हिंदू धर्म में मंत्र जाप का विशेष महत्व है और इसके लिए 108 मोतियों की माला का प्रयोग सदियों से होता आ रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों 108 मोतियों की माला ही चुनी जाती है और इसके क्या नियम हैं? आईये, जानते हैं इसके पीछे के रहस्य और खास वजहे।
सनातन धर्म में मंत्रों को अत्यंत शक्तिशाली माना गया है। यह ध्वनि तरंगें ब्रह्मांडीय ऊर्जा को आकर्षित करने की क्षमता रखती हैं। मंत्र जाप ईश्वर की भक्ति का एक सरल और प्रभावी माध्यम है। ऐसी मान्यता है कि मंत्रों के नियमित जाप से व्यक्ति के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है और आसपास का वातावरण भी शुद्ध हो जाता है।
मंत्रों की इतनी शक्ति है कि वे कठिन परिस्थितियों को अनुकूल बना सकते हैं। हालांकि, मंत्र जाप का पूरा लाभ तभी मिलता है जब इसे नियमों और विधियों के अनुसार किया जाए। यदि सावधानियां नहीं बरती जातीं, तो जाप का प्रभाव कम हो सकता है। आइए, इस लेख में मंत्र जाप के नियमों और सही विधियों पर विस्तार से चर्चा करते हैं।
माला में 108 का महत्व
108 की संख्या हिंदू धर्म, ज्योतिष, योग और विज्ञान में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसके कुछ कारण इस प्रकार हैं:
- ज्योतिष: ज्योतिष के अनुसार, 12 राशियाँ और 9 ग्रह होते हैं। 12 को 9 से गुणा करने पर 108 आता है।
- योग: मानव शरीर में 108 नाड़ियाँ मानी जाती हैं, जिनमें से एक, सुषुम्ना, को मोक्ष का मार्ग माना जाता है।
- विज्ञान: कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि सूर्य का व्यास पृथ्वी के व्यास का लगभग 108 गुना है।
- आध्यात्मिक कारण: ऐसा माना जाता है कि मनुष्य दिनभर में 21,600 बार सांस लेता है, जिसमें से 10,800 सांसें दैवीय ऊर्जा से जुड़ी होती हैं। इसलिए, 108 जाप करके उस ऊर्जा का अनुभव किया जा सकता है।
108 मोतियों की माला के नियम
- माला का चुनाव: रुद्राक्ष, तुलसी, स्फटिक आदि विभिन्न प्रकार की मालाएँ उपलब्ध हैं। मंत्र के अनुसार माला का चुनाव करना चाहिए।
- माला पकड़ने का तरीका: माला को मध्यमा उंगली पर रखकर अंगूठे से एक-एक मोती आगे बढ़ाया जाता है। तर्जनी उंगली का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- सुमेरु का महत्व: माला के अंत में एक बड़ा मोती होता है जिसे सुमेरु कहते हैं। इसे लांघा नहीं जाता, बल्कि माला को घुमाकर फिर से जाप शुरू किया जाता है।
- माला की स्थिति: जाप करते समय माला नाभि से नीचे और नाक से ऊपर नहीं होनी चाहिए। इसे हृदय के पास रखना चाहिए।
- एकाग्रता: जाप करते समय मन को शांत और एकाग्र रखना चाहिए।
मंत्र जाप के दौरान पालन करने योग्य नियम
- मंत्र जाप हमेशा जमीन पर बैठकर करें और एक शुद्ध आसन का उपयोग करें। यह आध्यात्मिक क्रिया को प्रभावशाली बनाता है।
- जिस माला से मंत्र जाप शुरू करें, उसे हमेशा उसी उद्देश्य के लिए उपयोग करें। जाप के बाद माला को शुद्ध कपड़े में लपेटकर रखें और इसे खुले में या कील पर न टांगें।
- मंत्र जाप करते समय तर्जनी अंगुली का प्रयोग वर्जित है, क्योंकि इसे अहंकार का प्रतीक माना गया है। माला को अंगूठे और मध्यमा अंगुली से घुमाएं।
- जाप के दौरान छींक या जम्हाई आने पर माला को गोमुखी में रखें और एक तांबे के पात्र में जल और तुलसी का उपयोग करें। इससे वायु दोष का प्रभाव कम होता है।
- मंत्र जाप समाप्त होने पर थोड़ा जल जमीन पर डालें और उसी जल से अपना माथा और आंखें धो लें। इससे जाप का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
- हर देवी-देवता और मंत्र के लिए विशेष माला का उपयोग करें। उदाहरण के लिए, भगवान शिव के लिए रुद्राक्ष की माला, माता लक्ष्मी के लिए कमलगट्टे की माला, और गुरु मंत्र के लिए स्फटिक माला का उपयोग करें।
मंत्र जाप के लिए माला का महत्व
हर मंत्र में एक विशिष्ट ऊर्जा होती है, और इसे जागृत करने के लिए माला का उपयोग किया जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि मंत्र जाप में माला का उपयोग इसलिए किया जाता है ताकि जाप की संख्या में कोई गलती न हो। एक माला में 108 दाने होते हैं, जो एक पूर्ण संख्या का प्रतीक है। यह संख्या विशेष मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। देवी-देवताओं की उपासना में विभिन्न प्रकार की मालाओं का उपयोग होता है, जैसे रुद्राक्ष, स्फटिक, या कमलगट्टे की माला।
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