Ganga Maa

गंगा दशहरा व्रत कथा एवं पूजा विधि

Ganga Dussehra Vrat Katha and Pooja Vidhi Hindi

Ganga MaaVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
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|| गंगा दशहरा पूजा विधि ||

गंगा दशहरा का पर्व हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस दिन गंगा नदी में स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य के शरीर, मन और वाणी से जुड़े दस प्रकार के पापों का नाश होता है।

  • यदि गंगा नदी में स्नान करना संभव न हो, तो आप किसी अन्य पवित्र नदी या तालाब में स्नान कर सकते हैं।
  • यदि यह भी संभव न हो, तो घर पर ही स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर मां गंगा का स्मरण करते हुए स्नान करें।
  • गंगा दशहरा के दिन पूजा और दान में दस वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए।
  • यदि संभव हो तो गंगा नदी में दस बार डुबकी लगानी चाहिए।
  • स्नान के पश्चात मां गंगा की विधिवत पूजा करें।
  • पूजा के दौरान गंगा मंत्रों का जाप करना लाभकारी होता है।
  • मां गंगा के साथ राजा भागीरथ और हिमालय देव की भी पूजा करनी चाहिए।
  • इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा का भी विधान है, क्योंकि उन्होंने ही गंगा के वेग को अपनी जटाओं में धारण किया था।

|| गंगा दशहरा व्रत कथा PDf ||

एक बार महाराज सगर ने व्यापक यज्ञ किया। उस यज्ञ की रक्षा का भार उनके पौत्र अंशुमान ने संभाला। इंद्र ने सगर के यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया। यह यज्ञ के लिए विघ्न था। परिणामतः अंशुमान ने सगर की साठ हजार प्रजा लेकर अश्व को खोजना शुरू कर दिया। सारा भूमंडल खोज लिया पर अश्व नहीं मिला।

फिर अश्व को पाताल लोक में खोजने के लिए पृथ्वी को खोदा गया। खुदाई पर उन्होंने देखा कि साक्षात्‌ भगवान ‘महर्षि कपिल’ के रूप में तपस्या कर रहे हैं। उन्हीं के पास महाराज सगर का अश्व घास चर रहा है। प्रजा उन्हें देखकर ‘चोर-चोर’ चिल्लाने लगी।

महर्षि कपिल की समाधि टूट गई। ज्यों ही महर्षि ने अपने आग्नेय नेत्र खोले, त्यों ही सारी प्रजा भस्म हो गई। इन मृत लोगों के उद्धार के लिए ही महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने कठोर तप किया था।

भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उनसे वर मांगने को कहा तो भगीरथ ने ‘गंगा’ की मांग की।

इस पर ब्रह्मा ने कहा- ‘राजन! तुम गंगा का पृथ्वी पर अवतरण तो चाहते हो? परंतु क्या तुमने पृथ्वी से पूछा है कि वह गंगा के भार तथा वेग को संभाल पाएगी? मेरा विचार है कि गंगा के वेग को संभालने की शक्ति केवल भगवान शंकर में है। इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त कर लिया जाए।’

महाराज भगीरथ ने वैसे ही किया। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से छोड़ा। तब भगवान शिव ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेटकर जटाएं बांध लीं। इसका परिणाम यह हुआ कि गंगा को जटाओं से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल सका।

अब महाराज भगीरथ को और भी अधिक चिंता हुई। उन्होंने एक बार फिर भगवान शिव की आराधना में घोर तप शुरू किया। तब कहीं भगवान शिव ने गंगा की धारा को मुक्त करने का वरदान दिया। इस प्रकार शिवजी की जटाओं से छूट कर गंगाजी हिमालय की घाटियों में कल-कल निनाद करके मैदान की ओर मुड़ी।

इस प्रकार भगीरथ पृथ्वी पर गंगा का वरण करके बड़े भाग्यशाली हुए। उन्होंने जनमानस को अपने पुण्य से उपकृत कर दिया। युगों-युगों तक बहने वाली गंगा की धारा महाराज भगीरथ की कष्टमयी साधना की गाथा कहती है। गंगा प्राणीमात्र को जीवनदान ही नहीं देती, मुक्ति भी देती है। इसी कारण भारत तथा विदेशों तक में गंगा की महिमा गाई जाती है।

|| राजा भागीरथी ने किया कठोर तप ||

भागीरथी के आग्रह सुनकर मां गंगा राजा के साथ धरती पर आने के लिए राजी हो गई। लेकिन इसमें भी राजा के सामने एक समस्या खड़ी हुई। मां गंगा (आखिर क्यों महाभारत में गंगा ने मार दिया था अपने 7 बेटों को) का प्रवाह बहुत तेज था अगर वह धरती पर बहती तो आधी पृथ्वी उनके वेग से बह जाती। राजा के इस समस्या का समाधान और कोई नहीं बल्की महादेव बस कर सकते थे, ऐसे में राजा भागीरथी भगवान शिव की तपस्या करनी प्रारंभ की। भागीरथी कभी निर्जल तपस्या करते थे, तो कभी पैर के अंगूठे पर।

राजा की कठोर तपस्या से भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और राजा के सामने प्रकट हुए और राजा से आशीर्वाद मांगने के लिए कहा। तब राजा ने भगवान शिव से निवेदन किया कि आप मां गंगा के वेग को अपनी जटा में बांध लें। भगवान भोलेनाथ ने राजा की इच्छा स्वीकार की और ब्रह्मा जी अपने कमंडल से धारा प्रवाहित किए और शिव जी मां गंगा को अपनी जटा में बांध लिए।

|| इस तिथी को हुआ था आगमन ||

करीब 30-32 दिनों तक मां गंगा शिव जी के जटा में बंधी रहीं फिर ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को शिव जी ने अपनी जटा को खोली और मां गंगा को धरती में जाने को कहा। राजा ने मां गंगा के पृथ्वी पर आने के लिए हिमालय के पहाड़ियों के बीच रास्ता बनाया और मां गंगा को धरती पर आने के लिए निवेदन किया।

जब मां गंगा (गंगा उत्पत्ति से जुड़े तथ्य) धरती पर आई तब राजा ने उनके जल से अपने पूर्वजों का तर्पण किया। जिस दिन मां गंगा धरती पर आई थी उस दिन ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पड़ी थी जिसे बाद से इस तिथी को गंगा दशहरा के पर्व के रूप में जाना गया। गंगा दशहरा को मां गंगा के धरती पर आगमन के उत्सव मनाया जाता है।

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