Download HinduNidhi App
Shri Ganesh

वैशाख संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा

Vaishakh Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha Hindi

Shri GaneshVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
Share This

|| वैशाख संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा ||

एक बार पार्वती जी ने गणेशजी से पूछा कि वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की संकटा चतुर्थी का पूजन किस गणेश का और किस विधि से करना चाहिए, और उस दिन क्या भोजन करना चाहिए?

गणेश जी ने उत्तर दिया – हे माता! वैशाख कृष्ण चतुर्थी के दिन व्रकतुंड नामक गणेश की पूजा करनी चाहिए और व्रत रखना चाहिए। इस दिन भोजन में कमलगट्टे का हलवा लेना चाहिए। हे जननी! द्वापर युग में राजा युधिष्ठिर ने भी यही प्रश्न पूछा था और भगवान श्री कृष्ण ने जो उत्तर दिया था, वही मैं आपको बता रहा हूँ। आप श्रद्धा पूर्वक सुनें।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा – हे राजन! इस कल्याणकारी चतुर्थी का जिसने व्रत किया और जो फल प्राप्त हुआ, मैं वह बता रहा हूँ।

प्राचीन काल में एक प्रतापी राजा रंतिदेव थे। वे अपने शत्रुओं का नाश करने में आग की तरह थे। उनकी मित्रता यम, कुबेर, इंद्र आदि देवों से थी। उनके राज्य में धर्मकेतु नामक एक श्रेष्ठ ब्राह्मण रहते थे। उनके दो पत्नियाँ थीं, सुशीला और चंचला। सुशीला नित्य कोई न कोई व्रत करती थीं जिससे उनका शरीर दुर्बल हो गया था। वहीं चंचला कभी कोई व्रत-उपवास नहीं करती थीं और भरपेट भोजन करती थीं।

सुशीला को एक सुंदर कन्या प्राप्त हुई और चंचला को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। चंचला बार-बार सुशीला को ताना देती थी – “अरे सुशीला! तूने इतने व्रत करके अपने शरीर को जर्जर कर लिया, फिर भी केवल एक दुर्बल कन्या को जन्म दिया। मुझे देख, मैं कभी व्रत नहीं करती और हष्ट-पुष्ट हूँ और मैंने भी एक हृष्ट-पुष्ट पुत्र को जन्म दिया है।”

अपनी सौत की ताने सुशीला के दिल में चुभने लगे। वह विधिपूर्वक गणेशजी की उपासना करने लगीं। जब सुशीला ने संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत किया, तो रात में वरदायक गणेशजी ने उन्हें दर्शन दिए।

श्री गणेशजी ने कहा – “हे सुशीला! तेरी आराधना से मैं अत्यधिक संतुष्ट हूँ। मैं तुझे वरदान देता हूँ कि तेरी कन्या के मुख से निरंतर मोती और मूंगा निकलते रहेंगे। इससे तुझे हमेशा प्रसन्नता रहेगी। और तुझे वेद शास्त्र वेत्ता एक पुत्र भी होगा।” वरदान देकर गणेशजी अंतर्ध्यान हो गए।

इस वरदान के फलस्वरूप सुशीला की कन्या के मुख से सदैव मोती और मूंगा झड़ने लगे। कुछ समय बाद सुशीला को एक पुत्र की प्राप्ति हुई। धर्मकेतु के स्वर्गवास के बाद चंचला सारा धन लेकर दूसरे घर में रहने चली गई, जबकि सुशीला अपने पतिगृह में रहकर पुत्र और पुत्री का पालन करने लगीं।

सुशीला की कन्या के मुख से गिरते मोती-मूंगा के कारण थोड़े समय में ही उनके पास बहुत धन एकत्र हो गया। इससे चंचला ईर्ष्या करने लगी। एक दिन चंचला ने सुशीला की कन्या को कुएँ में धकेल दिया। लेकिन गणेशजी ने उसकी रक्षा की और वह बालिका सकुशल अपनी माता के पास लौट आई। बालिका को जीवित देखकर चंचला का मन विचलित हो गया। वह सोचने लगी कि जिसकी रक्षा ईश्वर करता है उसे कोई मार नहीं सकता।

सुशीला ने अपनी पुत्री को गले लगाकर कहा – “श्री गणेशजी ने तुझे पुनः जीवन दिया है।” चंचला ने सुशीला के पैरों में नतमस्तक होकर कहा – “हे बहन सुशीला! मैं बहुत पापिन और दुष्टा हूँ। मेरे अपराधों को क्षमा करें। आप दयावती हैं, आपने दोनों कुलों का उद्धार कर दिया। जिसका रक्षक देवता होता है, उसे मानव क्या बिगाड़ सकता है?”

इसके बाद चंचला ने भी संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत किया। श्री गणेशजी की कृपा से उन दोनों में प्रेम स्थापित हो गया। जिस पर गणेशजी की कृपा होती है, उसके शत्रु भी मित्र बन जाते हैं। सुशीला के व्रत के कारण ही चंचला का हृदय परिवर्तन हो गया।

श्री गणेशजी कहते हैं – “हे देवी! पूर्वकाल का पूरा वृतांत आपको सुना दिया। इस लोक में इससे श्रेष्ठ विघ्नविनाशक कोई दूसरा व्रत नहीं है।”

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं – “हे धर्मराज! आप भी विधिपूर्वक गणेशजी का व्रत करें। इससे आपके शत्रुओं का नाश होगा और अष्टसिद्धियाँ और नवनिधियाँ आपके सामने करबद्ध होकर खड़ी रहेंगी। आप अपने भाइयों, धर्मपत्नी और माता के सहित इस व्रत को करें। इससे थोड़े समय में ही आप अपने राज्य को प्राप्त कर लेंगे।”

Read in More Languages:

Found a Mistake or Error? Report it Now

Download HinduNidhi App
वैशाख संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा PDF

Download वैशाख संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा PDF

वैशाख संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा PDF

Leave a Comment