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नवरात्रि में क्यों होता है माता का जागरण? जाने महत्व, समय, अन्य रोचक बातें

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नवरात्रि में माता का जागरण, भक्ति और आस्था का संगम होता है। यह न केवल देवी दुर्गा की पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, बल्कि यह आध्यात्मिक उन्नति और मनोरंजन का भी साधन है। नवरात्रि में माता का जागरण, भक्ति, आस्था, और सामाजिक जुड़ाव का प्रतीक है। यह देवी दुर्गा की पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और मन को शांति प्रदान करता है।

मा दुर्गा का जागरण वैसे को सालभर में कभी भी आयोजित किया जा सकता है लेकिन नवरात्रि में अष्टमी और नवमी तिथि पर माता रानी के जागरण का विशेष तौर पर आयोजन कई जगहों पर किया जाता है। यदि मां लक्ष्मी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उन्हें लाल पुष्प, सफेद चंदन का तिलक तथा देसी घी का दीपक अर्पित करना चाहिए।

इसके बाद उन्हें खीर का भोग चढ़ाएं और व्रत करें। व्रत के बाद उस खीर को प्रसाद स्वरूप में ग्रहण करें आरती का पाठ करें और देवी की स्तुति में भक्ति गीत गाएं। कपूर जलाकर और देवी का आशीर्वाद मांगकर पूजा का समापन करें। माता का जागरण एक शुभ अवसर है जो भक्तों को अपनी भक्ति व्यक्त करने और देवी मां का आशीर्वाद लेने का अवसर प्रदान करता है।

नवरात्रि प्रारम्भ होते ही देवी माँ के नौ स्वरूपों की हर प्रकार से पूजा अर्चना की जाती है. हर एक भक्त को नवरात्रि के त्यौहार आने का इंतजार रहता है. नवरात्रि का पर्व हो और माता रानी का जागरण न हो ऐसा हो ही नहीं सकता. माँ दुर्गा को प्रसन्न करने और उनकी भक्ति में डूबने के लिए लोग माता रानी का जागरण या जगराता करते हैं.

लोग माँ के भक्तिमय गीतों के जरिये अपने ऊपर कृपा दृष्टि बनाये रखने की प्रार्थना करते हैं. इसमें माता की चौकी लगाई जाती है, जिसमें माता रानी का दरबार फूलों द्वारा सजाया जाता है एवं मन्त्र और भजनों द्वारा जागरण किया जाता है। लोग रात में जाग कर माँ के भजन गाते हैं व नृत्य करते हैं। माँ की आराधना करने से लोगों की आस्था दिखाई देती है जो ह्रदय से जुड़ी हुई है।

जागरण का महत्व

  • देवी की आराधना: नवरात्रि में देवी दुर्गा की नौ रूपों में पूजा की जाती है। जागरण के माध्यम से भक्त देवी को भोग लगाते हैं, स्तुति और आरती करते हैं, और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं।
  • धार्मिक उत्साह: जागरण पूरे वातावरण को भक्तिमय बना देते हैं। भजन, कीर्तन और गरबा नृत्य से श्रद्धालुओं में धार्मिक उत्साह बढ़ता है और मन को शांति मिलती है।
  • सकारात्मक ऊर्जा: माना जाता है कि देवी दुर्गा के जागरण से आसपास की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  • सामाजिक जुड़ाव: जागरण एक सामाजिक आयोजन भी है। इसमें परिवार, दोस्त और पड़ोसी एक साथ मिलकर देवी की भक्ति करते हैं और आपसी संबंधों को मजबूत करते हैं।

माता का जागरण कब करना चाहिए

  • आप अपनी सुविधानुसार नवरात्रि के किसी भी दिन माता का जागरण कर सकते हैं।
  • कुछ लोग नवरात्रि के पहले दिन, अष्टमी या नवमी को जागरण करना अधिक शुभ मानते हैं।
  • कुछ भक्त पूरे नवरात्रि माता का जागरण करते हैं।

माता के जागरण से जुड़ी रोचक बातें

  • देश के विभिन्न क्षेत्रों में जागरण की अलग-अलग परंपराएं हैं। कुछ जगहों पर भजन और कीर्तन के साथ, गरबा और डांडिया नृत्य भी किए जाते हैं।
  • जागरण के लिए देवी दुर्गा की प्रतिमा को भव्य रूप से सजाया जाता है।
  • जागरण में देवी को विभिन्न प्रकार के भोग लगाए जाते हैं, जैसे कि फल, मिठाई, और नमकीन व्यंजन।
  • आरती जागरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भक्त आरती के माध्यम से देवी की स्तुति करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

मां दुर्गा को तुलसी क्यों नहीं चढ़ाना चाहिए?

मां दुर्गा को तुलसी इसलिए नहीं चढ़ाया जाता है क्योंकि पौराणिक कथाओं के अनुसार, तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के साथ शालिग्राम स्वरूप में हुआ था। विष्णु जी, मां दुर्गा के पति भगवान शिव के भाई हैं। हिंदू धर्म में, विवाह के बाद स्त्री अपने पति के परिवार का हिस्सा बन जाती है।

इसी मान्यता के अनुसार, तुलसी को भी मां लक्ष्मी (भगवान विष्णु की पत्नी) का रिश्तेदार माना जाता है। इसलिए, मां दुर्गा और मां लक्ष्मी, दोनों ही देवियों को तुलसी अर्पित नहीं की जाती है।

जागरण रात में क्यों होता है?

“जागरण” शब्द का अर्थ है “जागना” या “रात भर जागना”। हिंदू धर्म में, जागरण का आयोजन विशेष रूप से धार्मिक महत्व रखने वाले दिनों या रातों में किया जाता है। रात को जागरण करने के पीछे कई कारण हैं:

  • देवी-देवताओं का आह्वान: माना जाता है कि रात के समय देवी-देवता पृथ्वी पर अधिक सक्रिय होते हैं। इसलिए, जागरण के माध्यम से भक्त देवी-देवताओं को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
  • आध्यात्मिक ऊर्जा: रात के समय वातावरण में एक शांत और आध्यात्मिक ऊर्जा होती है। यह भक्तों को ध्यान लगाने और आत्म-चिंतन करने में मदद करता है।
  • सामुदायिक भावना: जागरण एक सामाजिक आयोजन भी है। इसमें परिवार, दोस्त और पड़ोसी एक साथ मिलकर भक्ति करते हैं और आपसी संबंधों को मजबूत करते हैं।
  • मनोरंजन: जागरण में भजन, कीर्तन, नृत्य और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। यह लोगों को मनोरंजन प्रदान करता है और त्योहारों का उत्साह बढ़ाता है।

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