प्रकाश पर्व दीपावली (Diwali) के अगले दिन, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को एक अत्यंत महत्वपूर्ण और शुभ पर्व मनाया जाता है – बलि प्रतिपदा। इसे बलि पड़वा या वर्ष प्रतिपदा भी कहते हैं। यह दिन गोवर्धन पूजा के साथ ही मनाया जाता है और महाराष्ट्र तथा गुजरात जैसे कुछ क्षेत्रों में इसे विक्रम संवत के अनुसार नए वर्ष का आरंभ (New Year Beginning) माना जाता है।
यह पर्व न केवल एक पौराणिक कथा से जुड़ा है, बल्कि यह दान, त्याग और सत्यनिष्ठा के मूल्यों को भी दर्शाता है। आइए, जानते हैं 2025 में कब है यह पर्व, इसकी पूजा विधि क्या है और इसके पीछे की अविश्वसनीय पौराणिक कथा (Mythological Story) क्या है।
बलि प्रतिपदा 2025 – शुभ तिथि और मुहूर्त (Shubh Tithi and Muhurat)
हिंदू पंचांग के अनुसार, बलि प्रतिपदा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है। यह तिथि अक्सर दीपावली के अगले दिन पड़ती है।
- बलि प्रतिपदा तिथि – बुधवार, 22 अक्टूबर 2025
- प्रतिपदा तिथि आरंभ – 21 अक्टूबर 2025 को शाम 05:54 PM बजे
- प्रतिपदा तिथि समाप्त – 22 अक्टूबर 2025 को रात 08:16 PM बजे
- बलि पूजा प्रातःकाल मुहूर्त – 06:26 AM से 08:42 AM तक
- बलि पूजा सायंकाल मुहूर्त – 03:29 PM से 05:44 PM तक
क्यों मनाया जाता है बलि प्रतिपदा का पर्व? (Why is Bali Pratipada Celebrated?)
बलि प्रतिपदा का पर्व मनाने के पीछे की मुख्य वजह राजा बलि की महानता और भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के ‘वामन अवतार’ की विजय है। यह पर्व राजा बलि की दानवीरता, अहंकार का त्याग और भगवान के प्रति उनकी अटूट श्रद्धा को समर्पित है।
इस दिन राजा बलि को पृथ्वी पर लौटने और अपनी प्रजा को आशीर्वाद देने का अधिकार प्राप्त है। इसलिए, यह पर्व एक तरह से राजा बलि के प्रति सम्मान और उनके शासनकाल में हुए सुख-समृद्धि के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
राजा बलि की पौराणिक कथा – वामन अवतार और तीन पग भूमि
बलि प्रतिपदा का पर्व असुरों के राजा बलि और भगवान विष्णु के पांचवें अवतार वामन की कथा से जुड़ा है। यह कथा दान और समर्पण की पराकाष्ठा को दर्शाती है:
- राजा बलि की दानवीरता – राजा बलि एक न्यायप्रिय, शक्तिशाली और अत्यंत दानी (Generous) राजा थे, लेकिन वह कुछ अहंकारी भी हो गए थे। उन्होंने अपनी तपस्या और शक्ति से तीनों लोकों (Three Worlds) पर अधिकार कर लिया था, जिससे स्वर्ग के देवता संकट में आ गए थे।
- वामन अवतार का आगमन – देवताओं के आग्रह पर, भगवान विष्णु ने बौने ब्राह्मण (Dwarf Brahmin) ‘वामन’ का रूप धारण किया और राजा बलि के पास पहुंचे। उस समय राजा बलि एक विशाल यज्ञ (Yajna) कर रहे थे और किसी भी याचक को खाली हाथ नहीं लौटाने का प्रण लिया था।
- तीन पग भूमि का दान – वामन ने राजा बलि से केवल ‘तीन पग’ (Three Steps) भूमि दान में मांगी। राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य ने वामन के वास्तविक रूप को पहचान लिया और बलि को दान देने से मना किया, पर बलि ने अपने वचन का पालन किया।
- विराट रूप और दान का परिणाम – जैसे ही राजा बलि ने दान देने का संकल्प लिया, वामन ने अपना विराट रूप (Vishwaroop) धारण कर लिया। पहले पग में उन्होंने स्वर्ग लोक, और दूसरे पग में पृथ्वी लोक को नाप लिया।
- सर्वस्व समर्पण – अब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा। अपने वचन का मान रखने के लिए, राजा बलि ने वामन से कहा कि वह तीसरा पग उनके सिर पर रखें। भगवान वामन ने ऐसा ही किया, जिससे राजा बलि पाताल लोक (Netherworld) चले गए।
- वरदान – राजा बलि के इस त्याग और दानवीरता से प्रसन्न होकर, भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि वह वर्ष में एक बार कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन पृथ्वी पर आकर अपनी प्रजा से मिल सकते हैं और उन्हें सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दे सकते हैं। इसी दिन को बलि प्रतिपदा के रूप में मनाया जाता है।
बलि प्रतिपदा 2025 – पूजा विधि (Puja Vidhi)
इस दिन राजा बलि की पूजा करना विशेष फलदायी माना जाता है। पूजा विधि इस प्रकार है:
- सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र (Clean Clothes) धारण करें।
- पूजा स्थल को साफ कर, रंगोली या मांडना से सजाएं।
- पूजा स्थल पर राजा बलि और उनकी पत्नी विंध्यावली की छवि, मिट्टी की मूर्ति, या चित्र स्थापित करें। पारंपरिक रूप से, पांच रंगों से उनकी छवि बनाई जाती है।
- धूप, दीप, अक्षत (चावल), रोली, चंदन, फूल, माला, फल और नैवेद्य (मिठाई) तैयार रखें।
- राजा बलि का ध्यान करते हुए उन्हें उपरोक्त सामग्री अर्पित करें। विशेष रूप से चावल, चंदन और पीले फूल अवश्य चढ़ाएं।
- धूप-दीप जलाकर राजा बलि की आरती करें और उनकी पौराणिक कथा का पाठ करें या सुनें।
- इस दिन घर के बाहर दीपदान (Lighting Diyas) करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
बलि प्रतिपदा का महत्व (Significance)
बलि प्रतिपदा का पर्व अनेक मायनों में महत्वपूर्ण है:
- दान और त्याग का प्रतीक – यह पर्व राजा बलि के त्याग, दानवीरता और वचनबद्धता (Commitment to Words) की याद दिलाता है।
- गोवर्धन पूजा – यह पर्व गोवर्धन पूजा के साथ मनाया जाता है, जो भगवान कृष्ण द्वारा इंद्र के अहंकार को तोड़ने की कहानी से जुड़ा है। दोनों ही कथाएं अहंकार पर विनम्रता की विजय को दर्शाती हैं।
- नया वित्तीय वर्ष (New Financial Year) – गुजरात और महाराष्ट्र में इसे ‘बेस्तु वर्ष’ या ‘पड़वा’ के रूप में मनाया जाता है, जो उनके लिए नए वित्तीय वर्ष (Financial Year) की शुरुआत होती है। इस दिन व्यापारी अपने पुराने बही-खाते (Ledger Books) बंद करके नए शुरू करते हैं।
- सुख-समृद्धि – मान्यता है कि इस दिन राजा बलि पृथ्वी पर भ्रमण करते हैं और जो उनकी पूजा करता है, उसे वर्षभर सुख, समृद्धि (Prosperity) और ऐश्वर्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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