Download HinduNidhi App
Misc

अनंत चतुर्दशी व्रत कथा और पूजा विधि

Anant Chaturdashi Vrat Katha Puja Vidhi Hindi

MiscVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
Share This

।। अनंत चतुर्दशी पूजा विधि ।।

  • इस दिन प्रातःकाल स्नान के बाद पूजा स्थल पर कलश स्थापित करें।
  • इसके बाद कलश पर भगवान विष्णु की तस्वीर भी लगाएं।
  • एक धागे को कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकर अनंत सूत्र बनाएं, इसमें 14 गांठें लगी होनी चाहिए।
  • इस सूत्रो भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने रखें। अब भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की पूजा करें और
    ‘अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।
    अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।’
    मंत्र का जाप करें।
  • इसके बाद अनंत सूत्र को बाजू में बांध लें. माना जाता है कि इस सूत्र को धारण करने से संकटों का नाश होता है।

।। अनंत चतुर्दशी व्रत कथा ।।

प्राचीन काल में सुमंत नाम का एक नेक तपस्वी ब्राह्मण था। उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था। उसकी एक परम सुंदरी धर्मपरायण तथा ज्योतिर्मयी कन्या थी। जिसका नाम सुशीला था। सुशीला जब बड़ी हुई तो उसकी माता दीक्षा की मृत्यु हो गई।

पत्नी के मरने के बाद सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह कर लिया। सुशीला का विवाह ब्राह्मण सुमंत ने कौंडिन्य ऋषि के साथ कर दिया। विदाई में कुछ देने की बात पर कर्कशा ने दामाद को कुछ ईंटें और पत्थरों के टुकड़े बांध कर दे दिए।कौंडिन्य ऋषि दुखी हो अपनी पत्नी को लेकर अपने आश्रम की ओर चल दिए। परंतु रास्ते में ही रात हो गई। वे नदी तट पर संध्या करने लगे।

सुशीला ने देखा- वहां पर बहुत-सी स्त्रियां सुंदर वस्त्र धारण कर किसी देवता की पूजा पर रही थीं। सुशीला के पूछने पर उन्होंने विधिपूर्वक अनंत व्रत की महत्ता बताई। सुशीला ने वहीं उस व्रत का अनुष्ठान किया और चौदह गांठों वाला डोरा हाथ में बांध कर ऋषि कौंडिन्य के पास आ गई।

कौंडिन्य ने सुशीला से डोरे के बारे में पूछा तो उसने सारी बात बता दी। उन्होंने डोरे को तोड़ कर अग्नि में डाल दिया, इससे भगवान अनंत जी का अपमान हुआ। परिणामत: ऋषि कौंडिन्य दुखी रहने लगे। उनकी सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई। इस दरिद्रता का उन्होंने अपनी पत्नी से कारण पूछा तो सुशीला ने अनंत भगवान का डोरा जलाने की बात कहीं।

पश्चाताप करते हुए ऋषि कौंडिन्य अनंत डोरे की प्राप्ति के लिए वन में चले गए। वन में कई दिनों तक भटकते-भटकते निराश होकर एक दिन भूमि पर गिर पड़े।

तब अनंत भगवान प्रकट होकर बोले- ‘हे कौंडिन्य! तुमने मेरा तिरस्कार किया था, उसी से तुम्हें इतना कष्ट भोगना पड़ा। तुम दुखी हुए। अब तुमने पश्चाताप किया है। मैं तुमसे प्रसन्न हूं। अब तुम घर जाकर विधिपूर्वक अनंत व्रत करो। चौदह वर्षपर्यंत व्रत करने से तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा। तुम धन-धान्य से संपन्न हो जाओगे। कौंडिन्य ने वैसा ही किया और उन्हें सारे क्लेशों से मुक्ति मिल गई।’

श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत किया जिसके प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए तथा चिरकाल तक राज्य करते रहे।

Found a Mistake or Error? Report it Now

Download HinduNidhi App

Download अनंत चतुर्दशी व्रत कथा और पूजा विधि PDF

अनंत चतुर्दशी व्रत कथा और पूजा विधि PDF

Leave a Comment