माँ सरस्वती का विसर्जन हमें सिखाता है कि जीवन में हर चीज़ अस्थायी है। जिस प्रकार हम प्रतिमा को पवित्र जल में विसर्जित करते हैं, उसी प्रकार हमें अपने अहंकार और अज्ञानता को भी त्यागना चाहिए। इस वर्ष, सरस्वती विसर्जन को एक साधारण प्रक्रिया न मानकर, माँ की असीम कृपा पाने के लिए एक विशेष आध्यात्मिक (spiritual) अवसर बनाएं।
विसर्जन का महत्व – क्यों है यह प्रक्रिया इतनी खास? (Significance of Visarjan)
हिन्दू धर्म में, विसर्जन की प्रक्रिया को देवता के निराकार स्वरूप में लौटने का प्रतीक माना जाता है। मूर्ति में की गई प्राण-प्रतिष्ठा (consecration) के बाद, विसर्जन के माध्यम से हम उन्हें सम्मानपूर्वक अपने धाम वापस जाने का आग्रह करते हैं।
- ज्ञान का प्रवाह (Flow of Knowledge) – विसर्जन के दौरान, माँ सरस्वती का दैवीय ज्ञान और आशीर्वाद जल के माध्यम से प्रकृति में विलीन होकर, हमारे जीवन और वातावरण में प्रवाहित होता है।
- अज्ञानता का अंत (End of Ignorance) – यह अनुष्ठान इस बात का प्रतीक है कि हमने माँ के सान्निध्य में रहकर अपनी अज्ञानता और नकारात्मक विचारों (negative thoughts) का विसर्जन कर दिया है।
- पुनः आगमन की कामना – विसर्जन के साथ हम माँ से प्रार्थना करते हैं कि वह अगले वर्ष और भी अधिक तेज़ कृपा और आशीर्वाद के साथ हमारे घर-आँगन में फिर से पधारें।
सरस्वती विसर्जन की सही विधि और शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat and Correct Procedure)
सरस्वती विसर्जन आमतौर पर बसंत पंचमी के अगले दिन किया जाता है, जिसे सरस्वती पूजा के चौथे दिन (चतुर्थी, पंचमी या षष्ठी तिथि) भी सम्पन्न किया जाता है। विसर्जन हमेशा शुभ मुहूर्त (auspicious time) में ही करना चाहिए।
अंतिम पूजा और आरती
- विसर्जन के दिन प्रातःकाल उठकर स्नान करें और श्वेत (सफेद) या पीले वस्त्र धारण करें।
- माँ सरस्वती की प्रतिमा को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल) से स्नान कराएं।
- उन्हें नए पीले वस्त्र, पुष्प (फूल) और हल्दी-कुमकुम अर्पित करें।
- पुस्तकों, कलम और वाद्य यंत्रों (musical instruments) की पूजा करें।
- माँ को विशेष रूप से खीर या सफेद मिठाई का भोग लगाएं।
- अंत में, पूरे परिवार के साथ माँ सरस्वती की आरती करें।
संकल्प और क्षमा याचना
हाथ में अक्षत (चावल) और जल लेकर माँ के सामने विसर्जन का संकल्प (resolve) लें। इसके बाद, उनसे पूजा में हुई किसी भी भूल या त्रुटि के लिए क्षमा याचना (seek forgiveness) करें।
विशेष उपाय – ज्ञान का ‘पोथी-विसर्जन’
यह चरण आपके अनुष्ठान को अद्वितीय (unique) और प्रभावी बनाता है:
- विसर्जन से पहले, माँ के चरणों में अपनी वह कलम या पुस्तक रखें जिसका उपयोग आप अपनी विद्या या कार्य में करते हैं। यह कलम या पुस्तक अगले वर्ष तक माँ के आशीर्वाद से युक्त होकर आपके पास रहेगी।
- एक सफेद कागज़ पर हल्दी की स्याही से माँ सरस्वती का बीज मंत्र ‘ॐ ऐं’ (Om Aim) लिखें। इसे पुस्तक के अंदर रखें।
- माँ की प्रतिमा पर एक पीला धागा (yellow thread) बांधें। विसर्जन से ठीक पहले, इस धागे को खोलकर अपने अध्ययन कक्ष या कार्यस्थल पर रखें। यह धागा वर्ष भर माँ की सकारात्मक ऊर्जा (positive energy) को बनाए रखेगा।
विसर्जन
- माता की प्रतिमा को सम्मानपूर्वक उठाएं और गाजे-बाजे के साथ, ख़ुशी-ख़ुशी विसर्जन स्थल (नदी, सरोवर या शुद्ध जल स्रोत) तक ले जाएं।
- जल में विसर्जन से पहले पुनः आरती करें और माँ से अगले वर्ष जल्दी आने की प्रार्थना करें।
- प्रतिमा को धीरे से और सम्मान के साथ जल में प्रवाहित करें।
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