।। गुरुपादुका स्तोत्रम् ।।
अनंत-संसार समुद्र-तार
नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्याम्।
वैराग्य साम्राज्यद पूजनाभ्यां
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ।।
जिसका कहीं अंत नहीं है, ऐसे इस संसार सागर से जो तारने वाली नौका के समान हैं, जो गुरु की भक्ति प्रदान करती हैं, जिनके पूजन से वैराग्य रूपी आधिपत्य प्राप्त होता है, [मेरे] उन श्री गुरुदेव की पादुकाओं को नमस्कार है।
कवित्व वाराशिनिशाकराभ्यां
दौर्भाग्यदावांबुदमालिकाभ्याम्।
दूरिकृतानम्र विपत्ततिभ्यां
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ।।
अज्ञान के अंधकार में जो पूर्ण चन्द्र के समान उज्जवल हैं, दुर्भाग्य की अग्नि के लिए जो वर्षा करने वाले मेघ के समान हैं (अर्थात जो दुर्भाग्य रुपी अग्नि को बुझा देती हैं) जो सभी विपत्तियों को दूर कर देती हैं, उन श्री गुरुदेव की पादुकाओं को नमस्कार है।
नता ययोः श्रीपतितां समीयुः
कदाचिद-प्याशु दरिद्रवर्याः।
मूकाश्च वाचस्पतितां हि ताभ्यां
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ।।
जिनके आगे नतमस्तक होने से श्री (धन आदि समृद्धि) की प्राप्ति होती है, दरिद्रता के कीचड़ में डूबा हुआ व्यक्ति भी समृद्ध हो जाता है, जो मूक (अज्ञानी, बिना सोचे समझे बोलने वाला) व्यक्ति को भी कुशल वक्ता बना देती हैं, उन श्री गुरुदेव की पादुकाओं को नमस्कार है।
नालीकनीकाश पदाहृताभ्यां
नानाविमोहादि-निवारिकाभ्यां।
नमज्जनाभीष्टततिप्रदाभ्यां
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ।।
श्री गुरदेव के आकर्षक चरण कमल इस संसार से उत्पन्न हुए मोह और लोभ का नाश करते हैं, जो लोग इनके सम्मुख झुकते हैं उन्हें अभीष्ट (मनचाहा) फल की प्राप्ति होती है, [मैं] श्री गुरुदेव की इन पादुकाओं को नमस्कार है।
नृपालि मौलिव्रजरत्नकांति
सरिद्विराजत् झषकन्यकाभ्यां।
नृपत्वदाभ्यां नतलोक पंक्ते:
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ।।
एक राजा के मुकुट की मणि के समान जिनकी चमक होती है, मगरमच्छों से भरी नदी के समीप मनभावन कन्या के समान (अभय का सौन्दर्य प्रकट करते हुए) जो उपस्थित होती हैं, जो इनके सामने झुकते वाले लोगों को नृपत्व (राजा की भांति सम्मान) प्रदान करती हैं, उन श्री गुरुदेव की पादुकाओं को मेरा नमस्कार है।
पापांधकारार्क परंपराभ्यां
तापत्रयाहींद्र खगेश्र्वराभ्यां।
जाड्याब्धि संशोषण वाडवाभ्यां
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ।।
जो पाप के असीम अन्धकार को नष्ट करने वाले सूर्य के समान है, जो संसार के तीनों ताप (दैहिक, दैविक और भौतिक ये तीन प्रकार के कष्ट होते हैं) रुपी सर्पोंको नष्ट करने वाले पक्षीराज गरुड़ के समान हैं, जो अज्ञान रुपी महासागर को सोखने वाली अग्नि रूप हैं, उन श्री गुरुदेव की पादुकाओं को नमस्कार है।
शमादिषट्क प्रदवैभवाभ्यां
समाधिदान व्रतदीक्षिताभ्यां।
रमाधवांध्रिस्थिरभक्तिदाभ्यां
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ।।
जो मन के नियंत्रण से प्राप्त होने वाले छः प्रकार के वैभवों को प्रदान करती हैं, जिनकी कृपा से समाधि व्रत के मार्ग की ओर अग्रसर होते हैं, जो मोक्ष का मार्ग दिखाती हैं और भक्ति रस प्रदान करती हैं, उन श्री गुरुदेव की पादुकाओं को नमस्कार है।
स्वार्चापराणां अखिलेष्टदाभ्यां
स्वाहासहायाक्षधुरंधराभ्यां।
स्वांताच्छभावप्रदपूजनाभ्यां
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ।।
जो पुण्यात्मा लोग स्वयं को दूसरों की सहायता के लिए अर्पण कर देते हैं ये उनकी सभी इच्छाएं पूर्ण करती हैं, सच्चे भाव से पूजन करने पर जो मन को स्वछन्द कर देती हैं, उन श्री गुरुदेव की पादुकाओं को नमस्कार है।
कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां
विवेकवैराग्य निधिप्रदाभ्यां ।
बोधप्रदाभ्यां दृतमोक्षदाभ्यां
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् ।।
काम आदि दुर्गुण रुपी सर्पों के लिए ये गरुड़ के समान हैं, ये विवेक और वैराग्य की निधि प्रदान करती हैं, बुद्धि प्रदान करती हैं और तुरंत मोक्ष देती हैं, श्री गुरुदेव की इन चरण पादुकाओं को मेरा नमस्कार है।
।इति श्रीगुरुपादुकास्तोत्रं संपूर्णम्।
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