|| अक्षय तृतीया व्रत कथा ||
प्राचीन काल में धर्मदास नामक एक गरीब और धर्मात्मा वैश्य रहता था। वह हमेशा दान-पुण्य और धार्मिक कार्यों में लगा रहता था। उसकी पत्नी बहुत कंजूस थी और उसे यह सब पसंद नहीं था। एक बार अक्षय तृतीया के दिन धर्मदास ने गंगा स्नान किया और विधिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा की। उसने जौ, गेहूँ, सत्तू, दही, चावल, गुड़ और सोना आदि दान किया। उसकी पत्नी ने उसे ऐसा करने से बहुत रोका, परन्तु धर्मदास ने उसकी बात नहीं मानी।
कुछ समय बाद धर्मदास की मृत्यु हो गई। अपने दान-पुण्य के प्रभाव से वह अगले जन्म में कुशावती नगरी का राजा बना। वह बहुत धनी और प्रतापी राजा था। उसकी पत्नी भी अगले जन्म में एक धनी व्यापारी की पुत्री बनी। एक दिन राजा धर्मदास अपनी पत्नी को पहचान गया और उसे अपने पिछले जन्म की याद दिलाई। पत्नी को अपनी कंजूसी पर बहुत पछतावा हुआ और वह भी दान-पुण्य के कार्यों में लग गई।
कहते हैं कि इस व्रत को करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। जो भी व्यक्ति इस कथा को सुनता या पढ़ता है, उसे भी अक्षय फल मिलता है।
अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन दान-पुण्य करना, नए कार्य शुरू करना और शुभ कार्य करना बहुत फलदायी माना जाता है।
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