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Apara Ekadashi 2026 – अपरा एकादशी (अचला एकादशी) तिथि, मुहूर्त, व्रत कथा और पूजा विधि

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वर्ष 2026 में अपरा एकादशी का व्रत 13 मई, बुधवार को रखा जाएगा। ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की इस एकादशी को ‘अचला एकादशी’ के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ‘अपरा’ का अर्थ है ‘अपार’, अर्थात यह व्रत जातक को अपार पुण्य और सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला है।

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे जानने के लिए, इस उत्सव की तिथि, मुहूर्त, महत्व, और पूजा विधि के बारे में विस्तार से जानें। अपरा एकादशी व्रत का पालन करने से माना जाता है कि व्यक्ति के सभी पाप धूल जाते हैं। यह एकादशी “अचला एकादशी” के नाम से भी प्रसिद्ध है। इसे भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए समर्पित माना जाता है, जैसा कि अन्य सभी एकादशियों के लिए होता है। व्रत से पहले जाने अपरा एकादशी पूजा विधि किया है

“अपार” शब्द का हिंदी में अर्थ “असीम” है, और इस व्रत को मानने से व्यक्ति को असीमित धन की प्राप्ति होती है। इसलिए इसे “अपरा एकादशी” कहा जाता है। यह एकादशी अपने भक्तों को असीमित लाभ देने के लिए भी महत्वपूर्ण है। “ब्रह्म पुराण” में भी अपरा एकादशी का महत्व विस्तार से वर्णित किया गया है। यह एकादशी पूरे देश में पूरी प्रतिबद्धता के साथ मनाई जाती है और भारत के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न नामों से जानी जाती है।

अपरा एकादशी 2026 की तिथि और मुहूर्त

  • एकादशी तिथि प्रारंभ: 12 मई, 02:52 PM बजे से
  • एकादशी तिथि समाप्त: 13 मई, 01:29 PM बजे तक

अपरा एकादशी 2026 पूजा विधि

  1. सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
  2. भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
  3. भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।
  4. अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
  5. भगवान विष्णु आरती करें।
  6. भगवान को सात्विक चीजों का भोग लगाएं, जिसमें तुलसी को शामिल करें।
  7. इस पावन दिन माता लक्ष्मी की भी पूजा करें।
  8. इस दिन भगवान विष्णु के साथ अधिक से अधिक ध्यान रखें।

अपरा एकादशी व्रत कथा

एक बार की बात है, महीध्वज नाम का एक राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज उससे द्वेष रखता था। एक दिन वज्रध्वज ने राजा की हत्या कर दी और उसे जंगल में एक पीपल के नीचे गाड़ दिया। राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी। हर व्यक्ति को राजा की आत्मा से परेशानी होती थी। एक दिन एक ऋषि आए और उन्होंने राजा की प्रेत को देखा।

राजा की प्रेत को देखकर ऋषि ने उसके प्रेत बनने की कारण पता लगाया। ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे आने के लिए कहा और उसे परलोक जाने का आदेश दिया। आत्मा को परलोक का सुख प्राप्त करने के लिए ऋषि ने अपरा एकादशी का व्रत रखा। इस व्रत का पुण्य प्राप्त करने के बाद, राजा स्वर्ग चला गया और प्रेतयोनी से मुक्त हो गया। अपरा एकादशी व्रत कथा पुरी कथा यहां से पढ़े |

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