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नरसिंह द्वादशी व्रत कथा

Narasimha Dwadashi Vrat Katha Hindi

Shri VishnuVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
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|| नरसिंह द्वादशी व्रत कथा PDF ||

प्राचीन काल में कश्यप नामक एक ऋषि थे। उनकी पत्नी का नाम दिति था। उनके दो पुत्र हुए – हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु। दोनों ही असुर स्वभाव के थे और उन्होंने चारों ओर हाहाकार मचा रखा था। पृथ्वी की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण कर हिरण्याक्ष का वध कर दिया।

अपने भाई की मृत्यु से हिरण्यकशिपु बहुत क्रोधित हुआ और उसने भगवान विष्णु को अपना शत्रु मान लिया। उसने ब्रह्माजी की कठोर तपस्या की और उनसे ऐसा वरदान मांगा कि न वह किसी मनुष्य द्वारा मारा जा सके, न किसी जानवर द्वारा, न दिन में, न रात में, न घर के अंदर, न घर के बाहर, न पृथ्वी पर, न आकाश में और न ही किसी अस्त्र-शस्त्र से। ब्रह्माजी ने उसे यह वरदान दे दिया।

वरदान पाकर हिरण्यकशिपु अहंकारी हो गया और खुद को भगवान मानने लगा। उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा पर रोक लगा दी और सभी को अपनी पूजा करने का आदेश दिया। हिरण्यकशिपु की पत्नी कयाधु गर्भवती थी। जब वह नारद मुनि के आश्रम में थी, तब नारद मुनि ने उसके गर्भ में पल रहे शिशु को भगवान विष्णु की भक्ति का ज्ञान दिया।

समय आने पर कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया। प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था। हिरण्यकशिपु ने उसे कई बार विष्णु भक्ति छोड़ने के लिए कहा, लेकिन प्रह्लाद पर इसका कोई असर नहीं हुआ। क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से वह हर बार बच गया।

एक दिन हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि तुम्हारा भगवान कहाँ है? प्रह्लाद ने उत्तर दिया कि वह हर जगह हैं। हिरण्यकशिपु ने गुस्से में कहा कि क्या वह इस खंभे में भी है? प्रह्लाद ने कहा, हाँ। तब हिरण्यकशिपु ने खंभे पर अपनी गदा से प्रहार किया। उसी क्षण खंभे से एक भयंकर गर्जना हुई और भगवान विष्णु नरसिंह के रूप में प्रकट हुए। नरसिंह का आधा शरीर सिंह का और आधा मनुष्य का था।

हिरण्यकशिपु को ब्रह्माजी का वरदान याद था, इसलिए भगवान नरसिंह ने उसे घर की दहलीज पर (न अंदर न बाहर), संध्या के समय (न दिन न रात), अपनी गोद में लिटाकर (न पृथ्वी पर न आकाश में) और अपने नाखूनों से (न किसी अस्त्र-शस्त्र से) उसकी छाती चीर कर उसका वध कर दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की और धर्म की स्थापना की।

इसीलिए फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को नरसिंह द्वादशी का व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान नरसिंह की पूजा करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं और उन्हें भय से मुक्ति मिलती है।

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