कामाख्या देवी चालीसा
॥ दोहा॥ सुमिरन कामाख्या करुँ, सकल सिद्धि की खानि। होइ प्रसन्न सत करहु माँ, जो मैं कहौं बखानि॥ ॥चौपाई॥ जै जै कामाख्या महारानी। दात्री सब सुख सिद्धि भवानी॥ कामरुप है वास तुम्हारो। जहँ ते मन नहिं टरत है टारो॥ ऊँचे गिरि पर करहुँ निवासा। पुरवहु सदा भगत मन आसा॥ ऋद्धि सिद्धि तुरतै मिलि जाई। जो…