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नृसिंह जयंती 2025 में कब है? जानें तिथि, पूजा विधि और पौराणिक महत्व, जानिए भगवान नृसिंह के अवतार की रहस्यमयी कथा

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हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के दशावतारों में से एक प्रमुख और रहस्यमयी अवतार है नृसिंह अवतार। यह अवतार धर्म की रक्षा और अधर्म के विनाश का अद्भुत उदाहरण है। नृसिंह जयंती भगवान नृसिंह के प्रकट होने की तिथि के रूप में मनाई जाती है, जो हर वर्ष वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को आती है।

इस लेख में हम जानेंगे कि नृसिंह जयंती 2025 में कब है, इस दिन की पूजा विधि, पौराणिक महत्व और भगवान नृसिंह की अवतार कथा जिसे जानकर आपका मन श्रद्धा से भर उठेगा।

नृसिंह जयंती 2025 में कब है? (Narasimha Jayanti 2025 Date in Hindi)

नृसिंह जयंती 2025 में रविवार, 11 मई को मनाई जाएगी। यह पर्व वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। यह तिथि भगवान विष्णु के नृसिंह रूप में अवतरित होने की स्मृति में मनाई जाती है।

नृसिंह जयंती पूजा विधि

नृसिंह जयंती पर भगवान नृसिंह की पूजा विधि अत्यंत महत्वपूर्ण है। भक्त इस दिन उपवास रखते हैं और पूरे विधि-विधान से भगवान की आराधना करते हैं। यहाँ एक सामान्य पूजा विधि दी गई है:

  • नृसिंह जयंती के दिन भक्त सूर्योदय से लेकर अगले दिन सूर्योदय तक उपवास रखते हैं। कुछ लोग निर्जला उपवास रखते हैं, जबकि कुछ फलाहार करते हैं।
  • प्रातःकाल उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें। भगवान नृसिंह की प्रतिमा या चित्र को एक साफ चौकी पर स्थापित करें।
  • पूजा शुरू करने से पहले, व्रत और पूजा का संकल्प लें। भगवान नृसिंह का आह्वान करें और उन्हें आसन ग्रहण करने के लिए प्रार्थना करें।
  • भगवान को रोली, मौली, चंदन, केसर, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य (फल, मिठाई, मेवे) अर्पित करें। भगवान नृसिंह की आरती गाएं।
  • भगवान नृसिंह के अवतार की कथा सुनें या पढ़ें। पूजा के अंत में, भगवान को अर्पित किए गए नैवेद्य को प्रसाद के रूप में वितरित करें। कई भक्त इस दिन रात्रि जागरण करते हैं और भगवान के भजन-कीर्तन करते हैं।
  • भगवान नृसिंह के शक्तिशाली मंत्रों का जाप करें, जैसे: ॐ नृसिंहाय नमः, ॐ उग्रनृसिंहाय नमः, ॐ लक्ष्मी-नृसिंहाय नमः

नृसिंह जयंती का पौराणिक महत्व

नृसिंह जयंती का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह दिन भगवान विष्णु के उस अद्भुत अवतार को समर्पित है, जब उन्होंने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए नर और सिंह के मिश्रित रूप में अवतार लिया था। इस अवतार का उद्देश्य अत्याचारी हिरण्यकशिपु का वध करना था, जिसे ब्रह्मा जी से यह वरदान प्राप्त था कि उसे न कोई मनुष्य मार सकेगा, न कोई पशु, न दिन में, न रात में, न घर के अंदर, न घर के बाहर, न पृथ्वी पर, न आकाश में और न किसी अस्त्र से।

भगवान विष्णु ने इस जटिल वरदान का सम्मान करते हुए संध्याकाल में (न दिन न रात), घर की दहलीज पर (न अंदर न बाहर), अपनी गोद में (न पृथ्वी न आकाश), नरसिंह रूप में (न मनुष्य न पशु) अपने नाखूनों (न कोई अस्त्र) से हिरण्यकशिपु का वध किया।
यह कथा बुराई पर अच्छाई की विजय, भक्त की रक्षा और भगवान की सर्वशक्तिमानता का प्रतीक है। नृसिंह भगवान शक्ति, साहस और सुरक्षा के प्रतीक माने जाते हैं। उनकी पूजा करने से भक्तों को भय से मुक्ति मिलती है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।

भगवान नृसिंह के अवतार की रहस्यमयी कथा

भगवान नृसिंह के अवतार की कथा अत्यंत रोचक और रहस्यमयी है। सतयुग में, कश्यप ऋषि और उनकी पत्नी दिति के दो पुत्र हुए – हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु। हिरण्याक्ष का वध भगवान विष्णु ने वराह अवतार में किया था, जिससे हिरण्यकशिपु अत्यंत क्रोधित हुआ और उसने भगवान विष्णु से बदला लेने की ठान ली।

हिरण्यकशिपु ने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से अद्भुत वरदान प्राप्त किए, जिससे वह लगभग अजेय हो गया। वरदान के अहंकार में उसने तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया और स्वयं को भगवान मानने लगा। उसने विष्णु की पूजा करने पर प्रतिबंध लगा दिया और अपने पुत्र प्रह्लाद को भी विष्णु भक्ति से विमुख करने का प्रयास किया।

प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और अपने पिता के लाख प्रयासों के बावजूद अपनी भक्ति से विचलित नहीं हुआ। हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से वह हर बार बच गया।

अंततः, जब हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि क्या उसके भगवान हर जगह मौजूद हैं, तो प्रह्लाद ने उत्तर दिया कि हाँ, वे हर जगह विद्यमान हैं, यहाँ तक कि इस खंभे में भी। क्रोधित हिरण्यकशिपु ने खंभे को तोड़ दिया, और उसी क्षण उस खंभे से एक अद्भुत प्राणी प्रकट हुआ – नरसिंह, जिसका आधा शरीर सिंह का और आधा मनुष्य का था।

भगवान नृसिंह ने हिरण्यकशिपु को उठाकर घर की दहलीज पर अपनी गोद में रखा और अपने नाखूनों से उसका वध कर दिया, इस प्रकार ब्रह्मा जी के वरदान का भी सम्मान किया गया और भक्त प्रह्लाद की रक्षा भी हुई।

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