|| गजलक्ष्मी व्रत की पूजा विधि ||
यह व्रत शाम के समय किया जाता है। इसलिए, शाम को स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और घर के मंदिर में माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें।
पूजा की तैयारी
- केसर मिश्रित चंदन से अष्टदल बनाएं और उस पर चावल रखें।
- एक जल से भरा कलश अवश्य रखें।
- कलश के पास हल्दी से कमल बनाएं।
- इस कमल पर माता लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें।
- मिट्टी का हाथी बाज़ार से लाएँ या घर में बनाएँ और उसे स्वर्णाभूषणों से सजाएँ। यदि संभव हो, तो इस दिन नए सोने या चाँदी के आभूषण ख़रीदकर हाथी पर चढ़ाएँ। आप चाहें तो अपनी श्रद्धा के अनुसार सोने या चाँदी का हाथी भी ला सकते हैं। वैसे इस दिन चाँदी के हाथी का अधिक महत्व माना जाता है।
- ध्यान रखें कि माता लक्ष्मी की मूर्ति के सामने श्रीयंत्र भी रखें।
पूजा विधि
- इसके बाद चंदन, पत्र, पुष्प, माला, अक्षत, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल, फल, मिठाई आदि से माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा करें।
- कुछ लोग इस व्रत को भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से शुरू करते हैं और आश्विन कृष्ण अष्टमी तक करते हैं। इस दौरान, वे 16 सूत के धागे में 16 गांठें लगाकर उसे हल्दी से पीला करते हैं और प्रतिदिन 16 दूब और 16 गेहूँ उस धागे पर चढ़ाते हैं।
- पूजा के दौरान, आप “ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै च विद्महे, विष्णुपत्न्यै च धीमहि। तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।” जैसे मंत्रों का जाप भी कर सकते हैं।
- कुछ क्षेत्रों में, इस व्रत में 16 बोल की कथा 16 बार कहने और कमलगट्टे की माला से विशेष मंत्र का 16 माला जाप करने का भी विधान है।
|| गजलक्ष्मी व्रत कथा ||
प्राचीन समय की बात है, कि एक बार एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह ब्राह्मण नियमित रुप से श्री विष्णु का पूजन किया करता था। उसकी पूजा-भक्ति से प्रसन्न होकर उसे भगवान श्री विष्णु ने दर्शन दिए… और ब्राह्मण से अपनी मनोकामना मांगने के लिये कहा, ब्राह्मण ने लक्ष्मी जी का निवास अपने घर में होने की इच्छा जाहिर की।
यह सुनकर श्री विष्णु जी ने लक्ष्मी जी की प्राप्ति का मार्ग ब्राह्मण को बता दिया, मंदिर के सामने एक स्त्री आती है, जो यहां आकर उपले थापती है, तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना। वह स्त्री ही देवी लक्ष्मी है।
शुभ मुहूर्त और महत्व में देवी लक्ष्मी जी के तुम्हारे घर आने के बाद तुम्हारा घर धन और धान्य से भर जाएगा। यह कहकर श्री विष्णु जी चले गए।
अगले दिन वह सुबह चार बजे ही वह मंदिर के सामने बैठ गया। लक्ष्मी जी उपले थापने के लिये आईं, तो ब्राह्मण ने उनसे अपने घर आने का निवेदन किया। ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मी जी समझ गई, कि यह सब विष्णु जी के कहने से हुआ है. लक्ष्मी जी ने ब्राह्मण से कहा की तुम महालक्ष्मी व्रत करो, 16 दिनों तक व्रत करने और सोलहवें दिन रात्रि को चन्द्रमा को अर्घ्य देने से तुम्हारा मनोरथ पूरा होगा।
ब्राह्मण ने देवी के कहे अनुसार व्रत और पूजन किया और देवी को उत्तर दिशा की ओर मुंह् करके पुकारा, लक्ष्मी जी ने अपना वचन पूरा किया। उस दिन से यह व्रत इस दिन, उपरोक्त विधि से पूरी श्रद्वा से किया जाता है।
गजलक्ष्मी कथा 1
महाभारत काल में गजलक्ष्मी व्रत किसने किया था
एक बार महालक्ष्मी का पर्व आया। हस्तिनापुर में गांधारी ने नगर की सभी स्त्रियों को पूजा का निमंत्रण दिया परन्तु कुन्ती से नहीं कहा।
गांधारी के 100 पुत्रों ने बहुत सी मिट्टी लाकर एक हाथी बनाया और उसे खूब सजाकर महल में बीचो बीच स्थापित किया। सभी स्त्रियां पूजा के थाल ले लेकर गांधारी के महल में जाने लगी। इस पर कुन्ती बड़ी उदास हो गईं।
जब पांडवों ने कारण पूछा तो उन्होंने बता दिया मैं किसकी पूजा करूं ? अर्जुन ने कहा मां ! तुम पूजा की तैयारी करो ,मैं तुम्हारे लिए ऐसा हाथी लाता हूँ जो धरती के किसी कोने में नहीं मिलेगा. अर्जुन इन्द्र की अप्सरा के माध्यम से इंद्र के पास गया। और निवेदन किया कि मुझे आपका ऐरावत चाहिए और अपनी माता के पूजन हेतु वह ऐरावत को ले आया। माता ने सप्रेम पूजन किया। सभी ने सुना कि कुन्ती के यहाँ तो स्वयं इंद्र का एरावत हाथी आया है तो सभी कुन्ती के महलों की ओर दौड पड़ी और सभी ने पूजन किया। इस तरह महाभारत काल में गजलक्ष्मी व्रत कुन्ती ने किया था।
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