|| बसंत पंचमी पूजा विधि ||
- बसंत पंचमी के दिन प्रातः स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ पीले या सफेद रंग का वस्त्र धारण करें। इसके बाद माता सरस्वती की पूजा का संकल्प लें।
- पूजा स्थान पर मां सरस्वती की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
- सबसे पहले भगवान गणेश, जो प्रथम पूज्य हैं, की पूजा करें। उन्हें फूल, अक्षत, धूप, दीप, और गंध अर्पित करें।
- मां सरस्वती को गंगाजल से स्नान कराएं और उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं।
- पीले फूल, अक्षत, सफेद चंदन, पीली रोली, पीला गुलाल, धूप, दीप, और गंध अर्पित करें। मां सरस्वती को गेंदे के फूलों की माला पहनाएं।
- भोग में बेसन के लड्डू, बर्फी, या पीले रंग की मिठाई अर्पित करें। यदि ये उपलब्ध न हो, तो मालपुआ, सफेद बर्फी, या खीर का भोग भी लगाया जा सकता है।
- सरस्वती वंदना और मंत्रों का पाठ करें। सरस्वती कवच का पाठ करना भी शुभ होता है। शिक्षा, कला और संगीत में सफलता के लिए मां सरस्वती के मंत्रों का जाप करें।
- पूजा के अंत में सरस्वती पूजा का हवन करें। हवन कुंड बनाकर उसमें सामग्री तैयार रखें।
- ‘ॐ श्री सरस्वत्यै नमः स्वाहा’ मंत्र की एक माला का जाप करते हुए हवन करें।
- अंत में खड़े होकर मां सरस्वती की आरती करें। आरती के दीपक को घर या विद्यालय में चारों ओर घुमाएं, ताकि नकारात्मक प्रभाव दूर हो जाएं।
|| बसंत पंचमी व्रत कथा ||
पौराणिक वसंत पंचमी की कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी थरती पर विचरण करने निकले और उन्होंने मनुष्यों और जीव-जंतुओं को देखा तो सभी नीरस और शांत दिखाई दिए। यह देखकर ब्रह्मा जी को कुछ कमी लगी और उन्होंने अपने कमंडल से जल निकालकर पृथ्वी पर छिड़क दिया। जल छिड़कते ही 4 भुजाओं वाली एक सुंदर स्त्री प्रकट हुई जिसके एक हाथ में वीणा, एक में माला, एक में पुस्तक और एक हाथ में वर मुद्रा थी। चतुरानन ने उन्हें ज्ञान की देवी मां सरस्वती के नाम से पुकारा। ब्रह्मा जी की आज्ञा के अनुसार सरस्वती जी ने वीणा के तार झंकृत किए, जिससे सभी प्राणी बोलने लगे, नदियां कलकल कर बहने लगी हवा ने भी सन्नाटे को चीरता हुआ संगीत पैदा किया। तभी से बुद्धि व संगीत की देवी के रुप में सरस्वती की पूजा की जाने लगी।
पौराणिक कथानुसार, एक बार देवी सरस्वती ने भगवान श्रीकृष्ण को देख लिया था और वह उन पर मोहित हो गई थी। वह उन्हें पति के रूप में पाना चाहती थी, लेकिन जब भगवान कृष्ण को पता चला तो उन्होंने कहा कि वह केवल राधारानी के प्रति समर्पित हैं। लेकिन सरस्वती को मनाने के लिए उन्होंने वरदान दिया कि आज से माघ के शुक्ल पक्ष की पंचमी को समस्त विश्व तुम्हारी विद्या व ज्ञान की देवी के रुप में पूजा करेगा। उसी समय भगवान श्री कृष्ण ने सबसे पहले देवी सरस्वती की पूजा की तब से लेकर निरंतर बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा लोग करते आ रहे हैं।
अन्य किदवंतियों के मुताबिक, ज्ञान की देवी मां सरस्वती का इस दिन जन्म हुआ था। ऋष्टि की रचयिता ब्रह्मा जी के मुख से सरस्वती विकसित हुई थी। वहीं पश्चिमी भारत में मां सरस्वती को भगवान सूर्य की बेटी के रूप में माना जाता है। मान्यता है कि सरस्वती की शादी कार्तिकेय से हुई थी। दूसरी ओर पूर्वी भारत में सरस्वती को पार्वती की पुत्री माना जाता है। उन्होंने भगवान विष्णु की तीन पत्नियों(सरस्वती, गंगा औ लक्ष्मी) में से एक कहा जाता है।
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