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भानु सप्तमी व्रत कथा व पूजा विधि

Bhanu Saptami Vrat Katha Puja Vidhi

MiscVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
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।। भानु सप्तमी व्रत पूजा विधि ।।

  • सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और उसके बाद तांबे के लोटे में जल भरें और उसमें लाल चन्दन, चावल, लाल फूल डालकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें।
  • जल चढ़ाते समय सूर्य के वरूण रूप को प्रणाम करते हुए ऊं रवये नम: मंत्र का जाप करें।
  • अंत में भगवान सूर्य को पृथ्वी पर झुककर प्रणाम करें और अर्घ्य को अपने मस्तक पर लगाएं।
  • इसके बाद भगवान से शक्ति, बुद्धि, स्वास्थ्य और सम्मान की कामना करनी चाहिए।
  • इस प्रकार जल चढ़ाने के बाद धूप, दीप से सूर्य देव का पूजन करें।

।। भानु सप्तमी व्रत कथा ।।

भानु सप्तमी पर्व के बारे में प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार किसी समय में इंदुमती नाम की एक वेश्या हुआ करती थी। वेश्यावृत्ति में लिप्त होने के कारण उसने अपने जीवन में कोई भी धर्म कर्म आदि नहीं किए थे।

एक दिन उसने वशिष्ठ ऋषि से पूछा- ऋषि श्रेष्ठ! मैने अपने अब तक के जीवन में कोई पुण्य कार्य नहीं किया है, परंतु मेरी ये अभिलाषा है कि मरणोपरांत मुझे मोक्ष की प्राप्ति हो! यदि मुझ वैश्या को किसी युक्ति से मोक्ष मिल सकता है तो वो उपाय बताने की कृपा करें ऋषिवर।

इंदुमती की ये विनती सुनकर ऋषि वशिष्ठ ने भानु सप्तमी का महात्म्य बताते हुए कहा- स्त्रियों को सुख, सौभाग्य, सौंदर्य एवं मोक्ष प्रदान करने वाला एक ही व्रत है, भानु सप्तमी या अचला सप्तमी।

इस सप्तमी तिथि पर जो स्त्री व्रत रखती है और विधि-विधान से सूर्य देव की आराधना करती है, उसे उसकी इच्छानुसार पुण्यफल प्राप्त होता है।

वशिष्ठ जी आगे बोले- यदि तुम इस जीवन के उपरांत मोक्ष पाना चाहती हो तो सच्चे मन से ये व्रत व पूजन अवश्य करना! इससे तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी।

ऋषि वशिष्ठ से भानु सप्तमी का महात्म्य सुनकर इंदुमती ने इस व्रत का पालन किया, जिसके फलस्वरूप प्राण त्यागने के बाद उसे जन्म मरण के चक्र से मुक्ति मिल गई, और स्वर्ग में इंदुमती को अप्सराओं की नायिका बनाया गया। इसी मान्यता के आधार पर आज भी जातक इस व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ करते हैं।

ये थी भानु सप्तमी से जुड़ी पौराणिक कथा। हमारी कामना है कि आपकी पूजा सफल हो और आपको इस दिन का लाभ मिले।

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