सूर्य धनु संक्रांति हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह वह दिन है जब ग्रहों के राजा सूर्य देव वृश्चिक राशि से निकलकर देवगुरु बृहस्पति की राशि धनु में प्रवेश करते हैं। इस संक्रमण के साथ ही खरमास (या धनुर्मास) की शुरुआत हो जाती है, जिसमें विवाह और अन्य बड़े शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, धनु संक्रांति का समय पुण्यकाल होता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान-पुण्य और सूर्य देव की उपासना का विशेष महत्व है। सूर्य को अर्घ्य देने और दान करने से आरोग्य, धन और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यह अवधि आध्यात्मिक उन्नति और श्रेष्ठ कर्मों के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है।
|| सूर्य धनु संक्रांति की कथा (खरमास की कथा) ||
ज्योतिष के अनुसार, जब सूर्यदेव गुरु की राशि धनु या मीन में स्थित होते हैं, तो उस समय को खरमास कहा जाता है। “खर” का अर्थ गधा होता है, और इस समय सूर्यदेव की गति धीमी हो जाती है। आइए, इस संदर्भ में पौराणिक कथा पढ़ें:
संस्कृत में गधे को “खर” कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार, भगवान सूर्यदेव अपने सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर निरंतर ब्रह्मांड की परिक्रमा करते रहते हैं। उन्हें कभी भी रुकने की अनुमति नहीं है।
ऐसा माना जाता है कि यदि सूर्यदेव का रथ रुक गया, तो जन-जीवन भी ठहर जाएगा। लेकिन उनके रथ में जुड़े घोड़े निरंतर चलने और विश्राम न मिलने के कारण भूख-प्यास से बहुत थक जाते हैं। उनकी इस दयनीय स्थिति को देखकर सूर्यदेव का मन द्रवित हो गया।
घोड़ों को राहत देने के उद्देश्य से वे एक तालाब के किनारे पहुंचे। लेकिन उन्हें यह एहसास हुआ कि यदि उनका रथ रुक गया, तो अनर्थ हो सकता है। तभी उन्होंने देखा कि तालाब के पास दो गधे खड़े हैं।
सूर्यदेव ने घोड़ों को पानी पीने और विश्राम करने के लिए छोड़ दिया और उन गधों को अपने रथ में जोत दिया। परंतु घोड़े और गधे की गति में अंतर होता है। गधों के रथ खींचने से सूर्यदेव की गति धीमी हो गई। जैसे-तैसे एक महीने का चक्र पूरा हुआ, तब तक घोड़ों ने विश्राम कर लिया था। इस प्रकार हर सौर वर्ष में एक बार ऐसा समय आता है, जिसे खरमास कहा जाता है।
खरमास की इस अवधि में, जब सूर्य धनु राशि में प्रवेश करते हैं, किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य जैसे विवाह, यज्ञोपवित, गृह प्रवेश, मकान निर्माण, नया व्यापार आरंभ करना या अन्य शुभ संस्कार करना वर्जित माना जाता है।
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