Saraswati Maa

सरस्वती व्रत कथा एवं पूजा विधि

Saraswati Vrat Katha Avm Pooja Vidhi Hindi

Saraswati MaaVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
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|| सरस्वती पूजा विधि ||

  • मां सरस्वती की पूजा से पहले स्नान कर स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें। पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। अपने सामने पीला वस्त्र बिछाकर मां सरस्वती की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • इसके बाद सबसे पहले कलश की पूजा करें, फिर नवग्रहों की पूजा करके मां सरस्वती की उपासना आरंभ करें। पूजन के दौरान देवी को आचमन और स्नान कराएं, फिर उन्हें श्रंगार की सामग्री अर्पित करें।
  • इसके बाद रोली, मौली, केसर, हल्दी, चावल, पीले फूल, पीली मिठाई, मिश्री, दही, हलवा आदि का प्रसाद मां को अर्पित करें और ध्यान में बैठें। मां सरस्वती के चरणों में श्वेत चंदन लगाएं तथा पीले और सफेद फूल अर्पित करें।
  • फिर “ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः” मंत्र का जाप करें। यदि शिक्षा में बाधा हो रही हो, तो इस दिन विशेष पूजन करने से सभी बाधाओं से मुक्ति प्राप्त होती है।

|| सरस्वती व्रत कथा ||

सत्ययुग में सुकेत नामक एक धर्मपरायण राजा राज्य करता था। वह अपने प्रजा की भलाई के लिए हमेशा तत्पर रहता था। उसकी पत्नी सुवेदी अत्यंत सुंदर और धार्मिक प्रवृत्ति की थी।

एक दिन, दुश्मनों ने सुकेत के राज्य पर हमला कर दिया। युद्ध में शत्रु अधिक शक्तिशाली थे, जिससे राजा को अपनी रक्षा के लिए युद्धभूमि से पीछे हटना पड़ा। जब रानी सुवेदी ने यह देखा, तो वह भी अपने पति के साथ जंगल की ओर निकल पड़ी।

जंगल में भटकते हुए वे दोनों भूख-प्यास से कमजोर हो गए। थककर राजा भूमि पर गिर पड़ा, और रानी ने अपनी जंघा को राजा के सिर के नीचे तकिया बना लिया। वह अत्यंत दुखी होकर भगवान से सहायता मांगने लगी।

संयोग से, ऋषि अंगिरस उधर से गुजरे और राजा-रानी को देखकर ठहर गए। उन्होंने रानी से उनकी व्यथा पूछी। रानी ने अपने कष्टों की पूरी कथा सुनाई।

ऋषि ने उन्हें सांत्वना दी और कहा कि उनके दुखों से मुक्ति पाने का एक उपाय है। उन्होंने उन्हें पंचवटी तालाब के पास स्थित “दुर्गाक्षेत्र” में जाकर देवी दुर्गा और मां सरस्वती की श्रद्धापूर्वक पूजा करने की सलाह दी।

राजा और रानी ऋषि के साथ दुर्गाक्षेत्र पहुंचे। उन्होंने पवित्र तालाब में स्नान किया और फिर विधिपूर्वक षोडशोपचार विधि से मां दुर्गा और मां सरस्वती की पूजा की। यह अनुष्ठान 9 दिनों तक चला।

दसवें दिन, हवन और विभिन्न दानों के साथ व्रत का समापन हुआ। देवी के आशीर्वाद से रानी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिसका नाम सूर्य प्रताप रखा गया। वह एक वीर और पराक्रमी योद्धा बना।

बड़ा होकर सूर्य प्रताप ने अपने पिता का राज्य पुनः प्राप्त किया और अपने माता-पिता को वापस राजमहल ले गया। तब से रानी सुवेदी प्रति वर्ष इस व्रत को करती रही और सदैव सुखी रही।

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