षट्खंडागम जैन धर्म के दिगंबर परंपरा का एक अत्यंत प्राचीन और महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसकी रचना महान जैन आचार्यों पुष्पदंत और भूतबली ने की है। यह ग्रंथ जैन धर्म के दर्शन, सिद्धांतों, और कर्म सिद्धांत का विस्तृत वर्णन करता है।
षट्खंडागम को जैन धर्म के आगम साहित्य में सबसे महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इसे द्रव्य संग्रह और कर्म शास्त्र के रूप में भी जाना जाता है। इस ग्रंथ का नाम इसके छह खंडों के कारण पड़ा, जो जैन दर्शन के विभिन्न पहलुओं को समाहित करते हैं।
षट्खंडागम ग्रंथ की विशेषताएँ
- इस ग्रंथ में कर्म सिद्धांत को विस्तारपूर्वक समझाया गया है। यह बताता है कि कर्म किस प्रकार आत्मा को प्रभावित करते हैं और आत्मा की शुद्धि के लिए इनका नाश कैसे किया जा सकता है।
- “षट्खंडागम” आत्मा और कर्म के बीच के गहरे संबंध को उजागर करता है। इसमें बताया गया है कि कैसे कर्म आत्मा से जुड़ते हैं और इसे बंधन में डालते हैं।
- यह ग्रंथ जैन दर्शन और सिद्धांतों का आधारभूत ग्रंथ है। इसमें जीव, अजीव, पाप, पुण्य, बंध, मोक्ष, और कर्मों के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है।
- षट्खंडागम में कर्म के प्रभाव और परिणामों को गणितीय और तार्किक दृष्टिकोण से भी समझाया गया है, जो इसे अन्य धार्मिक ग्रंथों से अलग बनाता है।
- इसके छह खंड जैन धर्म के विभिन्न पहलुओं को समर्पित हैं। प्रत्येक खंड में आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति के उपायों का वर्णन किया गया है।