श्री भैरव चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को भय, शत्रु, और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है। भैरवनाथ, भगवान शिव के रौद्र रूप हैं, जिन्हें तंत्र-मंत्र का देवता और क्षेत्रपाल (क्षेत्र का रक्षक) माना जाता है। इस चालीसा का नियमित पाठ करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख-शांति आती है।
|| श्री भैरव चालीसा (Bhairava Chalisa PDF) ||
॥ दोहा ॥
श्री भैरव सङ्कट हरन,
मंगल करन कृपालु।
करहु दया जि दास पे,
निशिदिन दीनदयालु॥
॥ चौपाई ॥
जय डमरूधर नयन विशाला।
श्याम वर्ण, वपु महा कराला॥
जय त्रिशूलधर जय डमरूधर।
काशी कोतवाल, संकटहर॥
जय गिरिजासुत परमकृपाला।
संकटहरण हरहु भ्रमजाला॥
जयति बटुक भैरव भयहारी।
जयति काल भैरव बलधारी॥
अष्टरूप तुम्हरे सब गायें।
सकल एक ते एक सिवाये॥
शिवस्वरूप शिव के अनुगामी।
गणाधीश तुम सबके स्वामी॥
जटाजूट पर मुकुट सुहावै।
भालचन्द्र अति शोभा पावै॥
कटि करधनी घुँघरू बाजै।
दर्शन करत सकल भय भाजै॥
कर त्रिशूल डमरू अति सुन्दर।
मोरपंख को चंवर मनोहर॥
खप्पर खड्ग लिये बलवाना।
रूप चतुर्भुज नाथ बखाना॥
वाहन श्वान सदा सुखरासी।
तुम अनन्त प्रभु तुम अविनाशी॥
जय जय जय भैरव भय भंजन।
जय कृपालु भक्तन मनरंजन॥
नयन विशाल लाल अति भारी।
रक्तवर्ण तुम अहहु पुरारी॥
बं बं बं बोलत दिनराती।
शिव कहँ भजहु असुर आराती॥
एकरूप तुम शम्भु कहाये।
दूजे भैरव रूप बनाये॥
सेवक तुमहिं तुमहिं प्रभु स्वामी।
सब जग के तुम अन्तर्यामी॥
रक्तवर्ण वपु अहहि तुम्हारा।
श्यामवर्ण कहुं होई प्रचारा॥
श्वेतवर्ण पुनि कहा बखानी।
तीनि वर्ण तुम्हरे गुणखानी॥
तीनि नयन प्रभु परम सुहावहिं।
सुरनर मुनि सब ध्यान लगावहिं॥
व्याघ्र चर्मधर तुम जग स्वामी।
प्रेतनाथ तुम पूर्ण अकामी॥
चक्रनाथ नकुलेश प्रचण्डा।
निमिष दिगम्बर कीरति चण्डा॥
क्रोधवत्स भूतेश कालधर।
चक्रतुण्ड दशबाहु व्यालधर॥
अहहिं कोटि प्रभु नाम तुम्हारे।
जयत सदा मेटत दुःख भारे॥
चौंसठ योगिनी नाचहिं संगा।
क्रोधवान तुम अति रणरंगा॥
भूतनाथ तुम परम पुनीता।
तुम भविष्य तुम अहहू अतीता॥
वर्तमान तुम्हरो शुचि रूपा।
कालजयी तुम परम अनूपा॥
ऐलादी को संकट टार्यो।
साद भक्त को कारज सारयो॥
कालीपुत्र कहावहु नाथा।
तव चरणन नावहुं नित माथा॥
श्री क्रोधेश कृपा विस्तारहु।
दीन जानि मोहि पार उतारहु॥
भवसागर बूढत दिनराती।
होहु कृपालु दुष्ट आराती॥
सेवक जानि कृपा प्रभु कीजै।
मोहिं भगति अपनी अब दीजै॥
करहुँ सदा भैरव की सेवा।
तुम समान दूजो को देवा॥
अश्वनाथ तुम परम मनोहर।
दुष्टन कहँ प्रभु अहहु भयंकर॥
तम्हरो दास जहाँ जो होई।
ताकहँ संकट परै न कोई॥
हरहु नाथ तुम जन की पीरा।
तुम समान प्रभु को बलवीरा॥
सब अपराध क्षमा करि दीजै।
दीन जानि आपुन मोहिं कीजै॥
जो यह पाठ करे चालीसा।
तापै कृपा करहु जगदीशा॥
॥ दोहा ॥
जय भैरव जय भूतपति,
जय जय जय सुखकंद।
करहु कृपा नित दास पे,
देहुं सदा आनन्द॥
|| श्री भैरव चालीसा पाठ विधि ||
भैरव चालीसा का पाठ शुरू करने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है:
- शनिवार या रविवार के दिन सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। एक साफ और शांत स्थान पर भैरवनाथ की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
- एक दीया (सरसों के तेल का), धूप, फूल (गुलाब या गेंदे के), काला तिल, उड़द की दाल और प्रसाद (गुड़ के पकवान या इमरती) तैयार रखें।
- सबसे पहले, भगवान भैरव का ध्यान करते हुए मन ही मन उनका आह्वान करें।
- अपनी इच्छा को मन में रखते हुए चालीसा पाठ का संकल्प लें।
- श्रद्धा और भक्ति के साथ चालीसा का पाठ करें।
- पाठ पूरा होने के बाद भगवान भैरव की आरती करें और प्रसाद सभी में बांट दें।
|| श्री भैरव चालीसा के लाभ ||
- इस चालीसा के नियमित पाठ से शत्रु पर विजय प्राप्त होती है और उनका भय समाप्त होता है।
- भैरवनाथ की कृपा से नकारात्मक ऊर्जा, जादू-टोना और बुरी नजर का प्रभाव खत्म होता है।
- मुकदमे और कानूनी मामलों में सफलता प्राप्त करने के लिए यह चालीसा बहुत लाभकारी मानी जाती है।
- भैरवनाथ की कृपा से गंभीर रोगों से मुक्ति मिलती है और स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- भैरवनाथ अपने भक्तों की हर प्रकार के आकस्मिक संकटों और दुर्घटनाओं से रक्षा करते हैं।
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