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सभाष्यतत्वार्थाधिगमसूत्रम् (Sabhasyatatvarthadhigamsutram)

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सभाष्यतत्वार्थाधिगमसूत्रम् जैन दर्शन के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है। इस ग्रंथ के लेखक रायचन्द्र जैन ने जैन धर्म के गहरे आध्यात्मिक और दार्शनिक सिद्धांतों को सरल भाषा में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। यह ग्रंथ जैन आचार्य उमास्वामी द्वारा रचित मूल “तत्वार्थसूत्र” पर आधारित है, जो जैन धर्म के सिद्धांतों और मार्गदर्शन का एक प्रामाणिक स्रोत माना जाता है।

सभाष्यतत्वार्थाधिगमसूत्रम् पुस्तक की विशेषताएँ

  • इस ग्रंथ में “तत्वार्थसूत्र” के प्रत्येक सूत्र की व्याख्या विस्तृत और गहन दृष्टिकोण के साथ की गई है।
  • सूत्रों के अर्थ को सरल और बोधगम्य रूप में प्रस्तुत किया गया है ताकि सामान्य पाठक भी जैन दर्शन को समझ सकें।
  • ग्रंथ में सूत्रों की व्याख्या करते हुए जैन धर्म के पांच प्रमुख व्रतों (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह) और त्रिरत्न (सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन, सम्यक चरित्र) की गहन विवेचना की गई है।
  • आध्यात्मिक उन्नति और आत्मा के शुद्धिकरण के मार्ग को स्पष्ट किया गया है।
  • रायचन्द्र जैन ने जैन धर्म के सिद्धांतों को केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि दार्शनिक और तर्कसंगत दृष्टिकोण से भी प्रस्तुत किया है।
  • यह ग्रंथ आत्मा, कर्म, मोक्ष, और नैतिक आचरण की गहन व्याख्या करता है।
  • पुस्तक में यह भी बताया गया है कि जैन धर्म के सिद्धांत वर्तमान जीवन में कैसे प्रासंगिक और उपयोगी हो सकते हैं।
  • अहिंसा और पर्यावरण संरक्षण जैसे विषयों पर विशेष ध्यान दिया गया है।

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