ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को राम लक्ष्मण द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान श्रीराम और उनके अनुज लक्ष्मण को समर्पित है। इस दिन भगवान गोविंद विट्ठलनाथजी की भी उपासना का विधान है।
राम लक्ष्मण द्वादशी की कथा और महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेता युग में महाराज दशरथ ने संतान प्राप्ति के लिए इसी द्वादशी तिथि का व्रत किया था। इस व्रत के प्रभाव से ही उन्हें भगवान राम और लक्ष्मण जैसे पुत्रों की प्राप्ति हुई थी। तभी से यह व्रत भक्तों द्वारा सुख-समृद्धि, स्वस्थ संतान और मोक्ष की प्राप्ति के लिए रखा जाने लगा।
इस दिन श्रद्धा और भक्ति से भगवान राम और लक्ष्मण की पूजा करने से भाईचारे, सौहार्द्र और रक्षा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और तीनों देवों (राम, लक्ष्मण और कृष्ण) के दर्शन मात्र से ही समस्त पाप नष्ट होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
राम लक्ष्मण द्वादशी पूजा विधि
- राम लक्ष्मण द्वादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नान करें।
- व्रत का संकल्प लें और भगवान श्रीराम और लक्ष्मण की उपासना का मन में संकल्प करें।
- घर के मंदिर में भगवान राम और लक्ष्मण की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- पूजा की थाल में कुमकुम, चंदन, चावल, धूप, दीप रखें। दीपक और अगरबत्ती जलाएं।
- भगवान को चंपा के फूलों की माला पहनाएं। यदि चंपा के फूल उपलब्ध न हों तो कोई भी सफेद रंग के फूल अर्पित कर सकते हैं।
- भगवान के मस्तक पर चंदन का तिलक लगाएं।
- “ॐ नमः शिवाय” या राम मंत्रों का जाप कर सकते हैं।
- भगवान की आरती करें और फल व मिष्ठान्न का भोग लगाएं।
- व्रती दिन भर फलाहार कर सकते हैं या केवल फल और जल पर रह सकते हैं।
- यह व्रत विशेष रूप से स्वस्थ संतान की कामना करने वाले दंपतियों द्वारा किया जाता है। इस दिन भगवान राम, लक्ष्मण और कृष्ण की सच्ची उपासना करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
राम लक्ष्मण द्वादशी व्रत कथा PDF
प्राचीन काल की बात है। एक नगर में एक निर्धन ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था। वे अत्यंत धार्मिक, परोपकारी और भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त थे। दंपत्ति की संतान नहीं थी, और यह उनके जीवन का सबसे बड़ा दुःख था।
एक बार ब्राह्मण दंपत्ति तीर्थ यात्रा पर निकले। अनेक तीर्थों का भ्रमण करते हुए वे अंत में नंदनवन पहुंचे, जहां बहुत से ऋषि-मुनि तपस्या कर रहे थे। उन्होंने देखा कि वहां पर एक दिव्य पुरुष राम-नाम का जप कर रहे हैं। वे ब्राह्मण उनके पास गए और प्रणाम कर बोले, “हे महात्मा! मैं अत्यंत दुखी हूं। संतान नहीं है और जीवन व्यर्थ प्रतीत होता है। कृपया कोई उपाय बताएं।”
दिव्य पुरुष ने उन्हें राम लक्ष्मण द्वादशी व्रत करने का उपदेश दिया और कहा,
“हे ब्राह्मण! तुम शुक्ल पक्ष की द्वादशी को भगवान राम और लक्ष्मण जी का व्रत करो। इस दिन विधिपूर्वक पूजा, उपवास और कथा श्रवण करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है। भगवान स्वयं तुम्हारी पीड़ा हर लेंगे।”
ब्राह्मण दंपत्ति ने लौटकर श्रद्धा पूर्वक राम लक्ष्मण द्वादशी व्रत किया। उन्होंने उपवास रखा, पूजा की और कथा सुनी। कुछ समय बाद उन्हें एक सुंदर, तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई। वह बालक बड़ा होकर अत्यंत ज्ञानी और धर्मपरायण बना। दंपत्ति का जीवन सुखमय हो गया।
इस प्रकार यह व्रत संतान-प्राप्ति, सुख-समृद्धि और पापों के नाश के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना गया है।
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