हिंदू कैलेंडर के आषाढ़ माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि भगवान विष्णु के पांचवें अवतार भगवान वामन को समर्पित है और इसे योगिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन विष्णु भक्तों द्वारा रखा जाने वाला व्रत या उपवास योगिनी एकादशी व्रत है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह दिन हर साल जून-जुलाई में आता है। यह साल योगिनी एकादशी 2 जुलाई, मंगलवार को है। योगिनी एकादशी निर्जला एकादशी (ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी) के बाद और देव शयनी एकादशी (आषाढ़ शुक्ल पक्ष) से पहले आती है।
योगिनी एकादशी का व्रत युवा या वृद्ध कोई भी कर सकता है और यह उन लोगों के लिए है जो किसी भी प्रकार की बीमारी या स्वास्थ्य समस्याओं से बचना चाहते हैं। यह व्रत उन लोगों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जो कुष्ठ रोग सहित त्वचा संबंधी किसी भी समस्या से पीड़ित हैं। यह व्रत, कई अन्य एकादशियों व्रतों की तरह, काफी फलदायी है और पिछले सभी पापों और बुरे कर्मों को दूर करता है और अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करता है।
योगिनी एकादशी 2024 के शुभ मुहूर्त:
- योगिनी एकादशी तिथि: 2 जुलाई 2024, मंगलवार
- पारण का समय: 3 जुलाई 2024, सुबह 05:28 से 07:10 बजे तक
- एकादशी तिथि प्रारम्भ: 1 जुलाई 2024 को सुबह 10:26 बजे से
- एकादशी तिथि समाप्त: 2 जुलाई 2024 को सुबह 08:42 बजे तक
योगिनी एकादशी व्रत पूजा विधि:
- योगिनी एकादशी के उपवास की शुरुआत दशमी तिथि की रात्रि से होती है। व्रती को दशमी तिथि की रात्रि से ही तामसिक भोजन का त्याग कर सादा भोजन ग्रहण करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
- पुष्प, धूप, दीप आदि से योगिनी एकादशी आरती उतारें। पूजा स्वयं कर सकते हैं या किसी विद्वान ब्राह्मण से करवा सकते हैं।
- जमीन पर ही सोएं। प्रात:काल उठकर नित्यकर्म से निजात पाकर स्नान करें और फिर व्रत का संकल्प लें।
- कुंभ स्थापना कर उस पर भगवान विष्णु की मूर्ति रखें और उनकी पूजा करें। भगवान नारायण की मूर्ति को स्नान कराकर भोग लगाएं।
- दिन में योगिनी एकादशी की कथा सुनें और दान कर्म करें।
- पीपल के पेड़ की पूजा करें और रात्रि में जागरण करें।
- इस दिन दुर्व्यसनों से दूर रहें और सात्विक जीवन जीं।
योगिनी एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में अन्नत अविनाशी शमशान सेवी भगवान शिव जो कृपा व दया के सागर है उनका भक्त जो कि अलकापुरी में राज्य करता था उसका नाम कुबेर था और नित्यप्रति भगवान शिव की पूजा किया करता था उसकी पूजा के लिए एक हेममाली पुष्प लाया करता था। किन्तु एकदा वह अत्यंत रूपवती अपनी स्त्री के साथ कामासक्त होकर पूजाकाल में रमण करने लगा।
इधर शिव भक्त राजा उसका सुबह से दोपहर तक इंतजार करता रहा किन्तु वह नहीं पहुंचा इस पर राजा के अनुचरों ने उसका पता लगाया जिससे ज्ञात हुआ कि वह काम क्रियाओं मे अपनी स्त्री के साथ लिप्त है इस पर राजा क्रोधित हुआ और उसे अपने पास बुलाया और कहा तूने भगवान शिव की पूजा में विध्नडाला है जो देवों के भी देव महादेव है इसलिए इस नीच कर्म की सजा हेतु मै तुझे श्रापित करता हूँ कि तू मृत्यु लोक में स्त्री का वियोग और कोढ़ से पीड़ित हो पृथ्वी पर भटकेगा।
इस प्रकार राजा के श्राप के द्वारा वह माली नाना प्रकार के कष्टों से पीड़ित वन में भटकने लगा और व्यथा पूर्ण उसका समय व्यतीत हुआ किन्तु कुछ काल के पष्चात् वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम जा पहुंचा जो महान तेजस्वी और दयालु ऋषि थे उसने अपनी सारी कथा उस तेजोराषि ऋषि से कह सुनाई तथा अपने उद्धार का उपाय पूछने लगा इस पर ऋषि ने उसे आषाढ़ मास की एकादशी का व्रत विधि पूर्ण करने को कहा ऋषि के ऐसे वचन सुनकर उसने विधि पूर्वक व्रत का पालन किया जिसके पुण्य प्रभाव से वह पुनः उसी सुन्दर काया में अपनी रूपवती स्त्री आदि वैभव को प्राप्त किया।
इस एकादशी के व्रत में ब्राह्मणों को आदर सहित श्रद्धा विष्वास पूर्ण भोजन कराने का विधान है जिससे व्रती का व्रत सफल होता है और उसको धर्म मोक्ष स्वर्ण आदि प्राप्त होते है।
यह व्रत श्री हरि विष्णु को समर्पित है। अर्थात् नियम व संयम जो व्रत के प्रमुख घटक हैं उनका पालन बहुत ही जरूरी है अन्यथा व्रत का कोई फल नहीं प्राप्त होता और व्रती अविष्वास और अश्रद्धा का षिकार होकर नाना प्रकार के दुःखों से पीड़ित होता रहता है। एकादशी व्रत अत्यंत दुर्लभ और पुण्यदायक व्रत है।
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