हर साल शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान कार्तिकेय (स्कन्द) को समर्पित ‘स्कन्द षष्ठी’ का पावन पर्व मनाया जाता है। यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र, देवों के सेनापति, भगवान स्कंद (कार्तिकेय, मुरुगन, सुब्रह्मण्यम) को समर्पित है।
दक्षिण भारत में यह पर्व विशेष उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है, हालाँकि इसका महत्व पूरे भारतवर्ष में स्वीकार किया जाता है। यह दिन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि इसके पीछे कई पौराणिक कथाएँ और वैज्ञानिक लाभ भी छिपे हुए हैं। आइए जानते हैं स्कन्द षष्ठी क्यों है इतनी खास और इस दिन व्रत रखने के क्या चमत्कारी लाभ हैं।
कौन हैं भगवान स्कन्द?
भगवान स्कन्द को विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे कार्तिकेय, मुरुगन, सुब्रह्मण्यम, कुमार, शण्मुख और गुहा। वे युद्ध, वीरता, ज्ञान और विजय के देवता माने जाते हैं। उनका जन्म तारकासुर नामक शक्तिशाली राक्षस का वध करने के लिए हुआ था, जिसे भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही मृत्यु का वरदान प्राप्त था। स्कन्द पुराण के अनुसार, भगवान कार्तिकेय ने इस दिन तारकासुर का वध किया था, इसीलिए यह दिन बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
स्कन्द षष्ठी का महत्व
स्कन्द षष्ठी का पर्व मुख्य रूप से भगवान कार्तिकेय की पूजा-अर्चना और व्रत रखने के लिए समर्पित है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं, भगवान कार्तिकेय की मूर्तियों को गंगाजल से स्नान कराते हैं, वस्त्र पहनाते हैं और विभिन्न प्रकार के फूल, फल, नैवेद्य अर्पित करते हैं।
- जैसा कि ऊपर बताया गया है, यह दिन भगवान कार्तिकेय द्वारा तारकासुर के वध का स्मरण कराता है। यह दर्शाता है कि जब धर्म पर संकट आता है, तो भगवान स्वयं किसी न किसी रूप में प्रकट होकर बुराई का नाश करते हैं।
- भगवान कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति माना जाता है, जो युद्ध और विजय के प्रतीक हैं। उनकी पूजा करने से व्यक्ति को आंतरिक शक्ति, साहस और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की प्रेरणा मिलती है।
- कई दंपत्ति संतान प्राप्ति की कामना के साथ स्कन्द षष्ठी का व्रत रखते हैं। माना जाता है कि भगवान कार्तिकेय की कृपा से योग्य और पराक्रमी संतान का आशीर्वाद मिलता है।
- यह भी माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान स्कन्द की पूजा करने से शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है तथा उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
स्कन्द षष्ठी व्रत के चमत्कारी लाभ
स्कन्द षष्ठी का व्रत सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि इसके कई ऐसे लाभ हैं जो व्यक्ति के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं:
- भगवान कार्तिकेय वीरता और साहस के प्रतीक हैं। जो भक्त सच्चे मन से उनका पूजन करते हैं, उनके अंदर आत्मविश्वास और विपरीत परिस्थितियों का सामना करने का साहस विकसित होता है।
- अगर आपके जीवन में कोई शत्रु बाधा बन रहे हैं, तो स्कन्द षष्ठी का व्रत आपको उनसे मुक्ति दिलाने में सहायक हो सकता है। यह न केवल बाहरी शत्रुओं बल्कि आंतरिक बुराइयों (क्रोध, लोभ, मोह) पर भी विजय प्राप्त करने में मदद करता है।
- जिन दंपत्तियों को संतान प्राप्ति में समस्या आ रही है, उनके लिए स्कन्द षष्ठी का व्रत अत्यंत फलदायी माना जाता है। इस दिन सच्चे मन से की गई प्रार्थना और व्रत से उत्तम संतान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, भगवान कार्तिकेय का संबंध मंगल ग्रह से है। जो लोग मंगल ग्रह से संबंधित समस्याओं जैसे – भूमि विवाद, रक्त संबंधी विकार या विवाह में देरी से जूझ रहे हैं, उन्हें इस व्रत से लाभ मिल सकता है।
- भगवान कार्तिकेय को ‘ज्ञानी’ भी कहा जाता है। उनकी पूजा करने से ज्ञान, बुद्धि और विवेक में वृद्धि होती है। विद्यार्थियों के लिए यह व्रत विशेष रूप से लाभदायक हो सकता है।
- इस दिन व्रत रखने और भगवान कार्तिकेय के मंत्रों का जाप करने से घर और आसपास की नकारात्मक ऊर्जाएं दूर होती हैं, जिससे सकारात्मकता का संचार होता है।
- नियमित रूप से स्कन्द षष्ठी का व्रत करने वाले भक्तों को आध्यात्मिक शांति मिलती है। यह व्रत मोक्ष प्राप्ति के मार्ग को भी प्रशस्त करने में सहायक माना जाता है।
स्कन्द षष्ठी व्रत विधि
स्कन्द षष्ठी का व्रत सामान्यतः एक दिन का होता है। इस दिन भक्त सूर्योदय से सूर्यास्त तक निराहार रहते हैं।
- भगवान कार्तिकेय का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प लें। सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- एक साफ स्थान पर भगवान कार्तिकेय की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। गंगाजल या पंचामृत से अभिषेक करें।
- फूल, माला, धूप, दीप, चंदन, कुमकुम, नैवेद्य (मिठाई, फल) आदि अर्पित करें। दक्षिण भारत में मुरुगन को मोर पंख और वेल् (भाला) विशेष रूप से अर्पित किए जाते हैं।
- भगवान कार्तिकेय के मंत्रों का जाप करें। कुछ प्रमुख मंत्र हैं: “ॐशरवणभवायनमः”, “ॐश्रीसुब्रह्मण्ययनमः”, “ॐकार्तिकेयनमः”
- स्कन्द षष्ठी व्रत कथा का पाठ या श्रवण करें। अंत में भगवान कार्तिकेय की आरती करें।
- शाम को फिर से पूजा करें और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण करें। पारण में सात्विक भोजन जैसे फल, दूध और फलाहार ले सकते हैं।
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