Misc

Pitru Paksha 2025 – पितृ पक्ष की तिथियां, नियम, महत्व और मान्यताएं

MiscHindu Gyan (हिन्दू ज्ञान)हिन्दी
Share This

Join HinduNidhi WhatsApp Channel

Stay updated with the latest Hindu Text, updates, and exclusive content. Join our WhatsApp channel now!

Join Now

पितृपक्ष 08 सितंबर से शुरू हो रहा है। पितृपक्ष के समय लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और अन्य धार्मिक कार्य करते हैं। इस दौरान, लोग अपने पितरों की तृप्ति के लिए भोजन और जल अर्पित करते हैं। साथ ही ब्राह्मणों को भोजन कराना, उन्हें दान-दक्षिणा देना और पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करना भी इस समय की खास परंपराएं हैं।

पितृपक्ष का समय भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होता है और अश्विन महीने की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक रहता है। इस साल, यह समय 08 सितंबर से लेकर 21 सितंबर तक चलेगा।

पितृ पक्ष 2025 – 08 या 09 सितंबर को कब शुरू होगा?

पितृ पक्ष का शुभारंभ 08 सितंबर 2025 को होगा, जो भाद्रपद पूर्णिमा है। लेकिन इस दिन श्राद्ध नहीं किया जाता। इस दिन ऋषियों का तर्पण होता है, जिसे ऋषि तर्पण कहा जाता है। श्राद्ध करने की शुरुआत प्रतिपदा तिथि से होती है, इसलिए इस साल पहला श्राद्ध 8 सितंबर 2025 को होगा।

पितृ पक्ष की मुख्य तिथियां (Pitru Paksha 2025 Dates)

  • पूर्णिमा श्राद्ध – 08 सितंबर 2025 (सोमवार)
  • प्रतिपदा श्राद्ध – 08 सितंबर 2025 (सोमवार)
  • द्वितीया श्राद्ध – 09 सितंबर 2025 (मंगलवार)
  • तृतीया श्राद्ध – 10 सितंबर 2025 (बुधवार)
  • चतुर्थी श्राद्ध – 10 सितंबर 2025 (बुधवार)
  • महा भरणी – 11 सितंबर 2025 (गुरुवार)
  • पंचमी श्राद्ध – 11 सितंबर 2025 (गुरुवार)
  • षष्ठी श्राद्ध – 12 सितंबर 2025 (शुक्रवार)
  • सप्तमी श्राद्ध – 13 सितंबर 2025 (शनिवार)
  • अष्टमी श्राद्ध – 14 सितंबर 2025 (रविवार)
  • नवमी श्राद्ध – 15 सितंबर 2025 (सोमवार)
  • दशमी श्राद्ध – 16 सितंबर 2025 (मंगलवार)
  • एकादशी श्राद्ध – 17 सितंबर 2025 (बुधवार)
  • द्वादशी श्राद्ध – 18 सितंबर 2025 (गुरुवार)
  • मघा श्राद्ध – 19 सितंबर 2025 (शुक्रवार)
  • त्रयोदशी श्राद्ध – 19 सितंबर 2025 (शुक्रवार)
  • चतुर्दशी श्राद्ध – 20 सितंबर 2025 (शनिवार)
  • सर्वपितृ अमावस्या – 21 सितंबर 2025 (रविवार)

साल में कब-कब किया जा सकता है श्राद्ध?

श्राद्ध करने के लिए 12 अमावस्याएं, 12 संक्रांतियां, 16 दिन के पितृ पक्ष सहित कुल 96 दिन तय किए गए हैं, जिनमें श्राद्ध किया जा सकता है। अगर किसी कारणवश पितृ पक्ष में श्राद्ध न कर पाएं, तो सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध करने से पितरों को तृप्ति मिलती है।
ग्रंथों में हर दिन श्राद्ध करने का भी प्रावधान है, लेकिन समय की कमी के चलते लोग इसे खास तिथियों पर करते हैं।

पितृ पक्ष में कौन से काम नहीं करने चाहिए?

  • धार्मिक मान्यता के अनुसार, पितृ पक्ष के दौरान कोई भी शुभ काम नहीं करना चाहिए। इस समय शादी, सगाई, गृह प्रवेश, और मुंडन जैसे कार्यों से बचना चाहिए।
  • पितृ पक्ष में कोई भी नई वस्तु खरीदने से बचना चाहिए।
  • पितृ पक्ष में प्याज, लहसुन और तामसिक भोजन खाने से आपकी पूजा का फल नहीं मिलता। साथ ही, ज्यादा मिर्च, बैंगन, सफेद तिल, लौकी, मूली, काला नमक, जीरा, सत्तू, मसूर की दाल, चना और सरसों के साग से भी परहेज करें। ये खाने आपकी मानसिक और शारीरिक सेहत पर बुरा असर डाल सकते हैं।
  • श्राद्ध के खाने को लोहे के बर्तन में न बनाएं। खाना बनाने के लिए तांबे, पीतल या अन्य धातु के बर्तनों का इस्तेमाल करें।
  • पितृ पक्ष के दौरान बाल या दाढ़ी कटवाने से बचें। इससे धन हानि हो सकती है।
  • पितृ पक्ष में ताजा खाना खाएं और बासी भोजन से परहेज करें।
  • श्राद्ध के दौरान गृह कलह, स्त्रियों या साधुओं का अपमान करने से पूर्वज नाराज होते हैं। बड़ों का सम्मान न करने और बच्चों को परेशान करने से भी पूजा का फल नहीं मिलता।

पितृपक्ष के नियम और परंपराएं

पितृपक्ष के दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे कि शादी, सगाई, गृह प्रवेश, मुंडन या नई चीजों की खरीदारी करना वर्जित होता है। इस समय केवल पितरों के लिए श्राद्ध करने की परंपरा है। हर व्यक्ति अपने पितरों का श्राद्ध तिथि के अनुसार करता है।

यह समय बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसमें हम अपने पूर्वजों को याद करके उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। भादो पूर्णिमा से लेकर सर्वपितृ अमावस्या तक सभी तिथियों पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

पितृ पक्ष का इतिहास

पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत के योद्धा कर्ण की मृत्यु के बाद, उनकी आत्मा स्वर्ग में चली गई। वहां उन्हें खाने के बजाय सोने के आभूषण दिए गए। जब कर्ण ने इसका कारण पूछा, तो इंद्र देव ने बताया कि उन्होंने अपने जीवन में बहुत दान किया, पर अपने पूर्वजों को कभी भोजन नहीं दिया। कर्ण ने कहा कि उन्हें अपने पूर्वजों के बारे में पता नहीं था। इंद्र ने उन्हें पंद्रह दिनों के लिए धरती पर भेजा ताकि वे अपने पितरों के लिए भोजन बना सकें और दान कर सकें। इस अवधि को पितृ पक्ष कहा जाता है।

श्राद्ध की विधि और मंत्र

श्राद्ध की विधि हर जगह थोड़ी अलग हो सकती है, लेकिन कुछ बातें सामान्य होती हैं:

  1. स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
  2. पूजा स्थान को साफ करें और सजाएं।
  3. पितरों का श्राद्ध दक्षिण दिशा में करें।
  4. पितरों की तस्वीर या मूर्ति को आसन पर रखें।
  5. तैयार भोजन (चावल, दाल, सब्जी आदि) और जल अर्पित करें।
  6. पितरों का नाम लेकर मंत्रों का उच्चारण करें।
  7. ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दें।

श्राद्ध के मंत्र

  • ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः (सभी देवताओं को नमन)
  • ॐ पितृभ्यो नमः (पितरों को नमन)
  • ॐ अग्नये नमः (अग्निदेव को नमन)
  • ॐ नमो भगवते वासुदेवाय (भगवान विष्णु को नमन)

Found a Mistake or Error? Report it Now

Download HinduNidhi App
Join WhatsApp Channel Download App