चर्मञ्छतचन्द्र छादय
द्विषामघोनां हर पापचक्षुषाम् ॥१५॥
अर्थ: भगवान की तलवार! आपकी धार अत्यंत तीक्ष्ण है। भगवान की प्रेरणा से आप मेरे शत्रुओं का विनाश कर दीजिए। भगवान की प्रिय ढाल! आप में सैकड़ों चंद्राकार मंडल हैं, आप पापात्मा शत्रुओं की आँखें बंद कर दीजिए और उन्हें हमेशा के लिए अंधा बना दीजिए। ॥१५॥
यन्नो भयं ग्रहेभ्योऽभूत् केतुभ्यो
नृभ्य एव च ।
सरीसृपेभ्यो दंष्ट्रिभ्यो भूतेभ्योंऽहोभ्य
एव वा ॥१६॥
अर्थ: सूर्य आदि ग्रह, धूमकेतु आदि केतु, दुष्ट मनुष्य, सर्प, हिंसक पशु, भूत-प्रेत और अन्य पापी प्राणियों से जो भय उत्पन्न होता है, और जो हमारे मंगल में विघ्न डालते हैं, ॥१६॥
सर्वाण्येतानि
भगवन्नामरूपास्त्रकीर्तनात् ।
प्रयान्तु संक्षयं सद्यो ये
नः श्रेयः प्रतीपकाः ॥१७॥
अर्थ: वे सभी भगवान के नाम, रूप, और आयुधों का कीर्तन करने से तत्काल नष्ट हो जाएँ। ॥१७॥
गरूड़ो भगवान्
स्तोत्रस्तोभश्छन्दोमयः प्रभुः ।
रक्षत्वशेषकृच्छ्रेभ्यो
विष्वक्सेनः स्वनामभिः ॥१८॥
अर्थ: बृहद, रथंतर आदि सामवेदीय स्तोत्रों से जिनकी स्तुति की जाती है, वे वेदमूर्ति भगवान गरुड़ और विष्वक्सेनजी अपने नामोच्चारण के प्रभाव से हमें सभी विपत्तियों से बचाएं। ॥१८॥
सर्वापद्भ्यो
हरेर्नामरूपयानायुधानि नः ।
बुद्धीन्द्रियमनः प्राणान्
पान्तु पार्षदभूषणाः ॥१९॥
अर्थ: भगवान श्रीहरि के नाम, रूप, वाहन, आयुध और श्रेष्ठ पार्षद हमारी बुद्धि, इन्द्रियों, मन और प्राणों को सभी प्रकार की आपत्तियों से सुरक्षित रखें। ॥१९॥
यथा हि भगवानेव
वस्तुतः सदसच्च यत् ।
सत्येनानेन नः सर्वे
यान्तु नाशमुपद्रवाः ॥२०॥
अर्थ: संपूर्ण कार्य और कारण रूप जगत वास्तव में भगवान ही हैं। इस सत्य के प्रभाव से हमारे सभी उपद्रव नष्ट हो जाएँ। ॥२०॥
यथैकात्म्यानुभावानां
विकल्परहितः स्वयम् ।
भूषणायुद्धलिङ्गाख्या धत्ते
शक्तीः स्वमायया ॥२१॥
अर्थ: जो लोग ब्रह्म और आत्मा की एकता का अनुभव कर चुके हैं, उनकी दृष्टि में भगवान का स्वरूप समस्त भेद-भावों से परे है। फिर भी वे अपनी माया शक्ति से भूषण, आयुध और रूप धारण करते हैं। ॥२१॥
तेनैव सत्यमानेन सर्वज्ञो
भगवान् हरिः ।
पातु सर्वैः स्वरूपैर्नः
सदा सर्वत्र सर्वगः ॥२२॥
अर्थ: यह सत्य अटल है। इसलिए सर्वज्ञ, सर्वव्यापक भगवान श्रीहरि हमेशा और हर दिशा से हमारी रक्षा करें। ॥२२॥
विदिक्षु दिक्षूर्ध्वमधः
समन्तादन्तर्बहिर्भगवान् नारसिंहः ।
प्रहापयँल्लोकभयं स्वनेन
स्वतेजसा ग्रस्तसमस्ततेजाः ॥२३॥
अर्थ: जो अपने भयंकर अट्टहास से सभी के भय को समाप्त कर देते हैं और अपने तेज से सभी का तेज हर लेते हैं, वे भगवान नृसिंह चारों दिशाओं, ऊपर-नीचे, भीतर-बाहर – हर ओर से हमारी रक्षा करें। ॥२३॥
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