हिंदू धर्म में पूजा-अर्चना के साथ-साथ परिक्रमा का भी विशेष महत्व है। इसे प्रदक्षिणा भी कहा जाता है। मंदिर या देव प्रतिमा के चारों ओर घूमकर पूजा-अर्चना करने की प्रक्रिया को परिक्रमा कहते हैं। परिक्रमा को आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करने और जीवन के चक्र को समझने का एक माध्यम माना गया है।
भारतीय संस्कृति और धर्म में प्रदक्षिणा (परिक्रमा) एक महत्वपूर्ण धार्मिक क्रिया है। यह न केवल श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है, बल्कि हमारे मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध करने का एक माध्यम भी है। प्रदक्षिणा का अर्थ है भगवान या मंदिर के चारों ओर दाईं ओर घूमना। इसे शुभ और पवित्र कार्य माना जाता है।
मंदिरों में परिक्रमा का महत्व
- धार्मिक महत्व: शास्त्रों में बताया गया है कि किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को तब तक पूरा नहीं माना जाता जब तक कि भक्त देव प्रतिमा या स्थान की परिक्रमा नहीं करते। ऐसा माना जाता है कि परिक्रमा के दौरान भक्त मंदिर की सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव करते हैं। यह भक्त के समर्पण और श्रद्धा भाव को दर्शाता है।
- आध्यात्मिक महत्व: परिक्रमा को ईश्वर से जुड़ने का एक आध्यात्मिक तरीका माना जाता है। कहते हैं कि जिस बोझ और प्रार्थना के साथ व्यक्ति मंदिर में प्रवेश करता है, परिक्रमा उसे भगवान से जोड़ती है। इससे व्यक्ति का मन शांत होता है और वह ईश्वर में ध्यान केंद्रित कर पाता है। प्रदक्षिणा यह दर्शाती है कि भगवान ब्रह्मांड के केंद्र हैं, और हर जीव उनका परिक्रमा करता है। यह हमारे जीवन में भगवान के महत्व को दर्शाने का एक प्रतीकात्मक तरीका है। परिक्रमा करते समय भक्त अपनी भक्ति और समर्पण का भाव व्यक्त करते हैं और यह विश्वास करते हैं कि उनकी सभी इच्छाएं पूरी होंगी।
- वैज्ञानिक महत्व: जिन स्थानों पर नियमित रूप से पूजा होती है, वहां एक सकारात्मक ऊर्जा का क्षेत्र बन जाता है। जब कोई व्यक्ति इस क्षेत्र में परिक्रमा करता है, तो वह इस ऊर्जा को ग्रहण करता है, जिससे मन को शांति और शक्ति मिलती है। मंदिर की परिक्रमा करते समय हमारे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह प्रक्रिया मन को शांत करती है और शरीर को स्फूर्ति प्रदान करती है। साथ ही, मंदिर का वातावरण हमारे मन और आत्मा को शुद्ध करता है।
मंदिरों में परिक्रमा क्यों होती है जरूरी?
मंदिरों में परिक्रमा करने के कई कारण हैं:
- मंदिरों में नियमित पूजा-अर्चना से एक विशेष ऊर्जा का निर्माण होता है। परिक्रमा करने से व्यक्ति इस ऊर्जा के संपर्क में आता है, जिससे उसके भीतर सकारात्मकता का संचार होता है।
- परिक्रमा एक प्रकार का ध्यान है। जब व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति भाव से परिक्रमा करता है, तो उसका मन शांत होता है और चिंताएँ दूर होती हैं।
- ऐसा माना जाता है कि परिक्रमा करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
- परिक्रमा को देवता को प्रसन्न करने का एक तरीका भी माना जाता है।
मंदिरों में परिक्रमा की विधि
- परिक्रमा हमेशा दक्षिणावर्त (Clockwise) दिशा में करनी चाहिए।
- परिक्रमा करते समय मन में भगवान का ध्यान करना चाहिए।
- परिक्रमा शांत और धीमी गति से करनी चाहिए।
- परिक्रमा करते समय किसी से बात नहीं करनी चाहिए।
- प्रदक्षिणा करते समय भगवान का ध्यान और मंत्रों का जप करना शुभ माना जाता है।
किस देवता की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए?
धार्मिक शास्त्रों में प्रत्येक देवता के लिए परिक्रमा की संख्या अलग-अलग बताई गई है।
- भगवान गणेश: भगवान गणेश की 1 या 3 परिक्रमा की जाती है।
- भगवान शिव: शिवलिंग की परिक्रमा आधी (क्योंकि शिवलिंग का अभिषेक जल उत्तरी दिशा में बहता है, इसलिए उस दिशा में परिक्रमा नहीं की जाती) ही की जाती है। शिवलिंग के पीछे जल या बेलपत्र अर्पित करके परिक्रमा पूरी मानी जाती है।
- भगवान विष्णु: विष्णु भगवान की 4 परिक्रमा करना शुभ माना जाता है।
- मां दुर्गा: दुर्गा मां की 3, 5 या 7 परिक्रमा की जाती है।
- भगवान सूर्य: सूर्य देव की 7 परिक्रमा करने से विशेष फल मिलता है।
- पीपल का वृक्ष: पीपल की 7 परिक्रमा का विशेष महत्व है। इसे सुख और समृद्धि प्रदान करने वाला माना जाता है।
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